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________________ परिक्षत् प्राचीन चरित्रकोश परिप्लव मांत्रिक, राजा का विष उतार कर, द्रव्य प्राप्ति की इच्छा | परिक्षित् न कर सका, एवं तक्षक के हाथों इसकी मृत्यु हो से राजा के पास जा रहा था। उसे विपुल धनराशि | गयी। दे कर तक्षक ने वापस भेज दिया (काश्यप २. पौराणिककाल-परीक्षित के राज्यारोहण से ले कर, देखिये)। मगध देश के बृहद्रथ राजवंश के समाप्ति तक का काल, • तक्षकदंश-तक्षक ने कुछ नागों को फल, मूल, दर्भ, | प्राचीन भारतीय इतिहास में 'पौराणिककाल' माना उदक आदि देकर तापस वेश से परिक्षित् के पास भेजा। जाता है। यह कालखंड भारतीययुद्ध (१४०० ई. पू.) तक्षक स्वयं अतिसूक्ष्म जन्तु का रूप धारण कर फलों में से शुरु होता है, एवं मगध देश में 'नंद राजवंश' के प्रविष्ट हुआ। तापसवेषधारी नाग राजद्वार के पास | उदयकाल (४०० ई. पू.) से समाप्त होता है। इस काल आकर कहने लगे, 'हम राजा को अथर्वण मंत्रों से | में उत्तर एवं पूर्वभारत में उत्पन्न हुये पौरव, ऐक्ष्वाकु, आशीर्वाद देकर अभिषेक करने के लिये, तथा राजा को | एवं मागध राजाओं की विस्तृत जानकारी पुराणों में मिलती उत्कृष्ट फल देने के लिये आये हैं।' है। उन राजाओं के समकालीन पंचाल, काशी, हैहय, परिक्षित ने उनके फल स्वीकार किये। वे फल सुहृदों | कलिंग, अश्मक, मैथिल, शूरसेन एवं वीतहोत्र राजवंशों की को खाने के लिये दे कर, इसने एक बड़ा सा फल स्वयं | प्रासंगिक जानकारी पुराणों में दी गयी है । कहीं-कहीं तो, खाने के लिये फोड़ा। उसमें से एक सूक्ष्म जन्तु बाहर | विशिष्ट राजवंश में पैदा हुए राजाओं की केवल संख्या ही निकला। उसका वर्ण लाल तथा आखें काली थी। उसे | पुराणों में प्राप्त है। पुराणो में प्राप्त इस 'कालखंड' की देख कर, परिक्षित् ने बड़े ही व्यंग्य से मंत्रियों से कहा, | जानकारी, आधुनिक उत्तर प्रदेश एवं दक्षिण बिहार से 'आज सातवाँ दिन है, एवं सूर्य अस्ताचल को जा रहा | मर्यादित है। है। फिर भी नागराज़ तक्षक से. मुझे भय प्राप्त नहीं पुराणों के अनुसार, 'परिक्षित्जन्म' से लेकर मगध हुआ। इसलिये कहीं यह जन्तु ही तक्षक न बन जाये, | देश के महापन नंद के अभिषेक तक का कालावधि, एक तथा मुझे डस कर मुनिवाक्य सिद्ध न कर दे। हजार पाँचसौ वर्षों का दिया गया है (मत्स्य. २७३.३६)। . इतना कह कर परिक्षित् ने उस जन्तु को अपनी गर्दन | किंतु 'विष्णुपुराण' में 'ज्ञेय' के बदले 'शतं' पाठ पर धारण किया । तत्काल तक्षक ने भयंकर स्वरूप धारण | मान्य कर, यही अवधि एक हजार एक सौ पंद्रह वर्षों का कर इसके शरीर से लिपट गया, तथा अपने मुख से | निश्चित किया गया है (विष्णु. ४.२४.३२)। निकलनेवाली भयंकर विषमय ज्वालाओं से परिक्षित् ७. एक प्राचीन नरेश, जो कुरुवंशी अभिमन्युपत्र से के शरीर को दग्ध करने लगा। पश्चात् तक्षक आकाशमार्ग भिन्न था। इसके पुत्र जनमेजय की ब्रह्महत्या का . से चला गया (म. आ. ३६-४०, ४५-४७; दे. भा. निवारण इन्द्रोत मुनि ने किया था (म. शां. १४७२.८-१०)। १४८)। भागवत के अनुसार, ब्राह्मणरूप धारण कर, तक्षक ने परिघ-(सो. क्रोष्ट.) एक राजा । मत्स्य तथा वायु परिक्षित् के महल में प्रविष्ट पाया, तथा परिक्षित को दंश किया। जिससे परिक्षित् की मृत्यु हो गयी (भा. १२.६)। | के अनुसार, यह रुक्मकवच का पुत्र था । पद्म के अनुसार, मृत्यु के समय इसकी आयु छियान्नवे वर्ष की थी। इसने यह रुक्मकवच का पौत्र, एवं परावृत् का पुत्र था (पन. कुल साठ वर्षों तक राज्य किया (दे. भा. २.८)। सु. १३)। इसे पालित तथा पुरुजित् नामांतर प्राप्त थे । परिक्षितकथा का अन्वयार्थ--महाभारत एवं पुराणों । । २. अंशद्वारा स्कंद को दिये गये पाँच पार्षदों में से में प्राप्त 'परिक्षित्वध' की उपनिर्दिष्ट कथा ऐतिहासिक एक । अन्य चार पार्षदों के नाम इस प्रकार थेः-वट, दृष्टि से यथातथ्य प्रतीत होती है। परिक्षित् के राज्यकाल भीम, दहति, एवं दहन। में, गांधार देश में नाग लोगों का सामर्थ्य काफी बढ़ गया ३. बिडालोपाख्यान में वर्णित व्याध का नाम (म. था। भारतीययुद्ध के कारण, हस्तिनापुर के पौरव राज्य | शां. १३६-११०)। क्षीण एवं बलहीन बन गया था। उसकी इस दुर्बल अवस्था | परिप्लव--(सो. कुरु. भविष्य.) एक राजा । विष्णु के का फायदा उठा कर, नागों के राजा तक्षक ने हस्तिनापुर | अनुसार, यह सुखीबल राजा का पुत्र था। किन्तु भागवत पर आक्रमण किया। तक्षक के इस आक्रमण का प्रतिकार | में इसे सुखीनल का पुत्र कहा गया है। इसके नाम के प्रा. च. ५१] ४०१
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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