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________________ परिक्षित् प्राचीन चरित्रकोश परिक्षित् का नाम 'परीक्षित् ' होना चाहिये। किंतु महाभारत में में निमग्न था, अतएव जल के लिये की गई याचना सुन सर्वत्र इसका नाम 'परिक्षित् ' दिया गया है। महाभातर | न सका। क्रोधित हो कर, धनुष की नोक से ए क मृत सर्प के अनुसार, कुरुवंश 'परिक्षीण' होने के पश्चात् इसका उठा कर, इसने शमीक ऋषि के गले में डाल दिया, और जन्म हुआ, इस कारण 'परिक्षित् ' नाम प्राप्त हुआ (म. | अपने नगर वापस लौट आया (म. आ. ३६.१७-२१)। आश्व. ७०.१०) पास ही खेल रहे शमीक ऋषि के शुंगी नामक पुत्र को श्रीकृष्ण के मृत्यु के पश्चात् , युधिष्ठिर ने छत्तीस वर्षों | यह ज्ञात हुआ। उसने क्रोधित हो कर इसे शाप दिया, तक राज्य किया। पश्चात् युधिष्ठिर ने राज्यत्याग कर, इसे | मेरे पिता के कंधे पर मृत सर्प डाल कर जिसने उसका राजगद्दी पर बैठाया गया (म. महा. १.९) बाद में द्रौपदी | अपमान किया है, उस परिक्षित् राजा को आज से के सहित सारे पाण्डव महाप्रस्थान के लिए चले गये। सातवें दिन मेरे द्वारा प्रेरित नागराज तक्षक दंश करेगा। राज्याभिषेक के समय यह छत्तीस वर्ष का था। इसकी इस कथा में से शमीक ऋषि के पुत्र का नाम, कई जगह पत्नी भद्रवती थी। बंबई आवृत्ति में इसका नाम भाद्रवती 'गविजात' दिया गया है। प्राप्त है। भागवत में लिखा है कि, इसके मातुल बाद में, शमीक को अपने पुत्र का शापवचन ज्ञात की कन्या इरावती इसकी पत्नी थी। उससे इसे जनमेजय, हुआ। उसने अपने शिष्य गौरमुख के द्वारा यह शाप श्रुतसेन, उग्रसेन तथा भीमसेन नामक चार पुत्र हुयें (म. परिक्षित को सूचित कराया, और पुत्र की भर्त्सना की (म. आ. ९०-९३; आश्व.६८; भा. १.१२.१६; ९.२२.३५)। आ. ३८.१३-२८)। राज्य में कलिम्वेश-कृपाचार्य को ऋत्विज बना कर, इसने | शाप का पता चलते ही, परिक्षित् को अपने कृतकर्म भागीरथी के तट पर तीन अश्वमेधयश किये। इसके यज्ञ का पश्चाताप हुआ। अपनी सुरक्षा के लिये, इसने सात में देव प्रत्यक्ष रूप से अपना हविर्भाव लेने आये थे। मंजिलवाला स्तम्भयुक्त महल बनवाया, एवं औषधि, जब यह कुरजांगल देश में राज्य कर था, इसे ज्ञात हुआ। मंत्र आदि जाननेवालों मांत्रिको के समेत यह वहाँ कि कलि ने राज्य में प्रवेश लिया है। तत्काल यह रहने लगा। भागवत में लिखा है की, शाप सुनते ही अपनी चतुरंगी सेना ले कर निकल पड़ा । भारत. परिक्षित् को वैराग्य उत्पन्न हो गया, और यह गंगा. के केतुमाल, उत्त कुरु, भद्राश्व आदि खण्ड जीत कर, इसने | किनारे प्रायोपवेशन के विचार से ईश्वर का ध्यान करने । वहाँ के राजाओं से करभार प्राप्त किया। लगा। वहाँ अत्रि, अरिष्टनेमि इत्यादि कई ऋषि आये। ___एक बार इसने सरस्वती के किनारे गोरूप धारी पृथ्वी, | बाद में इसने अपने पुत्र जनमेजय का राज्याभिषेक तथा तीन रोंवाले वृक्षभरूपधारी धर्म का संवाद सुना। किया। महाभारत में दिया गया है कि, परिक्षित की मृत्यु इस संबाद से इसे पता चला कि, श्रीकृष्ण के निजधाम | के बाद जनमेजय का राज्याभिषेक हुआ। ऋषियों के चले जाने के कारण, कलि ने इस पृथ्वी में प्रवेश पा लिया | बीच बातचीत चल ही रही थी कि सोलहवर्षीय ३ काचार्य है, और शूद्ररूप धारण कर वह सब को दुःख देता ऋषि सहज भाव से उस स्थान पर उपस्थित हुआ । सबने हुआ गाय बैलों को मार रहा है। इस से खिन्न हो | उनका स्वागत किया। परिक्षित् ने भी उसे उच्चासन कर कलि को समाप्त करने के लिये यह उद्यत हो उठा।| दिया तथा श्रद्धा के साथ उनकी पूजा की । इसने उनसे कलि इसकी शरण में आया। इसके राज्य से बाहर जाने | मरणोन्मुख पुरुष के निश्चित कर्तव्य तथा सिद्धि की आज्ञा स्वीकार कर उसने राजा से पूछा, 'मेरे निवास | के साधन पूछे। इसके सिवाय और भी प्रश्न किये। के लिये कौन कौन स्थान हैं ?' तब जुआ, मद्य, व्यभिचार, | शुक्राचार्य ने इसके सारे प्रश्नों के यथायोग्य उत्तर दिये हिंसा, तथा स्वर्ण नामक पाँच स्थान, राजा ने कलि के रहने | (भा. १.१७.१९; २.८)। इस प्रकार समग्र ‘भागवत' के लिये नियत किये। इससे धर्म तथा पृथ्वी को भी | पुराण शुकाचार्य के द्वारा श्रवण कर, यह पूर्ण ज्ञानी बना। संतोष हुआ (भा. १.१६.१७)। इसका तक्षक दंश का भय नष्ट हुआ, तथा शुकाचार्य भी शाए--एक बार जब यह मृगया के लिये अरण्य में | वहाँ से चला गया। गया था, तब अत्यधिक प्यासा हो कर पीने के लिए जल | पूर्व में दिये गये शाप के अनुसार, प्राषिपुत्र शंगी के हूँढ़ने लगा। इधर उधर जल ढूँढ़ने के उपरांत, यह | द्वारा सातवें दिन भेजा गया तक्षक, परिक्षित् को दंश शमीक ऋषि के आश्रय गया। शमीक उस समय ध्यान | करने जा रहा था। इसी समय मार्ग में काश्यप नामक ४००
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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