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________________ पराशर प्राचीन चरित्रकोश पराशर उसे पता चला कि, अदृश्यन्ती के गर्भ से वेदध्वनि आ को भक्षण करती हुयी आज भी दृष्टिगोचर होती है रही है। अपना वंश अभी तक जीवित है, यह जान कर (म. आ. १६९-१७०, १७२; विष्णु. १.१; लिंग १.. वसिष्ठ को अत्यंत आनंद हुआ, एवं वह आश्रम में वापस | ६४)। आया। कुछ दिनों के बाद, अदृश्यन्ती से पराशर उत्पन्न | व्यासजन्म-एक बार पराशर तीर्थयात्रा के लिये गया । हुआ। इसके पितामह वसिष्ठ ने इसका पालन-पोषण था। यमुना नदी के किनारे, उपरिचर वसु राजा की किया। दूसरे का लड़का खुद का समझ कर वसिष्ठ ने इसे कन्या सत्यवती को इसने देखा । सत्यवती के शरीर सँभाला, इस कारण इसका ‘पराशर' नाम रखा गया में मछली जैसी दुर्गध आती थी। फिर भी उसके रूप (म. आ.१६९. ३)। यौवन पर मोहित हो कर पराशर ने उससे प्रेमयाचना की। . बाल्यकाल में पराशर, वसिष्ठ ऋषि को अपना पिता पराशर के संभोग से अपना 'कन्याभाव' (कौगाय ) नष्ट समझ कर, उसे 'दादा, दादा' कह कर पुकारता था। होगा, ऐसी आशंका सत्यवती ने प्रकट की। फिर पराशर ने वसिष्ठ को 'दादा' कह कर पुकारते ही, इसकी माता| उसे आशीर्वाद दिया, 'संभोग' के बाद भी तुम कुमारी अदृश्यन्ती के आँखों में पानी भर आता था। अदृश्यन्ती | रहोगी, तुम्हारे शरीर से मछली की गंध (मत्स्यगंध ) लुप्त ने इसे कई बार समझाया. "वसिष्ठ को तुम 'दादा' न हो जायेगी और एक नयी सुगंध तुम्हे प्राप्त होगी, एवं वह कह कर, 'बाबा' (पितामह ) कहो"। किंतु पराशर सुगंध एक योजन तक फैल जायेगी। इसी कारण लोग तुम्हे यह सूक्ष्म मेदाभेद नहीं समझता था। | 'योजनगंधा' कहेंगे (म. आ. ५७.६३) । पश्चात् ' ___ पराशर के बड़े होने पर, अदृश्यन्ती ने राक्षसद्वारा हुए मनसोक्त एकांत का अनुभव लेने के लिये, पराशर ने शक्ति ऋपि के घृणित वध की सारी कहानी इसे सुनायी। सत्यवती के चारों ओर नीहार का पर्दा उत्पन्न किया। ' उसे सुनते ही, यह संपूर्ण जगत के विनाश के लिये तत्पर | पराशर को सत्यवती से व्यास नामक एक पुत्र हुआ। हआ। किंतु भृगवंशी ऋचीक और्व ऋषि की कथा इसे | यमुना नदी के द्वीप मे उसका जन्म होने के कारण, उसे सुना कर, वसिष्ठ ने इसे जगविनाश के संकल्प से परावृत्त 'द्वैपायन' व्यास कहते थे । (म. आ. ७७.९९; भा किया (म. आ. १७२)। | १.३)। सत्यवती को काली' नामांतर भी प्राप्त था। राक्षससत्र-फिर भी पराशर का राक्षसों के प्रति क्रोध उस काली का पुत्र होने के कारण, व्यास को 'कृष्णद्वैपायन' शमित न हुआ । आबालवृद्ध राक्षसों को मार डालने के उपाधि प्राप्त हो गयी (वायु. २.१०,८४)। लिये, इसने महाप्रचंड 'राक्षससत्र' का आयोजन किया। पार्गिटर के अनुसार, प्राचीन काल में 'पराशर शाक्त्य' राक्षसों के प्रति वसिष्ठ भी पहले से ऋद्ध था। इस कारण, | एवं ' पराशर सागर' नामक दो व्यक्ति वसिष्ठ के कुल में पराशर के नये सत्र से वसिष्ठ ने न रोका। किंतु इसके उत्पन्न हुए। उनमें से 'पराशर शाक्य' वैदिक सुदास 'राक्षससत्र 'से अन्य ऋषियों में हलचल मच गयी। अत्रि, | राजा के समकालीन वसिष्ठ ऋषि का पौत्र एवं शक्ति अपि पुलह, पुलस्त्य, ऋतु, महाक्रतु आदि ऋषियों ने स्वयं सत्र का पुत्र था। दूसरा 'पराशर सागर' सगर वसिष्ठ का के स्थान आकर, पराशर को समझाने की कोशिश की। पुत्र, एवं कल्माषपाद तथा शंतनु राजा का समकालीन था। पुलस्त्य ऋषि ने कहा, 'अनेक दृष्टि से राक्षस निरुपद्रवी | इन दो पराशरों में से 'पराशर शाक्त्य' ने राक्षससत्र एवं निरपराध है । अतः उनका वध करना उचित किया था, एवं दूसरे पराशर ने सत्यवती से विवाह किया नहीं'। फिर वसिष्ठ ने भी पराशर को समझाया, एवं | था (पार्गि. २१८)। किंतु पार्गिटर के इस तकनरंपरा 'राक्षससत्र' बंद करने के लिये कहा । उसका कहना मान | कलिय विश्वसनाय आधार उपलब्ध न के लिये विश्वसनीय आधार उपलब्ध नहीं है। पौराणिक कर, पराशर ने अपना यज्ञ स्थगित किया। इस पुण्यकृत्य वंशावली में भी एक 'शक्तिपुत्र पराशर' का ही केवल के कारण पुलस्त्य ने इसे वर दिया, 'तुम सकल शास्त्रों | निर्देश प्राप्त है। में पारंगत, एवं पुराणों के 'वक्ता' बनोगे (विष्णु. १. आदरणीय ऋषि--एक आदरणीय ऋषि के नाते, १)। महाभारत में पराशर का निश अनेक बार किया गया राक्षससत्र के लिये सिद्ध की अग्नि, पराशर ने | है। इसने जनक को कल्याणप्राप्ति के साधनों का उपदेश हिमालय के उत्तर में स्थित एक अरण्य में झोंक दी। दिया था (म. अनु.२७९-२८७) । कालोपरांत वही उपदेश वह अग्नि 'पर्वकाल' के दिन, राक्षस, पाषाण एवं वृक्षों । भीष्म ने युधिष्ठर को बताया था। उसे ही 'पराशरगीता' ३९६
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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