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प्राचीन चरित्रकोश
अनु
(म. आ. ६० २४ ब्रह्माण्ड २. २. २९ २६ विष्णु. १. १५. ११० - ११५ ) ।
२. एक क्षत्रिय । शैब्य अथवा वृषादर्भी का पुत्र । वृषादर्भी ने अपने एक यश में इसे दक्षिणा कह कर, सप्तर्पियोंको अर्पण किया। परंतु अल्पायु होने के कारण, शीम ही इसकी मृत्यु हो गई। उस समय भयंकर अवर्षण होने के कारण, अत्यंत क्षुधातुर सप्तर्षियों ने इसे स्थाली में पका कर खाने का विचार किया । परंतु यह पका नही अतएव वह कार्यरूप में न आ सका ( म. अनु. ९३ ) ।
२. मित्रबिंदा से कृष्ण को प्राप्त पुत्रों में से एक ( भा. १०. ६१. १६.) ।
४. (सो. पूरु. ) विष्णु के मत में तंसु का पुत्र । ५. गरुड़ का पुत्र (म. उ. ९९६९ ) ।
२. (सो. यदु. ) शूर राजाका पुत्र |
३. श्रीकृष्ण अनुयायी एक यादव (म. आ. २१३, २६; अनिल वातायन - सूक्तद्रष्टा (ऋ. १०१६८ ) । स. ३.५७; वि ६७.२१; उ. १४९.६२ ) । अनिष्टकर्मन (आंध्र भविष्य ) ब्रह्मांड के मताअनाधृष्य - धृतराष्ट्र पुत्रों में से एक (म. आ. ६१ नुसार पटुमानपुत्र तथा भागवत मतानुसार अटमानपुत्र । - १०४ ) । विष्णु के मतानुसार अरिष्टकर्मन् पाठ है।
अनानत पारुच्छेप -- एक सूक्तद्रष्टा (ऋ. ९.११ ) । अनायुष - इसके मान के कारण इसके पुत्र की मृत्यु .हुई (मार्के. २४.१६)।
अनीकविदारण जयद्रथ का अंधु (म. ६. २४९. १२ ) ।
अनील कश्यप तथा क्टू का पुत्र ।
अनीह - ( स इ.) भागवतमत में देवानीकपुत्र | इसे अहीनरादि नामांतर हैं ।
अनसूया
से सीता के साथ बातें की। उसे अलंकार पहना कर बड़े . प्यार से बिदा किया ( वा. रा. अयो. ११७- ११९ ) ।
मांडव्य ऋषि को जब शूली पर चढाया गया था, तब उस झूल को अंधकार में एक पिनी का धोखे से ऋषिपत्नी धक्का लगा, तब मांडव्य ने उसे शाप दिया कि, सूर्योदय होते ही तुम विधवा हो जाओगी तब उसने सूर्योदय ही नहीं होने दिया। इससे सारे व्यवहार बंद हो गये। उसकी अनसूया सखी होने के कारण, जब प्रार्थना की गई तब उसे वैधव्य प्राप्ति न होने देते हुए, इसने सूर्योदय करवा कर समस्त संसार को सुखी किया ( मांडव्य देखिये) । अनाधृष्टि - (सो. पुरु. ) रौद्राश्व का पुत्र ( म. आ. ८९.१०)। इसकी पत्नी एक अप्सरा थी।
अनायुषा - एक राक्षसी । इसे अररु, बल, विज्वर, "बुत्र व नृप नामक पुत्र थे (ब्रह्माण्ड ३.६.२२ ३७ ) | अनिकेत-यक्ष (म.स. १०.१७ ) ।
अनिमिष - गरुड का पुत्र ( म. उ. ९९.१० ) ।
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अनु-- दाशराश्युद्ध में मुदास के शत्रुओं में से एक ( . ७. १८. १४) । इन्द्र का रथ अनु ने बनाया (ऋ. ५. ३१. ४ ) । यह कारिगर तथा इन्द्र का उपासक था (ऋ. ८.४.१ ) ।
अनिरुद्ध--(सो. यदु.)-प्रद्युम्न को रुक्मकन्या से उत्पन्न पुत्र यह दस हजार हाथियों के बल से युक्त था (मा. १०.९०.३५-३६, विष्णु, ५३२.५ पर्यंत उखाड कर यह उससे शत्रु को मारा करता था। इसकी अनेक पत्नीयाँ थी तथा सुरा पी कर यह उनसे रममाण होता था (ह. वं. २.११८.७३; ११९. २६ - २७ ) । इसे रुक्मिपौत्री रोचना से वज्र उत्पन्न हुआ ( भा. १०, ६१ ) । इसेही प्राम्नि ऐसा दूसरा नाम है। इसने अन्य यदु कुमारों के साथ अर्जुन के पास धनुर्वेद सीखी ( म. स. ४.२९.५३) । इसने बाणासुर की कन्या उपा के साथ गांधर्व विधि से विवाह किया। यह राजसूय यज्ञ में था ( म. स. ३१.१५ ) ।
२. (सो.) ययाति को शर्मिष्ठा से उत्पन्न तीन पुत्रों में से ज्येष्ठ (म. आ. ७० ३२ ) । इसने यदु के ही समान, पिता का वृद्धत्व स्वीकार नही किया अतएव इसे मुख्य राज्याधिकार नही था । यह उत्तर में म्लेच्छों का राजा बना ( मत्स्य. ३३. २२-२३ ) ।
अनु से ले कर कर्णपुत्र वृषसेन तक का वंश भागवत में उद्धृत किया हैं ( भा. ९. २३.१ - १४ ) । अनु से आखाँ पुरुष महामनस् को, उशीनर तथा तितिक्षु नामक दो पुत्र हुए । उशीनर शाखा से केकय तथा मद्रक निकले । ये भारत की वायव्य सीमा की और फैले तथा
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२. अठारह वास्तुशास्त्रकारों में से एक ( मत्स्य. २५२. बलि के पुत्र, अंग, वंग, कलिंग, सुहा, पुंड्र तथा आन्ध्र ये ३-४) । पूर्व भारत में सागर तक फैल गये । इनमें दशरथ का स्नेही रोमपाद पैदा हुआ उसकी पुत्री शान्ता, ऋप्यरंग की पत्नी । इसी ऋष्यशृंग के कारण दशरथ को रामादि पुत्र-
अनिल - अष्टवसूओं में से एक। इसकी पत्नी का नाम शिवा । इसे मनोजव एवं अविज्ञानगति नामक दो पुत्र थे
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