________________
पांड
प्राचीन चरित्रकोश
भी ली। सब से पहले इसने पर्वतों पर रहनेवाले | मैं ब्रह्मलोक से वंचित किया जा रहा हूँ। मैने देव, दशाण नामक लुटेरे लोंगों को जीत लिया, एवं उनकी | ऋषि, तथा मानवों को तुष्ट किया है, तथापि पितरों को सेना तथा निशानादि छीन लिये। बाद में अनेक राजाओं | संतुष्ट नहीं कर पाया। ऐसी स्थिति में मुझे क्या करना को लूटकर उन्मत्त बने मगधाधिपति दीर्घ को उसी के चाहिये ? जिस 'नियोग' के मार्ग से मेरा जन्म व्यास प्रासाद में मारकर, उसके राज्यकोष एवं हाथियों का दल | से हुआ, उसी प्रकार क्या मेरी पत्नियों को पुत्र की प्राप्ति ले लिया। इसी प्रकार काशी, मिथिला, सुह्म तथा पुंडू | नहीं हो सकती हैं ?' ऋषियों ने अशीवाद र्वक इससे राजाओं को पराजित कर, इसने उन सारे देशों में कौरवों कहा, 'तथास्तु । उत्कृष्ट तपस्या के कारण तुम्हें यही पुत्रों का ध्वज फहराया। यही नहीं, पृथ्वी के सब राजाओं ने | की प्राप्ति हो जायेगी। पाण्डु को 'राजेंद्र' माना, तथा इसे काफ़ी नज़राने दिये । इस प्रकार अनेक देश तथा राजाओं को पादाक्रांत
पश्चात् इसने कुंती से 'नियोग' द्वारा पुत्र उत्पन्न कर दिग्विजयी हो कर, यह हस्तिनापुर लौट आया (म.
करने के लिए आग्रह किया । इसने कुंती से कहा, 'तुम्हारे आ. १०५)।
बहनोई एवं तुम्हारी बहन श्रुतसेना का पति केकयराज विभिन्न देशों को जीत कर लायी हुयी धनराशि, पांडु
शारदंडायनि 'नियोग' संतति के पुरस्कर्ताओं में से एक ने अपने बंधुबांधवों में बाँट दी । पश्चात् , धृतराष्ट्र ने पांडु
| है। पुत्रों के बारह प्रकार होते हैं। औरस संतति न होने के नाम से सौ अश्वमेधयज्ञ किये, एवं हर एक यज्ञ में
पर, स्वजातियों से अथवा श्रेष्ठ जातियों से 'नियोग' के लाख लाख स्वर्ण मुद्रायें दक्षिणा में दान दी (म. आ.
द्वारा संतति प्राप्त करने की आज्ञा शारदंडायनि ने दी है। इसलिये अपने पूर्वजों एवं स्वयं को अधोगति से बचाने
के लिये, तुम 'नियोग' से तपोनिष्ठ ब्राह्मण के द्वारा शाप-एकबार यह मृगया के लिये बन में गया था ।
संतति प्राप्त करो' (म. आ. १११)। तब मृगरूप धारण कर अपने मृगरूपधारिणी पत्नी से
___ कुंती ने इसका विरोध किया। उसने इसे कहा, मृगरूप धारण कर के मैथुन करनेवाले किंदम नामक मुनि
'व्युषिताश्व राजा की पत्नी भद्रा को उस राजा के शव से को साधारण मृग समझ कर इसने उस पर बाण छोड़े।
पुत्र उत्पन्न हुआ था। यह मार्ग कितना भी नीच क्यों इससे मुनि का मैथुनभंग हुआ, तथा उसके प्राणपखेरू उड़
न हो, पर इसे 'नियोग' से कहीं अधिक अच्छा समझती चले । मरण के पूर्व उसने पांडु को शाप दिया, 'मिथु
हूँ। तब पाण्डु ने क्रुद्ध हो कर कहा, 'पुत्रोत्पत्ति के लिए नासक्त अवस्था में मेरा वध करनेवाले तुम्हारी मृत्यु भी
समागम करने की आज्ञा पति के द्वारा दी जाने पर, जो मैथुनप्रसंग में ही होगी' (म. आ. १०९.२८)।
स्त्री वैसा आचरण नहीं करती, उसे भ्रूणहत्या का पाप इस शाप के कारण, पांडु को अत्यधिक पश्चात्ताप हुआ,
| लगता है। उद्दालकपुत्र श्वेतकेतु नामक आचार्य का यही तथा इसने संन्यासवृत्ति लेकर अवधूत की तरह रहने |
धर्मवचन है। इसी धर्मवचन के अनुसार, सौदास राजा ने का निश्चय किया । इसके साथ इसकी पत्नियों ने भी
अपनी पत्नी दमयंती का समागम वसिष्ठ ऋषि से करवा कर, वानप्रस्थाश्रम में रह कर तपस्या करने की इच्छा प्रकट
'अश्मक' नामक पुत्र प्राप्त किया था '। इतना कह कर, की । कुन्ती तथा माद्री को साथ लेकर यह घूमते घूमते
पाण्डु ने कुन्ती को स्मरण दिलाया, 'मेरा जन्म भी व्यास नागशत, कालकूट, हिमालय तथा गंधमादन आदि पर्वतों
के द्वारा इसी 'नियोग' मार्ग से हुआ है। (म. आ. को लाँध कर, चैत्ररथवन गया। वहाँ से यह इन्द्रद्युम्न
११२-११३)। सरोवर गया। पश्चात् हंसगिरि पर्वत को लाँघ कर यह शतशंगगिरि पर गया, और वहाँ तपस्या करने लगा | पुत्रप्राप्ति-फिर कुन्ती ने पांडु को दुर्वासा के (म. आ. ११०)।
द्वारा उसे प्राप्त हुए पुत्रप्राप्ति के मंत्र की कथा बताकर पुत्रेच्छा—एक बार कुछ ऋषि ब्रह्माजी से मिलने जा | कहा, 'उस मंत्र का जप कर, इष्टदेवता का स्मरण रहे थे। पाण्ड को भी उनके साथ स्वर्ग जाने की इच्छा | करने पर तुझे अवश्य पुत्रप्राप्त होगा। फिर पांडु हुई। किंतु ऋषियों ने इसे कहा, 'तुम हमारे साथ ब्रह्मलोक | के आज्ञा के अनुसार, कुन्ती ने उस मंत्र का तीन बार न जा सकोगे, क्योंकि, तुम निःसंतान हो। फिर पाण्डु | जाप कर, क्रमशः यमधर्म, वायु एवं इंद्र को आवाहन ने उनसे कहा, 'निःसंतान होने के कारण, आज किया। उन देवताओं के अंश से कुन्ती को क्रमशः