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________________ पराशर प्राचीन चरित्रकोश परिक्षित् ८. एक ऋषि । इसने ऋतुपर्णपुत्र नल राजा का रक्षण | प्रकार थे:--शबलाश्व, आदिराज, विराज, शाल्मलि, किया था (भा. ९.९.१७; सर्वकर्मन् देखिये)। उच्चैःश्रवा, भंगकार और जितारि। परिकूट--विश्वामित्रकुल का एक गोत्रकार । । इसके माता का नाम वाहिनी था। इसे कुल सात परिकृष्ट-- वायु और ब्रह्मांड के अनुसार, व्यास की पुत्र थे। उनके नाम--१. कक्षसेन, २. उग्रसेन ३.चित्रसेन, सामशिष्यपरंपरा के हिरण्यनाभ ऋषि का शिष्य। ४. इंद्रसेन, ५. सुषेण, ६. भीमसेन, ७. जनमेजय (म. परिक्षित्-एक कुरुवंशीय वैदिक राजा । अथर्ववेद | आ. ८९.४६-४८)। वे सारे पुत्र धर्म एवं अर्थ के में इसके राज्य की समृद्धि एवं शान्ति का गौरवपूर्ण ज्ञाता थे। निर्देश किया गया है (अ. वे. २०.१२७.७-१०)। ४.(सो. कुरु.) एक कुरुवंशीय राजा। यह कुरु अथर्ववेद के जिन मंत्रों में इसकी प्रशस्ति है, उन्हें ब्राह्मण | राजा अरुग्वत् (अनश्वत् ) एवं मागधी अमृता का ग्रंथों में 'पारिक्षित्य मंत्र' कहा गया है (ऐ. ब्रा ६.३२. पुत्र था। इसकी पत्नी का नाम बाहुदा सुयशा था। उससे १०; कौ. ब्रा. ३०.५; गो. बा. २.६.१२; सां. श्री. १२- इसे भीमसेन नामक पुत्र हुआ था। कुरु राजा से लेकर १७; सां. ब्रा. ३०.५.)। शंतनु तक का इसका वंशक्रम इस प्रकार है:--कुरु-विडूरथ वैदिक साहित्य में जनमेजय राजा का पैतृक नाम | अरुग्वत्-परिक्षित्-भीमसेन -प्रतीप--शंतनु (म. आ. 'पारिक्षित' दिया गया हैं। वह उपाधि उसे वैदिक | ९०.४३-४८)। साहित्य में निर्दिष्ट 'परिक्षित् ' राजा के पुत्र होने से | ५. एक कुरुवंशीय सम्राट् । यह अर्जुन का पात्र तथा मिली होगी। अभिमन्यु एवं उत्तरा का पुत्र था। महाकाव्य में इसे 'प्रतिश्रवस्' का पितामह एवं भारतीय युद्ध के पश्चात् , हस्तिनापुर के राजगद्दी पर 'प्रतीप' का प्रपितामह कहा गया है । सिमर के अनुसार, | बैठनेवाला पहला 'कुरुवंशय' सम्राट परिक्षित है। अथर्ववेद में निर्दिष्ट 'प्रातिसुंत्वन् ' एवं 'प्रतिश्रवस्' राजधर्म एवं अन्य व्यक्तिगुणों से यह परिपूर्ण था। किंतु दोनों एक ही थे (सिमर. आल्टिन्डिजे लेवेन. १३१)। | इसकी राज्य की समृद्धि एवं इसने अन्य देशों पर किये इस राजा की प्रशंसा करने के लिये, अन्य देवताओं, आक्रमणों की जो कथाएँ क्रमशः अथर्ववेद एवं पुराणी विशेषतः अग्नि के साथ, इसकी स्तुति की गयी है। में दी गयी है, वे इसकी न हो कर, संभवतः किसी पूर्व २. (सू. इ.) अयोध्या का इक्ष्वाकुवंशीय राजा। कालीन 'परिक्षित् ' राजा की होगी (परिक्षित १. मंडूकों के राजा आयु की कन्या सुशोभना से इसका देखिये)। विवाह हुआ था। विवाह के समय, सुशोभना ने इसे शर्त | महाभारत के अनुसार, परिक्षित् का राज्य सरस्वती रखी थी, 'मेरे लिये पानी का दर्शन वर्ण्य है। इसलिये | एवं गंगा नदी के प्रदेश में स्थित था । आधुनिक थानेश्वर, पानी का दर्शन होते ही, मैं तुम्हें छोड़ कर चली जाऊँगी।' | देहली एवं गंगा नदी के दोआब का उपरिला प्रदेश एक बार यह मृगया के लिये वन में गया था। वहाँ | उसमें समाविष्ट था (रॉयचौधरी-पृ. २०)। कलियुग का प्रसंगवशात् यह अपनी पत्नी के साथ एक बावड़ी के पास | प्रारंभ, एवं नागराज तक्षक के हाथों इस की मृत्यु, हुयी थी आया। वहाँ पानी का दर्शन होते ही, अपने शर्त के | ये परिक्षित् के राज्यकाल की दो प्रमुख घटनाएँ थी। अनुसार, सुशोभना पानी में लुप्त हो गयी। फिर क्रुद्ध हो। जन्म--- अश्वत्थामा के द्वारा छोड़े गये ब्रह्मास्त्र के कर, परिक्षित् ने अपने राज्य में मंडूकवध का सत्र शुरू किया | कारण, उत्तरा के गर्भ में स्थित परिक्षित् झुलसने लगा। उस सत्र से घबरा कर, मंडूकराज आयु इसकी शरण में | फिर उत्तरा ने भगवान् विष्णु को पुकारा । श्रीविष्णु ने आया, एवं इसकी खोई हुई पत्नी उसने इसे वापस | इस गर्भ की रक्षा की । इसलिये इसका नाम 'विष्णरात' दी। पश्चात् सुशोभना से इसे शल, दल, तथा बल नामक | रखा गया। तीन पुत्र हुये (म. व. १९०)। जन्म लेने के उपरांत, यह गर्भकाल में अपनी रक्षा ___३. (सो. कुरु) एक कुरुवंशीय राजा, एवं कुरु राजा करनेवाले श्रीविष्णु को इधरउधर हूँढने लगा। इस कारण, का पौत्र । यह कुरु आविक्षित के आठ पुत्रों में से ज्येष्ठ । इसे 'परीक्षित् ' (परि+ईक्ष) नाम प्राप्त हुआ (भा. १. था। इसे अश्ववत् तथा अभिष्वत् नामांतर भी प्राप्त थे १२.३०)। 'परिक्षित् ' नाम की यह व्युत्पत्ति कल्पनारम्य, (म. आ. ८९.४५-४६)। इसके भाइयों के नाम इस प्रतीत होती है, क्यों की, इस व्युत्पत्ति के अनुसार, 'परिक्षित' ३९९
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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