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________________ पांचाल ब्राह्मणग्रंथों में ' पांचाल ' नाम से किया हुआ प्रतीत होता है ( पंचाल देखिये) । प्राचीन चरित्रकोश 9 इन लोगों के देश के, 'उत्तर पांचाल एवं 'दक्षिण पांचाल ' ऐसे दो विभाग, गंगा नदी के द्वारा किये गये थे । उनमें से उत्तर पांचाल देश पर 'नील' राजवंश का । राज्य था, एवं दक्षिण पांचाल पर 'अजमीढ ' वंश का । इसी देश का पश्चिम-पूर्व प्रदेश 'प्राच्य पांचाल ' नाम से सुविख्यात था ( संहितोपनिषद् ब्राह्मण २ ) | महाभारत काल में दक्षिण पांचाल देश का राजा द्रुपद था, एवं उसकी कन्या द्रौपदी थी। पांचाल देश की होने के कारण उसे 'पांचाली' नामांतर प्राप्त था (म. आ. .)1 २. दुर्मख एवं शोण राजाओं का नामांतर (ऐ.ब्रा. ८.२३ श. बा. १२.५.४.७) । पंचाल जाति के लोगों का राजा होने के कारण, उन्हें यह नाम प्राप्त हुआ था । ३. एक ऋषि । इसका मूल नाम 'सुबालक' या 'गाव' था । इसका गोत्र 'बाभ्रव्य ' था, एवं यह ' पंचाल ' देश का रहनेवाला था । इस कारण इसे ' बाभ्रव्य पांचाल कहते थे (बाभ्रव्य देखिये) । , वामदेव द्वारा बताये ध्यानमार्ग से इसने भगवान् की आराधना की। उसीके कृपां से वेदों का क्रमविभाग करने का दुष्कर कार्य, यह सर्वप्रथम कर सका ( म. शां. • ३२०.२०-२८] पितृवर्तिन् देखिये) । पांचालचंड--एक वैदिक ऋषि । वैदिक संहिता का 'तत्त्वज्ञान की दृष्टि से अर्थ लगाने के लिये ' वाचू' (वाणी) यही संहिता है, ऐसा इसका मत था ( ऐ.आ. २.१.६) । पांचाली -- पांचाल देश के द्रुपद राजा की कन्या 'द्रौपदी' का नामांतर ( भा. १.७.३८; द्रौपदी देखिये) । पांचाल्य—आरुणि उद्दालक ऋषि का नामांतर (म. आ. ३.२४) । यह स्वैदायन शौनक एवं शौचेय प्राचीनयोग्य ऋषियों का समकालीन था ( श. बा. ११. ४.१ - ९ ) । इसके शिष्यों में कहोद ( कौशीतकी) प्रमुख था, एवं इसने अपनी सुजाता नामक कन्या उसे विवाह में दी (उद्दालक देखिये) । पांचि -- एक वैदिक ऋषि । ' पंचन् ' का वंशज होने से इसे 'पांचि नाम प्राप्त हुआ था (श. ब्रा २१. ४.२७ ) । ' सोमयज्ञ' में, तीन अंगुल ऊँची वेदि बनाने की पद्धति इसने प्रस्थापित की ( श. बा. १.२.५.९ ) । पाणिनि पाटव' चाल ' नामक वैदिक ऋषि का पैतृक नाम श. बा. १२.८.१.१७१ ९२.१) । 'पटु का वंशज इस अर्थ से 'पाटन शब्द का उपयोग किया होगा । ' पाटिक - 'श्याम पराशर ' के कुल में उत्पन्न एक ऋषि ( पराशर देखिये) । पाडक-वायु के अनुसार, व्यास की सामशिष्य परंपरा के हिरण्यनाभ ऋषि का शिष्य पाठभेद-'मांडूफ' । । पाणिक - अंगिराकुल का एक ऋषि । पाणिकर्मखंद का एक सैनिक (म. . ४४.७१) । पाठभेद' पाणि कूर्च | -- पाणिन कश्यप एवं कटू का पुत्र, एक नाग। पाणिनि-लौकिक संस्कृत भाषा का वैयाकरण, जिसका 'अष्टाध्यायी' नामक ग्रंथ संस्कृतभाषा का श्रेष्ठतम व्याकरणग्रंथ माना जाता है । C संस्कृत भाषा के क्षेत्र में, एक सर्वथा नये युग के निर्माण का कार्य आचार्य पाणिनि एवं इसके द्वारा निर्मित 'पाणिनीय व्याकरण' ने किया । यह युग लौकिक संस्कृत का युग कहा जाता है, जो वैदिक युग की अपेक्षा सर्वधा भिन्न है । जब वैदिक संस्कृत भाषा पुरानी एवं दुर्बोध होने लगी, तब उत्तर पश्चिम एवं उत्तर भारत के ब्राह्मणों में उस भाषा का एक आधुनिक रूप साहित्यिक भाषा के रूप में प्रस्थापित हुआ । इस नये साहित्यिक भाषा को व्याकरणबद्ध करने का महत्त्वपूर्ण कार्य पाणिनि ने किया, एवं इस भाषा को 'लौकिक संस्कृत' यह नया नाम प्रदान किया । पाणिनि केवल व्याकरणशास्त्र का ही आचार्य नहीं था। एक व्याकरणकार के नाते, खौकिक संस्कृत का भाषाशास्त्र एवं व्याकरणशास्त्र की सामग्री इकठ्ठा करते करते, तत्कालीन भारतवर्ष ( ५०० ई. पू.) की राजकीय, सांस्कृतिक, सामाजिक, एवं भौगोलिक सामग्री शास्त्रदृष् करने का महान् कार्य पाणिनि ने किया । अन्य व्याकरणकारों की अपेक्षा, इस कार्य में पाणिनि ने अत्यधिक सफलता भी प्राप्त की । इस कारण, पाणिनि की 'अष्टाध्यायी' वेद के उत्तरकालीन एवं पुराणों के पूर्वकालीन प्राचीन भारतीय इतिहास का श्रेष्ठतम प्रमाणग्रंथ माना जाता हैं । ढाई सहस्त्र वर्षों के दीर्घ कालावधि के पश्चात्, पाणिनि के ' अष्टाध्यायी' का पाठ जितने शुद्ध एवं प्रामाणिक रूप में आज भी उपलब्ध है, उसकी तुलना केवल वेदों के विशुद्ध पाठों से की जा सकती है। किंतु वेदों के शब्द हमें पाटल - - एक वानर । विभीषण से मिलने लंका जा रहे राम से, यह किष्किंधा नगरी में मिला था, एवं इसने राम का बड़े ही भक्तिभाव से दर्शन लिया (पद्म. सृ. ३८ ) । ४०५
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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