________________
पंचजन
प्राचीन चरित्रकोश
पंचशिख
३. (सो. नील.) उत्तर पांचाल देश का सुविख्यात विभावसु का पौत्र, एवं आतप का पुत्र । इसकी माता का राजा । इसे 'च्यवन' नामांतर भी प्राप्त है। ऋग्वेद में नाम उषा था। इसी के कारण पृथ्वी पर से सारे प्राणी इसका निर्देश 'पिजवन' नाम से किया गया प्रतीत होता कर्मप्रवृत्त हो जाते है (भा. ६.६.१६)। है (ऋ. ७.१८.२२)। 'पंचजन' यह संभवतः 'पिजवन' | पंचवक्त्र--स्कन्द का एक सैनिक (म. श. ४४. का ही अपभ्रष्ट रूप होगा। अग्नि पुराण में, इसके नाम ७१)। के लिये 'पंचधनुष' पाठभेद उपलब्ध है।
पंचवीर्य-एक सनातन विश्वेदेव (म. अनु. ९१. यह संजय राजा का पुत्र था। इसका पुत्र सोमदत्त । (ब्रह्म. १३.९८; ह. वं. १.३२.७७)।
पंचशिख--एक प्राचीन ऋषि । इसे 'पंच कोशों' ४. एक दैत्य । यह संहाद नामक देत्य का पुत्र था। का एवं उन कोशों के बीच में स्थित ब्रह्म का अग्निशिखा यह शंख का रूप धारण कर समुद्र में रहता था । सांदीपनि
के समान तेजस्वी ज्ञान था। इसलिये इसे 'पंच शिख' ऋषि के मरे हुए पुत्र को, समुद्र में से वापस लाने के लिये नाम प्राप्त हआ था (म. शां. २११.६१२७)। श्रीकृष्ण समुद्र में गया। उस समय, उसने पंचजन का वध
___ इसकी माता का नाम कपिला था। कपिला इसकी किया, एवं इसके अस्थियों से एक शंख बनाया । भगवान्
जन्मदात्री माता नहीं थी । उसका दूध पी कर यह बड़ा श्रीकृष्ण का सुविख्यात 'पांचजन्य' शंख वही है (भा.
हुआ था। इसकी माता के नाम से, इसे 'कापिलेय' ६.१८.१४; १०.४५.४०)।
मातृक नाम प्राप्त हुआ। सांख्य ग्रंथों में इसे 'कपिल' ५. एक प्रजापति । इसके 'पांचजनी' (असिक्नी)
कहा गया है (मत्स्य. ३.२९)। नामक एक कन्या थी। वह प्राचेतस दक्ष को पत्नी के रूप
__ गुरुपरंपरा--यह याज्ञवल्क्य शिष्य आसुरि ऋषि का में दी गयी थी (भा. ६.४.५१)।
प्रमुख शिष्य था (म. शां. २११.१०) । 'बृहदारण्यक ६. कपिल ऋषि के शाप से बचे हुये सगर के चार
उपनिषद' में इसकी गुरुपरंपरा इसप्रकार दी गयी है:पुत्रों में से एक (पद्म. उ. २०; ब्रह्म. ८.६३)।
उपवेशी, अरुण, उद्दालक, याज्ञवल्क्य, आसुरि, पंचशिख पंचजनी-ऋषभ राजा का पुत्र भरत की पत्नी ।।
(बृहदारण्यक. ६.५.२-३)। पुराणों में इसकी गुरुपरंपरा . इसके कुल पाँच पुत्र थे। उनके नाम-सुमति, राष्ट्रभृत ,
कुछ अलग दी गयी है, जो इस प्रकार है:- वोढु, सुदर्शन, आवरण, एवं धूम्रकेतु हैं (भा. ५.७.१-३)।
कपिल, आसुरि, पंचशिख (वायु. १०१.३३८)। . २. दक्ष की पत्नी (मत्स्य. ५.४)।
इस गुरुपरंपरा में से कपिल ऋषि पंचशिख ऋषि का पंचधनुष-(सो. नील.) उत्तर पंचाल के पंचजन
परात्पर गुरु ( आसुरि नामक गुरु का गुरु ) था। महाराजा का नामांतर।
भारत में, कपिल एवं पंचशिख इन दोनों को एक ही पंचपत्तलक-(आंध्र. भविष्य. ) एक राजा।
मानने की भूल की गयी है (म. शां. ३२७.६४ )। उस ब्रह्मांड के अनुसार यह हाल राजा का पुत्र था (तलक
भूल के कारण, पंचशिख को चिरंजीव उपाधि दी गयी, देखिये)।
जो वस्तुतः कपिल ऋषि की उपाधि थी (म. शां. २११. पंचम वाय एवं ब्रह्मांड के अनुसार व्यास की। १०)। सांख्यशास्त्र के अभ्यासक, कपिल ऋषि को सामशिष्यपरंपरा के हिरण्यनाभ का शिष्य (व्यास
ब्रह्माजी का अवतार समझते हैं, एवं पंचशिख को कपिल देखिये)।
का पुनरावतार मानते हैं। पंचमेद्र-एक राक्षस । इसकी पाँच इंद्रियाँ, पाँच पैर, शिष्य--मिथिला देश का राजा जनदेव जनक पंचशिख दस हाथ तथा आठ सिर थे। यह असाधारण आहार ऋषि का शिष्य था। उससे इसका 'नास्तिकता' के बारे लेता था । इसलिये वाली से युद्ध करते समय, इसने उसे में संवाद हुआ था ( नारद. १. ४५)। इस संवाद के निगल लिया था। वाली के बंधु सुग्रीव, तथा दधीचि पश्चात् , जनदेव जनक ने अपने सौ गुरुओं को त्याग कर, कश्यपादि ऋषियों को भी इसने निगल लिया था । परंतु पंचशिख को अपना गुरु बनाया। फिर इसने उसे सांख्य वीरभद्र ने इससे युद्ध कर, इसके पेट का विच्छेद किया तत्त्वज्ञान के अनुसार, मोक्षप्राप्ति का मार्ग बताया। एवं इन सबको बाहर निकाला (पन. पा. १०६)। निवृत्तिमार्ग के आचरण से जनन-मरण के फेरें से मुक्ति पंचयाम-भागवत के अनुसार, अष्ट वसुओं में से | एवं परलोक की सिद्धि कैसी प्राप्त हो सकती है, इसका
३७९