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परशुराम
प्राचीन चरित्रकोश
पराक्ष
कालविपर्यास---परशुराम के महाभारत एवं रामायण (७) परशुगमतीर्थ ( नर्मदा नदी के मुख में स्थित में प्राप्त निर्देश कालविपर्यस्त हैं अतएव अनैतिहासिक प्रतीत आधुनिक 'लोहाय' ग्राम)--परशुराम का तपस्याहोते है। जैसे पहले ही कहा है, परशुराम रामायण एवं स्थान। महाभारत के बहुत ही पूर्वकालीन थे । इस कालविपर्यास (4) परशुरामताल ( पंजाब में सिमला के पास का स्पष्टीकरण महाभारत एवं पुराणों में, परशुराम को | 'रेणुका तीर्थ' पर स्थित पवित्र तालाब)--परशुराम के चिरंजीव कह कर दिया गया है । संभव है कि, प्राचीन-पवित्रस्थान । यहाँ के पर्वत का नाम 'जमदग्निपर्वत' है। काल के परदाराम की महत्ता एवं ब्रह्मतेज का रिश्ता
| (९) रेणुकागिरि (अलवार-रेवाडी रेलपार्ग पर महाभारत एवं रामायण के पात्रा से जोड़ने क लिय यह खैरथल से ५ मील दर स्थित आधनिक 'रनागिरि 'ग्राम) 'चिरंजीवत्व' की कल्पना प्रसृत की गयी हो।
-परशुराम का आश्रमस्थान । परशुराम के स्थान--परशराम के जीवन से संबंधित
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( (१०) चिपळूण (महाराष्ट्र में स्थित आधुनिक
पण / अनेक स्थान भारतवर्ष में उपलब्ध है। वहाँ परशुराम की
रशुराम का चिपळूण ग्राम)-परशुराम का पवित्रस्थान । यहाँ परशुराम उपासना आज भी की जाती है। उनमें से कई स्थान इस प्रकार हैं---
(११) रामद (कुरुक्षेत्र के सीमा में स्थित एक (१) जमनाग्नि आश्रम (पंचतीर्थी )--परशराम का तीर्थस्थान)-परशुराम का तीर्थ स्थान । यहाँ परशराम ने जन्मस्थान एवं सहस्रार्जुन का वधस्थान । यह उत्तरप्रदेश पाँच कुंडों की स्थापना की थी (म. व. ८१.२२-३३)। में मेरठ के पास हिंडन ( प्राचीन 'हर') नदी के किनारे इसे 'समंतपंचक' भी कहते है। है। यहाँ पाँच नदियों का संगम है। इसलिये इसे | ___परशुरामजयंती--वैशाख शुध तृतीया के दिन, रात्रि. 'पंचतीर्थी' कहते है। यहाँ 'परशुरामेश्वर' नामक के पहले 'प्रहर' में परशुरामजयंती का समारोह किया शिवमंदिर है।
जाता है। (धर्मसिंधु पृ. ९)। यह समारोह अधिक तर (२) मातृतीर्थ (महाराष्ट्र में स्थित आधुनिक 'माहूर' |
दक्षिण हिंदुस्थान में होता है, सौराष्ट्र में यह नहीं किया ग्राम)-रेणुका दहनस्थान ।
जाता है। इस समारोह में, निम्नलिखित मंत्र के साथ, (३) महेंदपर्वत (आधुनिक 'पूरबघाट)- परशुराम को 'अर्य' प्रदान किया जाता है-- परशुराम का तपस्या स्थान । क्षत्रियों का संहार करने के
जमदग्निसुतो वीर क्षत्रियान्तकरः प्रभो। पश्चात् परशराम यहाँ रहता था। परशुराम ने समस्त पृथ्वी
ग्रहाणायं मया दत्तं कृपया परमेश्वर ॥ कत्यप को दान में दी, उस समय महेंद्रपर्वत भी कश्यप को दान में प्राप्त हुआ। फिर परशुराम 'शूपरिक' के नये परशुराम साम्प्रदाय के ग्रंथ–'परशुरामकल्पसूत्र' नामक बस्ती में रहने के लिये गया।
| एक तांत्रिक सांप्रदाय का ग्रंथ परशुराम के नाम से प्रसिद्ध (४) शूर्पारक (बंबई के पास स्थित आधुनिक है। 'परशुरामप्रताप' नामक और भी एक ग्रंथ 'सोपान' ग्राम)--परशुराम का तपस्यास्थान । समुद्र को | उपलब्ध है। हटा कर, परशुराम ने इस स्थान को बसाया था। परशुरामशक-मलाबार में अभी तक 'परशराम
(५) गोकर्णक्षेत्रा ( दक्षिण हिंदुस्थान में कारवार जिले | शक' चालू है। उस शक का वर्ष सौर रीति का है, में स्थित 'गोकर्ण' ग्राम)-परशराम का तपस्यास्थान । एवं वर्षारंभ 'सिंहमास' से होता है। इस शक का समुद्र में डूबते हुये इस क्षेत्र का रक्षण परशुराम ने किया | 'चक्र' एक हजार साल का होता है। अभी इस शक था।
का चौथा चक्र चालू है। इस शक को कोलमडु' (६) जंबुवन (राजस्थान में कोटा के पास चर्मण्वती । (पश्चिम का वर्ष) कहते है (भा. ज्यो. ३७७)। नदी के पास स्थित आधुनिक 'केशवदेवराय-पाटन' | परस्परायाण-अंगिराकुल का एक ब्रापिं(नारायणि ग्राम)--परशुराम का तपस्यास्थान । इछीस बार पृथ्वी | देखिये )। निःक्षत्रिय करने के बाद परशुराम ने यहाँ तपस्या की पराक्ष-(सो. अनु ) एक राजा । ब्रह्मांड के अनुसार,
| यह अनु राजा का पुत्र था ( परपक्ष देखिये)। ३९४
थी।