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________________ पांड्य प्राचीन चरित्रकोश पारशव नीप पार सुकृति अकाल मृत्यु हो गयी (शिव. शतरुद्र ३१.४७-५५, भागवत अन्य पुराण सत्यरथ देखिये)। पात-ऐरावत कुल का एक नाग । जनमेजय के समर सर्पसत्र में यह अपने पातर नामक मित्र के साथ मारा गया (म. आ. ५७.१२)। पृथु पातालकेतु--जालंधर की सेना का एक असुर (पद्म. उ. १२)। पार विभ्राज २. एक असुर । विश्वावसु नामक गंधर्व की मदालसा नीप अणुह नामक कन्या का हरण कर, यह उसे पाताल ले गया। ब्रह्मदत्त ब्रह्मदत्त ऋतध्वज नामक राजा ने इसे पराजित कर मदालसा को पुराणों में प्राप्त इन दो वंशक्रमों को एकत्र करने मुक्त किया (ऋतध्वज देखिये)। पर 'पार' एवं 'विभ्राज' ये दोनों एक ही थे, एवं पार का पाथ्य-वृषन् ऋषि का पैतृक नाम (वृषन् पाथ्य | | नामान्तर विभ्राज था, ऐसी गलत धारणा हो जाती है । देखिये)। . . भागवत में दिये वंशक्रम में नीप से अणुह तक के पाँच पादप--वसिष्ठकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । राजाओं के नाम नहीं दिये गये है। इस कारण, यह गड़बड़ी हो गयी है। पादपायन-मत्स्य के अनुसार पालंकायन ऋषि का ३. (सो. अनु.) एक राजा । विष्णु के अनुसार यह नामांतर (पालंकायन देखिये)। अंगराजा का पुत्र था। पापनाशन-दमन नामक शिवावतार का शिष्य । ४. दक्षसावर्णि मन्वन्तर का एक देवगण। पायु-अंगिराकुल का एक ऋषि । पारःकारिररेव-'पारिकारारिरेव' नामक अंगिरा कुल के गोत्रकार। पायु भारद्वाज-- एक सूक्तद्रष्टा (ऋ. ६.७५)। यह दिवोदास राजा का आश्रित था (अश्वत्थ . पारण--अगस्त्यकुल में उत्पन्न एक गोत्रकार देखिये)। भारद्वाज नामक ऋषि की 'पायु' उपाधि थी ऋषिगण । (ऋ. ६.४७.२४)। पारद--एक प्राचीन जाति का नाम । ये लोग युद्ध के शस्त्रों का वर्णन करनेवाले, तथा राजाओं | आधुनिक उत्तर बलूचिस्तान के प्रदेश में कहीं रहते थे। को युद्ध के लिये आवाहन करनेवाले ऋग्वेद के एक युद्ध युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के समय, ये लोग हर तरह के सूक्त के प्रणयन का श्रेय पायु को दिया गया है (ऋ. " उपायन" ले कर उपस्थित हुये थे (म. स. ४७. ६.७५)। बृहदेवता के अनुसार, अभ्यावर्तिन् चायमान एवं प्रस्तोत सर्जिय नामक राजाओं को सहाय देने के । महाभारतकालीन एक लोकसमूह । ये लोग द्रोणालिए, इसने इस सूक्त की रचना की थी (ब्रहहे. ५. | चार्य के साथ भीष्मजी के पीछे पीछे चल रहे थे (म. भी. १२४)। ८३.७)। पार--(सो. पुरु.) कान्यकुब्ज देश का राजा ।। २. एक राजा । हरिश्चन्द्र के वंश के गर राजा का राज्य भागवत, विष्णु एवं मस्स्य के अनुसार, यह 'पृथुसेन' | जीतनेवाले राजाओं में से यह एक था। गर राजा के एवं वायु के अनुसार, यह 'पृथुषेण' का पुत्र था। | पुत्र सगर ने, इसके सिर के सारे केशों का मुंडन कर इसे मत्स्य में इसे 'पौर' कहा गया है । इसके पुत्र 'नीप' | मुक्त किया था (पद्म. उ. २०)। नामक सामूहिक नाम से प्रख्यात थे। पारशव-धृतराष्ट्र एवं पांडु राजा के बंधु विदुर का २. ( सो. पूरु.) एक नीपवंशीय राजा । विष्णु | नामांतर | शूद्रा के गर्भ से ब्राह्मणद्वारा उत्पन्न पुत्र को एवं वायु के अनुसार, यह समर राजा का पुत्र था। 'पारशव' कहते थे (म. अनु. ४८.५)। अंबलिका इसका वंशक्रम भागवत में एवं अन्य पुराणों में विभिन्न | रानी की शूद्र दासी के गर्भ से व्यासमुनि द्वारा विदुर का पद्धति से दिया गया है, जो इस प्रकार है :-- । जन्म हुआ। इस कारण उसे 'पारशव' कहते थे। ४१३
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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