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पराप्स
प्राचीन चरित्रकोश
पराशर
. परातस-(सो.) एक राजा । भविष्य के अनुसार, कुल तीन भाई थे। उनके नामः-अधीगु, गौरीविति, एवं यह प्रतंस का पुत्र था।
जातूकर्ण या जातूकर्ण्य हैं। परानंद-मगध देश का राजा । नंदसुत को शूद्र स्त्री ऋग्वेद अनुक्रमणी के अनुसार, ऋग्वेद के कुछ सूक्तों से उत्पन्न हुए, प्रनंद नामक राजा का यह पुत्र था । इसने | का प्रणयन पराशर ने किया था (ऋ. १.६५-७३)। १० वर्षों तक राज्य किया (भवि. प्रति. १.६)। | एक परंपरा के रूप में 'पराशरों' का काठक अनुक्रमणी'
परायण-वायु एवं ब्रह्मांड के अनुसार, व्यास की में उल्लेख प्राप्त है (इन्डिशे स्टूडियेन ३.४६८०)। दस सामशिष्यपरंपरा के कौथुम पाराशर्य का शिष्य (व्यास | राजाओं के युद्ध में विजय पानेवाले सुदास राजा की देखिये)।
प्रशस्ति में, अपने चाचा तयातु एवं पितामह वसिष्ठ के परावसु--एक ऋषि, जो रैभ्य मुनि का पुत्र एवं साथ पराशर ऋषि का निर्देश आया है (ऋ. ७.१८.२१) अर्वावसु ऋषि का बड़ा भाई था। विश्वामित्र ऋषि इसका इन तीन ऋषियों ने इंद्र के पास जा कर, सुदास के लिये पितामह था । यह अंगिरा का वंशज माना जाता था (म. उसकी सहायता प्राप्त की थी (गेल्डनर-इन्डिशे स्टुडियेन शां. २०१.२५)। .
२. १३२)। हिंसक पशु के धोखे में, इसने अपने पिता रैभ्य का निरुक्त में 'पराशर' शब्द की व्युत्पत्ति बूढे ऋषि को वध किया (म. व. १३९.६)। इस वध के कारण, इसे | उत्पन्न पुत्र ('पराशीणस्य स्थविरस्य जज्ञे') ऐसी दी ब्रह्महत्या का पाप लगा, एवं यज्ञ के ऋत्विज का
गयी है (नि.६.३०)। उसका शब्दशः अर्थ ले कर, कार्य करने के लिये अपात्र बन गया।
कई लोग पराशर को वसिष्ठ ऋषि को उसके बुढ़ापे में उत्पन्न अपने ब्रह्महत्या का पातक दूर करने के लिये, इसने | हुआ पुत्र मानते हैं। किंतु यह ठीक नहीं है । अपने अपने छोटे भाई अर्वावसु को वेदमंत्रयुक्त अनुष्टान एवं | सातों पुत्रों की मृत्यु हो जाने पर, दुःख से पीड़ित वृद्ध तपस्या करने की आज्ञा दी, एवं यह स्वयं बृहद्द्यम्न राजा वसिष्ठ ऋषि को पराशर का आधार प्राप्त हुआ था। •का यज्ञ करने चला गया (म. व. १३९.२)। उसीका संकेत निरुक्त के इस व्युत्पत्ति में किया गया है। . बृहदाम्न के यज्ञ से 'ब्रह्मघातकी' होने के कारण, | महाभारत में भी निरुक्त के व्युत्पत्ति को इसी अर्थ से ले इसे निकलवा दिया। किंतु अर्वावसु के प्रयत्न | कर, पराशर को वसिष्ठ का पौत्र एवं शक्ति का मृत्यु के -से, यह निर्दोष साबित हुआ (म. व. १३९.१५)। पश्चात् उत्पन्न पुत्र कहा गया है (म. आ. १६७.१५)। पश्चात् उपरिचर के अश्वमेध यज्ञ में भी इसे स्थान दिया | एक बार वसिष्ठ का पुत्र शक्ति पुष्पादिक लाने के लिये गया (म. शां. ३२७.७)।
अरण्य में गया था। वहाँ विश्वामित्र के लोगों ने उसे पकड़ . एक बार परशुराम से इसकी मुलाकात हो गयी। कर अग्नि में झोंक दिया । अग्नि में जल कर मरते हए शक्ति इक्कीस बार पृथ्वी निःक्षत्रिय करनेवाले परशुराम से इसने | ने, 'इंद्र ऋतुं न आ भर पिता पुत्रेभ्यो यथा' (हे इंद्रव्यंग्य से कहा, 'पृथ्वी पर क्षत्रिय तो बहुत बाकी है। खुद | हमें ज्ञान दे । पिता अपने पुत्र को प्रदान करता है, वैसा को निःक्षत्रिय पृथ्वी करनेवाला कहला कर, तुम व्यर्थ ही | धन तुम हमे दे) ऋचा के अर्धभाग की रचना की। आत्मप्रशंसा करते हो। इस के इस उद्गार के कारण, | पश्चात् वसिष्ठ ने उस ऋचा को पूरा किया (ऋ. ३२.२६)। परशुराम क्रोधित हुआ, एवं क्षत्रियसंहार का कार्य उसने. महाभारत के अनुसार, शक्ति ऋषि का वध राक्षसयोनि पुनः आरम्भ किया (म. द्रो. परि. १ क्र. ८)। प्राप्त हुए कल्माषपाद ने किया (म. आ. १६६.३६ )। ___ परावृत्--(सो. क्रोष्टु.) एक राजा । पद्म तथा विष्णु शक्ति ऋषि के द्वारा उसकी पत्नी अदृश्यन्ती के गर्भ में से के अनुमार, यह रुक्मकवच का पुत्र था।
पराशर की उत्पत्ति हुई। बारह वर्षों तक अपने माता के पराशर-एक वैदिक सूक्तद्रष्टा, स्मृतिकार, एवं गर्भ में रह कर इसने वेदाभ्यास किया। 'आयुर्वेद' तथा 'ज्योतिषशास्त्र के प्रवर्तक ऋषिओं में से | अपने पुत्रों के मृत्यु से एवं वंशाक्षय के दुःख के कारण एक । यह वसिष्ठ ऋषि का पौत्र, एवं शक्ति ऋषि का पुत्र | जीवन से ऊबकर, एक बार वसिष्ठ आश्रम से बाहर निकल था। यह शक्ति ऋषि के द्वारा 'अदृश्यन्ती' के गर्भ से | पड़ा। शक्ति की विधवा पत्नी अदृश्यन्ती भी उसके पीछेउत्पन्न हुआ था। इसीलिये इसे पराशर 'शाक्त्य' कहते पीछे जाने लगी। इतने में यकायक वसिष्ठ के कानों पर थे। वसिष्ठ का भाई शतयातु ऋषि इसका चाचा था। इसके सुस्वर 'वेदध्वनि' आने लगी। उसने पीछे मुड़ कर देखा।