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________________ प्राचीन चरित्रकोश पतंजलि उसका लक्षण का उद्देश्य चिन को एकाग्र करने की " चित्त समाधिपाद में योग एवं साधन वर्णन किया है। पद्धति इस 'पाद में बतायी गयी है। साधनपाद में कर्म एवं कर्मफल का वर्णन क्लेश, है इंद्रियमन कर के ज्ञानप्राप्ति कैसी की जा सकती है, उसका मार्ग इस ' पाद' में बताया गया है। विभूति पाद - में योग के अंग, उनका परिणाम, एवं ' अणिमा', 'महिमा' आदि सिद्धियों का वर्णन किया गया है। कैवल्यपाद में मोक्ष का विवेचन है। शानप्राप्ति के - बाद आत्मा कैवल्यरूप कैसे बनती है, इसकी जानकारी इस ' पाद' में दी गयी है । योग दर्शन आत्मा एवं जगत् के संबंध में सांख्यदर्शन जिन सिद्धांतो का प्रतिपादन करता है, 'योगदर्शन' भी उन्ही का समर्थक है। 'सांख्य' के अनुसार 'योग' ने भी पच्चीस तत्वों का स्वीकार किया है। किंतु 'योग दर्शन' में एक छब्बीसवाँ तत्त्व ' पुरुषविशेष ' शामिल करा दिया है, जिससे योग दर्शन सांख्यदर्शन जैसा निरीश्वरवादी बनने से बच गया है। फिर भी 'ईश्वर 'प्रणिधानाद्वा' (१.२३ ) सूत्र के आधार पर कई विद्वान पतंजलि को 'निरीश्वरवादी मानते है। 3 , ' योग सूत्रों' के सिद्धांत अद्वैती है या द्वैती, इस विषय पर विद्वानों का एकमत नहीं है 'ब्रह्मसूत्रकार व्यास एवं शंकराचार्य ने पतंजलि को द्वैतवादी समझ कर, सांख्य के साथ इसका भी खंडन किया है । 2 'योग सूप' के सिद्धांतो के अनुसार, चित्तवृत्तियों का सूत्र' निरोध ही योग है (योग १.२ ) । इन चित्तवृत्तियों का निरोध अभ्यास एवं वैराग्य से होता है (योग १.१२ १५) । पुरुषार्थविरहीत गुण जब अपने कारण में लय हो जाते है, तब ' कैवल्यप्राप्ति होती है ( योग. ४.३४ ) ! योगदर्शन का यह अंतिम सूत्र है । " पद्म 'योग-दर्शन' के अनुसार, संसार दुःखमय है । जीवात्मा को मोक्षप्राप्ति के लिये 'योग' एकमात्र ही उपाय है। 'योगदर्शन' का दूसरा नाम कर्मयोग भी है, क्यों कि साधक को वह 'मुक्तिमार्ग सुझाता है। ४.वर्ष (भारतवर्ष) के उत्तर के मध्यदेश में उत्पन्न एक आचार्य | " अविद्या अस्मिता, राग, द्वेष एवं अभिनिवेश इन पंचविध कुश से योग के द्वारा विमुक्त हो कर मोक्ष प्राप्त करना, यह 'योगदर्शन' मा उद्देश्य है। चंचल चित्तवृत्तियों को रोकने एवं योगसिद्धि के लिये, 'योगसूत्र' कार ने ग्यारह साधनों का कथन किया है। वे साधन इस प्रकार है: यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, अभ्यास, वैराग्य, ईश्वरप्रणिधान, समाधि वैराग्य, ईश्वर प्रणिधान, समाधि एवं विषय | ५. कश्यप एवं कद्रू का पुत्र, एक नाग । ६. अंगिराकुल में उत्पन्न एक गोत्रकार । - की पथ्य – विष्णु, वायु एवं भागवत के अनुसार, ज्यात अन् शिष्यपरंपरा के पांच का शिष्य (ज्यात देखिये) । कबंध ने इसे एवं देवदर्श को अध सिखाया । अथर्ववेद था। इसके तीन प्रमुख शिष्य थे जिनके नाम :जाजलि कुमुदादि, शौनक है। ७. वायु एवं ब्रह्मांड के अनुसार, व्यास की सामशिवपरंपरा के कौथुम पाराशर्य ऋषिका शिष्य (व्यास देखिये) । पतत्रि - कौरवपक्षीय योद्धा । भीमसेन ने इसको रथहीन किया था (म. क. ३२.५२ ) । पतन - एक राक्षस । यह रावण के पक्ष में था (म. व. २६९.२, भांडारकर संहिता पाठ - ' पूतन ' ) । पताकिन् -- एक सर्प । वरुण का यह उपासक था ( म. स. ९.१० ) । २. कौरवपक्षीय एक योद्धा इसे साथ ले कर भन पर आक्रमण करने का आदेश दुर्योधन ने शकुनि को दिया था (म. द्रो. १३१.८५ ) । । पत्तलक--(आंध्र. भविष्य . ) विष्णुमत में हल का पुत्र तक देखिये) पथिन् सौभरं-- एक ऋषिं । यह अयास्य आंगिरस का शिष्य एवं वत्सनपात गुरुथा (उ. २. ६.२ ४.६.२. काण्व ) । पथ्यवत्रीच्य मन्वंतर के सप्तर्पियों में से एक। पथ्या - मनु की कन्या तथा अथर्वन् आंगिरस ऋषि की पत्नी इसका पुत्र पृष्णि ( ब्रह्मांड. २.१.१०५ ) । । ! पदाति- पारिक्षित जनमेजय ( प्रथम ) राजा का सातवाँ पुत्र (म. आ. ८९.५० ) । पद्म- कश्यप एवं कद्रू के पुत्र, दो नाग। इन्हें संवर्तक और पद्मनाभ नामांतर प्राप्त वे (म. आ. २१. १० म. शां. ३६५४) । ये बहुत धार्मिक थे तथा य की सभा के समास [ ( म. स. ७८)। ये दोनों सूर्य थे । का रथ खींचने के लिये गये थे । ( म. शां. ३४५.८ ) । ૩૮૬
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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