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________________ पाणिनि प्राचीन चरित्रकोश पाणिनि विशुद्धरूप में प्राप्त हो कर भी, उनका अर्थ अस्पष्ट एवं प्राप्त की, एवं वहाँ शास्त्रपरीक्षा में यह उत्तीर्ण हुआ धुंधला सा प्रतीत होता है । संस्कृत व्याकरणशास्त्र की श्रेष्ठ (काव्यमी. १०)। माहेश्वर को भी पाणिनि का गुरु परंपरा के कारण, पाणिनीय व्याकरण के शब्द एवं अर्थ | कहा गया है, जिसका कोई आधार नहीं मिलता है। कई दोनों भी विशुद्ध रूप में आज.भी उपलब्ध है । इस कारण | अभ्यासकों के अनुसार, पाणिनि की शिक्षा तक्षशिला में ऐतिहासिक दृष्टि से, पाणिनि के 'अष्टाध्यायी' का मूल्य हुई थी (एस्. के. चटर्जी, भारतीय आर्यभाषा तथा हिंदी' वैदिक ग्रंथों की अपेक्षा आज अधिक माना जाता है। | पृ.६६)। कई वर्षों के पूर्व, केवळ शब्दसिद्धि के दृष्टि से पाणिनी के अनेक शिष्य भी थे (महा. १.४.१)। 'पाणिनीय व्याकरण' का अध्ययन किया जाता था। फिर उनमें 'कौत्स' नामक शिष्य का निर्देश 'महाभाष्य' में कई अध्ययनशील लोगों ने ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक | प्राप्त है (३.२.१०८)। दृष्टि से 'पाणिनीय व्याकरण' की समालोचन करने का अष्टाध्यायी के प्राणभूत १४ सूत्रों का अध्ययन करने कार्य शुरू किया, एवं ऐतिहासिक सामग्री का एक नया | पर पता चलता है कि, पाणिनि ने शिवोपासना कर के विश्व, अभ्यासकों के लिये खोल दिया। ई. पू. ५०० ।। । इ. पू. ५०० | १४ माहेश्वरी सूत्रों' (प्रत्याहार सूत्रों) की प्राप्ति साक्षात् के लगभग भारत में उपलब्ध प्राचीन लोकजीवन की | शिवजी से की थी, एवं उन सूत्रों के आधार पर अपने जानकारी पाने के लिये, एवं उस काल के ऐतिहासिक व्याकरणग्रंथ की रचना की। अंधयुग में नया प्रकाश डालने के लिये 'पाणिनीय व्याकरण' का अध्ययन अत्यावश्यक है, यह विचारप्रणाली __ निवासस्थान-' शालातुरीय' नाम से, पाणिनि' आज सर्वमान्य हो चुकी है। इस नयी विचारप्रणाली के शलातुर ' ग्राम का रहनवाला था, ऐसा कई अभ्यासका निर्माण का बताया विटापी के डॉ| का कहना है (वर्धमान कृत 'गणरत्न महोदधि' पृ... वासुदेवशरण अग्रवाल एवं उनके ग्रंथ 'पाणिनिकालीन | १)। अफगानिस्थान की सीमा पर, अटक के समीप स्थित भारतवर्ष' को देना जरूरी है। आधुनिक लाहुर ग्राम ही प्राचीन शलातुर है । अन्य कई नामांतर--पुरुषोत्तमदेव के 'त्रिकांडशेष' कोश के | | अभ्यासकों के अनुसार, शलातुर पाणिनि का जन्मस्थान न | हो कर, इसके पूर्वजों का निवासस्थान था। पाणिनि का अनुसार, पाणिनि को निम्नलिखित नामांतर प्राप्त थे:-- पाणिन् , दाक्षीपुत्र, शालंकि, शालातुरीय, एवं आहिक। जन्म वाहीक देश में कहीं हुआ था (अष्टा. ४.२. ११७)। मातापिता-पतंजलि ने पाणिनी को 'दाक्षीपुत्र' कहा है, जिससे प्रतीत होता है की, पाणिनि के माता का नाम | काल-पाणिनि पारसीकों तथा उनके सेवक यवनों 'दाक्षी' था, एवं वह दक्षकुल से उत्पन्न था (महा. | या ग्रीकों से परिचित था। उससे पाणिनी का काल १.१.२०)। इसके पिता का नाम 'शलंक' था, एवं संभवतः ५ वी शताब्दी ई. पू. रहा होगा । डॉ. पाणिनि' इसका कुलनाम था। हरिदत्त के अनुसार, अग्रवाल के अनुसार, ४८०-४१० ई. पू., पाणिनि पाणिपत्र 'पाणिन् ' नामक ऋषि का पाणिनि पुत्र था | का काल था। पाणिनि की मृत्यु एक सिंह के द्वारा हुई (पदमंजरी २.१४)। छंदःशास्त्र का रचयिता पिंगल ऋषि | थी (पंचतंत्र श्लो. ३६)। पाणिनि का छोटा भाई था (षड्गुरुशिष्यकृत 'वेदार्थ- पूर्वाचार्य--पाणिनि को लौकिक संस्कृत का पहला दिपिका')। व्याडि नामक व्याकरणाचार्य को 'दाक्षायणि' | वैय्याकरण माना जाता है। किंतु स्वयं पाणिनि ने नामांतर था, जिससे प्रतीत होता हैं कि, वह पाणिनि का | 'अष्टाध्यायी' में 'पाराशर्य' एवं 'शिलालि' इन मामा था । व्याडि के 'संग्रह' नामक ग्रंथ की प्रशंसा | दो पूर्वाचायों का, एवं उनके द्वारा विरचित पतंजलि ने की हैं (महा. २.३.६६)। 'भिक्षुसूत्र' एवं 'नटसूत्र' नामक दो ग्रंथो का निर्देश अध्ययन-पाणिनि के विद्यादाता गुरु का नाम 'वर्ष' किया है (अष्टा.४.३.११०)। उनके सिवा, 'अष्टाध्यायी' था (कथासरित. १.४.२०)। ब्रह्मवैवर्त के अनुसार, में निम्रलिखित आचार्यों का निर्देश प्राप्त है--अपिशालि शेष इसका गुरु था (ब्रह्मवै. प्रकृति. ४.५७)। काव्य- (६.१.९२), काश्यप (८.४.६७), गार्ग्य, गालव मिमांसा के अनुसार, वर्ष, उपवर्ष, पिंगल एवं व्याडि इन (६.३.६१, ७.१.७४; ३.९९; ८.३.२०; ४.६७), सहाध्यायियों के साथ, पाणिनि ने पाटलीपुत्र में शिक्षा | चाक्रवर्मन (६.१.१३०), भारद्वाज (७.२.६३), ४०६
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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