________________
पाणिनि
प्राचीन चरित्रकोश
पांडु
ग्रंथ के पाणिनिसम्मत परिशिष्टस्वरूप हैं। इसी कारण, | भस्मचर्चित उग्र आकृति देख कर, अंबालिका मन ही प्राचीन ग्रंथकार उनका 'खिल' शब्द से व्यवहार करते हैं। मन घबरा गयी, एवं भय से उसका मुख फीका पड़ गया।
उपरिनिर्दिष्ट ग्रंथों के अतिरिक्त, पाणिनि के नाम पर | यह देखते ही क्रुद्ध हो कर व्यास ने उसे शाप दिया, शिक्षासूत्र, जाम्बवती विजय (पातालविजय ) नामक काव्य | 'मुझे देखते ही तुम्हारा चेहरा निस्तेज एवं फीका पड़ एवं 'द्विरूपकोश' नामक कोशग्रंथ भी उपलब्ध हैं। गया है, अतएव तुम्हारा होनेवाला पुत्र भी निस्तेज एवं
पाणिमत्--एक नाग । यह वरुण की सभा में रह श्वतवर्ण का पैदा होगा एवं उसका नाम भी पांडु रक्खा कर वरुण की उपासना करता था (म. स. ९.१००*)। | जायेगा'। बाद में अंबालिका गर्भवती हुई, एवं उसे व्यास
पाणीतक-पूषाद्वारा स्कन्द को दिये गये दो पार्षदों की शापोक्तिनुसार, श्वतवर्ण का पाण्डु नामक पुत्र में से एक । दूसरे का नाम 'कालिक' था (म. श. | हुआ (म. आ. ५७.९५, ९०.६०; १००; स.८.२२)। ४४.३९)। पाठ-पालितक ।
शिक्षा--पाण्डु का पालनपोषण इसके चाचा भीष्म ने पांड--कण्व के पुत्रों में से एक । इसकी माता का पत्रवत किया। उसने इसके उपनयनादि सारे संस्कार नाम आर्यावती था। 'सरस्वती' की कन्या से इसे सोलह
भी किये । इससे ब्रह्मचर्यविहित योग्य व्रत तथा अध्ययन पुत्र हुये । वे सब आगे चलकर गोत्रकार बन गये (भवि.
करवाया । यह श्रुति-स्मृतियों में पंडित तथा व्यायाम पटु प्रति. ४.२१)।
बना । चार वेद, धनुर्वेद, गदा, खड्ग, युद्धशास्त्र, गजपांडर--ऐरावत के कुल में उत्पन्न हुआ एक नाग ।
| शिक्षा, नीतिशास्त्र, इतिहास, पुराण, कला तथा तत्वज्ञान . जनमेजय के सर्पसत्र में यह जलकर मर गया (म. आ. में यह पारंगत दृया (म. आ. १०२.१५-१९)। ५८.१०)। पांडव-कुरुवंशीय पाण्डु राजा के पाँच पुत्रों का
विवाह--कुंति-भोज राजाने अपनी कन्या पृथा सामूहिक नाम । युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल तथा सहदेव
(कुंती ) का स्वयंवर किया, वहाँ कुन्ती ने पाण्डु का. ये पाँचों पाण्डु-पुत्र, पाण्डव कहलाते हैं (पांडु देखिये)।
वरण किया। उसे ले कर पाण्डु हस्तिनापुर आया । बाद पांडु-(सो. कुरु.) हस्तिनापुर का कुरुवंशीय राजा
में, भीष्म के मन में पाण्डु का दूसरा विवाह करने की एवं 'पांडवो' का पिता। यह एवं इसका छोटा भाई
इच्छा हुयी। वह मंत्री, ब्राह्मण, ऋषि तथा चतुरंगिनी
सेना के साथ मद्र-राज, शल्य के नगर में गया। शल्य धृतराष्ट्र कुरुवंशीय सम्राट विचित्रवीर्य के दो 'क्षेत्रज' पुत्र । थे। इनमें से धृतराष्ट्र जन्म से अंधा था, एवं यह जन्मतः
ने आदर के साथ उसका स्वागत किया। भीष्म ने पाण्डु 'पांडुरोग से पीड़ित था । शारीरिक दृष्टि से पंगु व्यक्ति |
के लिये शल्य की बहन माद्री को माँगा। शल्य को यह
प्रस्ताव पसन्द आया। किंतु उसने कहा, 'मेरे कुल की का जीवन कैसा दुःखपूर्ण रहता है, इसका हृदय हिला | देनेवाला चित्रण, पांडु एवं धृतराष्ट्र इन दो बंधुओ के
रीति पूर्ण होनी चाहिये । इस रीति के अनुसार, स्वर्ण, चरित्रचित्रण के समय श्रीव्यास ने 'महाभारत' में
स्वर्णाभूषण, हाथी, घोड़े, रथ, वस्त्र, मणि, मूंगा तथा किया है।
अनेकानेक प्रकार के रत्न मुझे माद्री के बदले प्राप्त होना जन्म- कुरुवंश में पैदा हुए शंतनु राजा के चित्रांगद
ज़रूरी है। भीष्म ने यह शर्त मंजूर की। ये सारी चीजें एवं विचित्रवीर्य नामक दो पुत्र थे। उनमें से चित्रांगद
उसने शल्य को दी। उन्हें पा कर शल्य अत्याधिक संतुष्ट गंधर्वो के द्वारा, युद्धभूमि में मारा गया, एवं विचित्रवीर्य
हुआ तथा अपनी बहन माद्री को यथाशक्ति अलंकार छोटा हो कर भी, हस्तिनापुर के राज्य का अधिकारी हुआ।
पहना कर, उसने भीष्म के हाथों सौंप दिया। माद्री के __ पश्चात् विचित्रवीय की युवावस्था में ही अकाल मृत्यु
साथ भीष्म हस्तिनापुर आया, तथा सुमुहूर्त में पाण्डु ने हो गयी। उस समय उसकी पत्नी अंबालिका संतानरहित
माद्री का पाणिग्रहण किया (म. आ. १०५)। ।। थी। फिर कुरुकुल निर्वशी न हो, इस हेतु से विचित्र- | राज्यप्राप्ति (दिग्विजय)-पांडु के बंधुओं में से वीर्य की माता सत्यवती ने अपनी पुत्रवधू अंबालिका को | धृतराष्ट्र अंधा तथा विदुर शूद्र था। अतएव पांडु का 'नियोग' के द्वारा संतति प्राप्त करने की आज्ञा दी। | राज्याभिषेक किया गया तथा यह हस्तिनापुर का राजा पराशर ऋषि से उत्पन्न अपने ज्येष्ठ पुत्र व्यास को भी यही बना (म. आ. १०३.२३)। माद्री के पाणिग्रहण के आज्ञा सत्यवती ने दी। उस आज्ञा के अनुसार, व्यास | ठीक एक माह के उपरांत, पाण्डु संपूर्ण पृथ्वी जीतने के अंबालिका के शयनमंदिर गया। व्यास की जटाधारी एवं | उद्देश्य से बाहर निकला । इसने साथ में एक बड़ी सेना
४१०