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पारशवी
प्राचीन चरित्रकोश
पाराशर्य
पारशवी-विदुर की पत्नी । यह देवराज की कन्या ४. ऐरावत कुल का एक सर्प, जो जनभेजय के सर्पसत्र थी।
| में जल कर मर गया था (म. आ. ५२.१०)। पारशव्य-तिरिंदिर ऋषि का पैतृक नाम (सां. श्री. पाराशर--वैदिक कालीन एक आचार्य । पाराशर ने सू. १६.११.२०)। 'परशु'का वंशज होने से तिरिंदिर | ६१ श्लोकों से युक्त पाराशरी शिक्षा लिखी है। यह को यह उपाधि प्राप्त हो गयी होगी।
शुक्रयजुर्वेद की शिक्षा है। शुक्लयजुर्वेद के कहे जानेवाले पारस्कर-शुक्लयजुर्वेद के पारस्कर' गृह्यसूत्र' नामक
स्वर, आनुनासिक, विसर्ग आदि का आजकल प्रचलित वर्णन सुविख्यात ग्रंथ का कर्ता । डॉ. जयसवाल के अनुसार
के समान वर्णन इस शिक्षा में प्राप्त है। याज्ञवल्की, पारस्करगृह्यसूत्र का रचनाकाल ५०० ई. पू. एवं उसके
वासिष्ठी, कात्यायनी, पारशरी, गौतमी, मांडव्यी तथा वर्तमान संस्करण का काल २०० ई. पू. है।
पाणिनि आदि शिक्षाओं का उल्लेख इस शिक्षा में प्राप्त है
(श्लो. ७७-७८)। उससे प्रतीत होता है कि यह शिक्षा गाईस्थ्यजीवनविषयक धार्मिक विधियों का वर्णन
काफी आधुनिक काल की होगी। यह शिक्षा कहने वाले करना यह गृह्यसूत्रों का प्रमुख उद्देश्य है । 'पारस्कर' गृह्य
को वैष्णवपद प्राप्त होगा, ऐसा फल अन्त में बताया गया सूत्र के अतिरिक्त अन्य प्रमुख गृह्यसूत्रों के नाम इस
है (श्लो. १६९)। प्रकार है :- आश्वलायन-गृह्यसूत्र, शांखायन-गृह्यसूत्र,
पाराशरीकौडिनीपुत्र--वैदिक कालीन एक ऋषि । मानव-गृह्यसूत्र, बौधायन-गृह्यसूत्र आपस्तंब-गृह्यसूत्र
यह गार्गीपुत्र का शिष्य था (श. ब्रा. १४.९.४.३०)। हिरण्य केशी-गृह्यसूत्र,भारद्वाज-गृह्यसूत्र, पारस्कर-गृह्यसूत्र,
. माध्यंदिन शाखा के 'बृहदारण्यक उपनिषद' में दिये द्राह्यायण-गृह्यसूत्र, गोभिल-गृह्यसूत्र, खादिर-गृह्यसूत्र तथा
अंतिम 'विद्यावंश' में भी इसका निर्देश प्राप्त है (बृ. कौशिक-गृह्यसूत्र ।
उ. ६.४.३०)। कई अभ्यासकों के अनुसार, पारस्कर एवं कात्यायन
पाराशरीपुत्र-वैदिक कालीन एक ऋषि । 'बृहंदा- . एक ही थे।
रण्यक उपनिषद' में दिये 'विद्यावंश' में इसे विभिन्न पारावत-वैदिककाल में यमुना नदी के तट पर रहने
स्थानों में निम्नलिखित आचार्यों का शिष्य कहा गया हैवाला एक लोकसमूह (ऋ.८.३४.१८) । पंचविंश ब्राह्मण
कात्यायनीपुत्र (बृ. ६.५.१), औरस्वतीपुत्र (बृ. उ. में, इन लोगों का निर्देश, 'पारावत-गण' नाम से किया
६.५.१) । वात्सीपुत्र (बृ. उ. ६.५.२) । तथा गया है एवं तुरश्रवस् को इनका पुरोहित बताया गया है
वार्कारूणीपुत्र (श. ब्रा. १४.९.४.३१)। इसके शिष्यों (पं. बा. ९.४.१०-११) । इन लोगों द्वारा दिये गये
में भारद्वाजीपुत्र, औपस्वतीपुत्र तथा वात्सीपुत्र प्रमुख थे। दानों का निर्देश वसुरोचिष् के दानस्तुति में किया गया | इस में संदेह नहीं कि, इन विद्यावंशों में एक ही है (ऋ. ८.३४.१८)। सरस्वती नदी को 'पारावतघ्नी'
| 'पाराशरीपुत्र' अभिप्रेत न हो कर, इनसे अलग अलग (पारावतों का वध करनेवाली) कहा गया है (ऋ. ६. व्यक्तियों का तात्पर्य है। ६१.२)। यह निर्देश भी, इनके यमुना नदी के तट पर |
। पाराशर्य-एक उपनिषदकालीन ऋषि । बृहदारण्यक रहने की पुष्टि करता है।
उपनिषद में दिये गये 'विद्यावंशों' में इसे अन्योन्य हिलेब्रांट के अनुसार, गेड़ोसिया की उत्तरी सीमा पर | स्थानों में भरद्वाज, वैजवापायन तथा जातकर्ण्य का शिष्य बसे हयें टॉलेमीकालीन 'पारुएटे' लोग ये ही थे विदिये | कहा गया है (बृ. उ. ३.६.२, ४.६.३)।वैजवापायन का माइथोलोजी १.९७ ) । इन लोगों का मूल नाम 'पर्वतीय' | शिष्य होने का अन्यत्र समर्थन हैं (ते. आ. १.९.२) । था एवं पश्चात् अपभ्रंश से पारावत बना।
सामविधान ब्राह्मण में किसी व्यास पाराशर्य ऋषि को २. वसिष्ठ के बारह पुत्रों का सामूहिक नाम । बारह विष्वक्सेन का शिष्य बताया गया है (सामविधान ब्रा. 'पारावतों' के नाम इस प्रकार हैं:-अजिह्म, अजेय, ३.४१.१)। आयु, दिव्यमान, प्रचेतस् , महाबल, महामान, दान, इसके शिष्यों में पाराशर्यायण, सैतव प्राचीन योग्य यज्वत् , विश्रुत, विश्वेदेव तथा समंज (ब्रह्मांड. २.३६. | तथा भारद्वाज ये प्रमुख थे (बृ. उ. २.६.२-३)। पाणिनि ९-१५)।
के सूत्रों में, भिक्षुसूत्र रचियता पाराशर्य का निर्देश है ३. स्वारोचिष मन्वंतर का देवगण ।
। (४.३.११०)।