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________________ पाणिनि प्राचीन चरित्रकोश पाणिनि (५) वन--पाणिनि के अष्टाध्यायी में निम्न वनों का | (३) परिमाण-- अंजलि (५. ४. १०२); उल्लेख प्राप्त है:-- अग्रेवण (८.४.४); कोटरवण, | आढक (५.१.५३); कंस (५.१.२५, ६.२.१२२); कुंभ पुरगावण, मिश्रकावण, शारिकावण, तथा सिध्रकावण। | (६.२.१०२); खारी (५.१.३३); निष्पाव ( ३.३.२८); (५) ग्राम व नगर-पाणिनि के अष्टाध्यायी में | पाय्य (३.१.१३९); वह (३.३.११९); शूर्प (५.१. निम्नलिखित ग्राम एवं नगरों का निर्देश प्राप्त है:- | २६; ६.२.१२२ )। अज़स्तुंद (६.१.१५५); अरिष्टपुर (६.२.१००); (४) क्षेत्रपरिमाण--अंगुलि (५.४.८६), काण्ड आश्वायन (४.२.११०); आश्वकायन या अश्वक | (४,१.२३); किष्कु (६.१.१५७) दिष्टि (६.२.७१); (४.१.९९); आसंदीवत् (८.२.१२, ४.२.८६ ); | पुरुष (४.१.२४); योजन (४ कोस; ५.१.७४); ऐषुकारिभक्त (४.२.५४); कत्त्रि (४.२.९५); कपिस्थल | वितस्ति (६.२.७१); हस्ति (५.२.३८) (७.२.९१); कापिशी (४.२.९९); कास्तीर (६.१. अष्टाध्यायी के वार्तिककार-- पतंजलि के महाभाष्य १५५); कुण्डिन (४.२.९५, गण.); कूचवार (४.३.९४); | में अष्टाध्यायी के निम्नलिखित वार्तिककारों के निर्देश प्राप्त कौशाम्बी (४.२.९७); गौडपुर (६.२.२००); चक्रवाल है:-- कात्य वा कात्यायन (३.२.११८); कुणरवाडव (४.२.८०); चिहणकंथ (६.२.१२५); तक्षशिला (४. (३.२.१४;७.३.१) भारद्वाज (१.१.२०); सुनाग ३.९३); तूदी (४.३.९४); तौषावण (४.२.८०); (२.२.१८); कोष्टा (१.१.३); वाडव (८.२.१०६), नड्वल (४.२.८८); नवनगर (६.२.८९); पलदी (४. व्याघभूति एवं वैयाघपद्य । २.११०); फलकपुर (४.२.१०१); मार्देयपुर (४.२. १०१); महानगर (६.२.८९); माहिष्मती (४.२. ___ अष्टाध्यायी के वृत्तिकार - 'अष्टाध्यायी' पर ९५); मंडु तथा खंडु (४.२.७७ ); रोणी (४.२.७८); लिखे गये 'वृत्ति' एवं भाष्यग्रंथों में, जयादित्य एवं वरण (४.२.८२); वर्मती (४.३.९४); वाराणसी (४. वामन नामक ग्रंथकारों द्वारा लिखी गयी, 'काशिका' २.९७); वार्णव (४.२.७७-१०३); शलातुर (४.३. नामक ग्रंथ अत्यधिक महत्त्वपूर्ण माना जाता है। ९४); शर्करा (४.२.८३); शर्यणावत् (४.२.८६); 'का शिका' के अतिरिक्त, निम्नलिखित वृत्तिकारों ने शिखावल (४.२.८९); श्रावस्ती (४.२.९७ ); संकल 'अष्टाध्यायी' पर भाष्य एवं वृत्तियाँ लिखी हैं । उन (४.२.७५); सरालक (४.३.९३); सांकाश्य (४.२.८०); ग्रंथकारों के लिखे हुए 'वृत्तिग्रंथ ' का निर्देश इसी सूची - सौभूत (४.२.८०); सौवास्तव (४.२.७७); हास्तिनायन में किया गया है। (६.४.१७४)। ___ 'काशिका' के पूर्वकालीन वृत्तिकार--१ कुणी (अष्टा सिक्के--पाणिनि के 'अष्टाध्यायी' में निम्नलिखित | ध्यायीवृत्ति) २. माथुर (माथुरिंवृत्ति ); ३. श्वोभूति सिक्कों का निर्देश प्राप्त है:--कार्षापण (५.१.२९:३४. | (श्वोभूतिवृत्ति); ४. वररुचि (वाररुचवृत्ति) ५. ४८); त्रिशक्त (५.१.२४); माष (५.१.३४); विंशतिक | देवनंदी (शब्दावतारन्यास), ६. दुर्विनित (शब्दावतार) (५.१.२७ ); शतमान (५.१.२७); शाण ( ५.१.३५) काशिका के उत्तरकालीन वृत्तिकार- १. भर्तृहरि सुवर्णमाशक (५.१.३४ ); सुवर्ण हिरण्य (६.२.५५)। । (भागवृत्ति); २. भीश्वर; ३. भट्टजयंत; ४. केशवः ५. परिमाणदर्शक शब्द-पाणिनि के अष्टाध्यायी में निम्न- | इंदुमित्र (इंदुमतिवृत्ति); ६. मैत्रेयरक्षित (दुर्घटलिखित परिमाणदर्शक शब्द प्राप्त हैं:-- वृत्ति); ७. पुरुषोत्तमदेव (भाषावृत्ति); ८. शरणदेव (1) कालपरिमाण-अपराह्न (४.३.२४); अहो (दुर्घटवृत्ति); ९. भट्टोजीदीक्षित (शब्दकौस्तुभ); १०. रस्त्र (२.४.२८); नक्तंदिव (५.४.७७ ); परिवासर अप्पय दिक्षीत (सूत्रप्रकाश ); ११. नीलकंठ वाजपेयी (५.१.९२.); पूर्वाह्न (४.३.२४); मास (५.१.८१); (पाणिनीय दीपिका), १२. अन्नभट्ट (पाणिनीय व्युष्ट (५.१.९७ ); संवत्सर (४.३.५०)। | मिताक्षरा); १३. स्वामी दयानंदसरस्वती (अष्टाध्यायी (२) वस्तुपरिमाण-आचित (४.१.२२, ५.१. भाष्य)। ५३); कुलिज (५.१.५५); बिस्त (४.१.२२:५.१. | पाणिनि के व्याकरण ग्रंथ--१. अष्टाध्यायी, २.धातुपाठ, ३१); भार (६.२.३८); मंथ (६.२.१२२); शाण | ३. गणपाठ, ४. उणादिसूत्र, ५. लिंगानुशासन । इनमें से (५.१,३५, ७.३.१७)। 'अष्टाध्यायी' को छोड़ कर बाकी सारे ग्रंथ, उसी मूल प्रा. च. ५२] ४०९
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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