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________________ पक्षालिका प्राचीन चरित्रकोश पंचजन पक्षालिका-रकंद की अनुचरी एक मातृका (म.श. (२) पंचमानव-(अ. वे. ३.२१.५, २४.३, १२. ४५.१९)। पंकजित्-गरुड़ की प्रमुख संतानों में से एक (म. (३) पंचकृष्टि - (ऋ. २.२.१०; ३.५३.१६, ४. उ. ९९.१० पाठ)। | ३८.१०; अ. वे. ३.२४.३)। पंकदिग्धाग-स्कंद का एक सैनिक (म. श.४४.६३)। (१) पंचक्षिति-(ऋ. १.७.९; ५.३५.२ ७.७५.४) पंचक--इंद्र द्वारा स्कंद को दिये गये दो पार्षदों में से (५) पंचचर्षणि-(ऋ. ५.८६.२; ७.१५.२ ९. एक । दूसरे का नाम उत्क्रोश था (म. श. ४४.३२ पाठ)। १०१.९) । पंचकर्ण वात्स्यायन--एक वैदिक गुरु । 'वात्स्य' | 'पंचजन कौन थे--वैदिक वाङ्मय निर्दिष्ट, 'पंचजन' का वंशज होने के कारण, इसे 'वात्स्यायन' नाम प्राप्त (पाँच जातिया) निश्चित कौन लोग थे, यह अत्यंत हुआ था। | अनिश्चित है । इस बारे में कुछ मतांतर नीचे दिये गये मनुष्य के मस्तक में रहनेवाले सात प्राण, योगशास्त्र की परिभाषा में, 'सप्तसूर्य ' कहलाते हैं। उन सप्तसूर्यों का | ऐतरेय ब्राह्मण के अनुसार, देवता, मनुष्य, गंधर्व, दर्शन पंचकर्ण को हुआ था। इस अपूर्व अनुभव का वर्णन सर्प एवं पितृगण ये पाँच ज्ञातिसमूह 'पंचजन' कहलाते भी इसने दिया है (ते. आ. १.७.२)। 'वात्स्यायन थे (ऐ. वा. ३.३१)। कामसूत्र' नामक विश्वविख्यात कामशास्त्रविषयक ग्रंथ का ___औपमान्यव एवं सायणके अनुसार, ब्राह्मण, क्षत्रिय, रचयिता संभवतः यही होगा। वैश्य, शूद्र एवं निषाद थे पाँच वर्ण 'पंचजन' थे पंचचड़ा-पाँच जूडोंवाली एक अप्सरा (म. व. (नि. ३.८; ऋ. १.७. ९)। १३४.११)। यह कुबेरसभा में विराजमान रहती थी (म. यास्क के अनुसार, गंधर्व, पितरः, देव, असुर, स. १०.११२*)। | एवं रक्षस् इनका ही केवल 'पंचजनों में समावेश होता. था (निरुक्त. ३.८; बृ. उ.४.४.१७ शांकरभाष्य)। परमपदप्राप्ति के लिये ऊपर की ओर जाते हुए शुकदेव रॉथ एवं गेल्डनर--के अनुसार, पृथ्वी के उत्तर, को, एक बार इसने देखा, एवं यह आश्चर्यचकित हो उठी | दक्षिण पूर्व, पश्चिम इन चार दिशाओं में रहनेवाले लोग (म. शां. ३३२.१९-२०)। एवं उनके बीच में स्थित आर्यगण ये पाँच पंचजन । नारी स्वभाव की निंद्यता का वर्णन इसने नारद के 'पंचजन' में अभिप्रेत है ( सेन्ट पीटर्सबर्ग कोश ) । अपने समक्ष किया था (म. अनु. ३८.११-३०)। पश्चात् वही मत की परिपुष्टि के लिये, उन्होंने अथर्ववेद में प्राप्त, 'पंच नारीस्वभाव-वर्णन मीष्म ने युधिष्ठिर को बताया था। प्रदिशो मानवीः पंच कृष्टयः' (अ. वे. ३.२४.३ ) ऋचा इसे 'पुंश्चली' एवं 'ब्राह्मी' नामांतर भी प्राप्त है। | का उद्धरण दिया है। . पंचजन-वेदकालीन पाँच प्रमुख ज्ञानियों का सामूहिक लिमर के अनुसार, वैदिक 'पंचजनो' में केवल नाम (ऐ. ब्रा. ३.३१; ४.२७: तै. सं. १.६.१.२; का. आय लोगों का समावेश अभिप्रेत है। इस कारण, अनु, सं. ५.६; १२.६) । ऋग्वेद के प्रत्येक मंडल में 'पंचजनों' द्रुह्य, यदु, तुर्वश एवं पूरु इन आर्य जातियों को ही का उल्लेख मिलता है :--मंडल क्रमांक २, एवं ४ में एक वैदिक ग्रंथों में 'पंचजन' कहलाना अधिकतम ठीक होगा। एक बार; मंडल क्र. १.५.६.७. एवं ८ में दो दो बार; उपरिनिर्दिष्ट मतांतरों में से सिमर का मत. सब मंडल क्रमांक ३ एवं ९ में तीन-तीन बार; तथा मंडल से अधिक मान्य है। 'ब्राह्मण' ग्रंथों के काल में, क्रमांक १० में चार बार। पंचजनों के अंतर्गत पाँच जातियों को संभवतः 'पंचाल' एक योगिक शब्द के रूप में 'पंच जनों' का निर्देश यह नया नाम प्राप्त हुआ। पश्चात् कुरु लोगों का पंचजनों उपनिषद में मिलता है (बृ. उ. ४.४.१७)। ये लोग में समावेश हो कर, 'कुरु पंचाल' ये लोग 'सप्तजन' सरस्वती नदी के तट पर रहते थे (ऋ. ६.६१.१२)। नये नाम से प्रसिद्ध हुये (श, ब्रा. १३.५.४.१४; ऐ. बा. 'पंचजनों के निम्नलिखित नामांतर वैदिक ग्रंथों में ८.२३; वेबर-इन्डिशे स्टुडियन १.२०२)। मिलते है : २. नरकासुर के परिवार में स्थित पाँच राक्षसों का (१) पंचमानुष--(ऋ. ८.९.२)। समूह । श्रीकृष्ण ने इनका वध किया (नरक देखिये )। ३७८
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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