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________________ निक्षुभा प्राचीन चरित्रकोश निबंधन निक्षुभा--स्वर्गलोक की एक अप्सरा । सूर्य के शाप | एवं वायु के मतानुसार, यह अनमित्र राजा का पुत्र था। के कारण, इसे मृत्युलोक में जन्म प्राप्त हुआ, एवं सुजिह्व | इसे 'निम्न' नामांतर भी प्राप्त था। नामक मिहिर गोत्रीय सदाचारी ब्राह्मण के घर, कन्यारूप निचक्नु--(सो. कुरू. भविष्य.) एक राजा। विष्णु से इसका जन्म हुआ। मत में यह अधिसामकृष्ण का पुत्र था (निमिचक्र अपने पिता की आज्ञानुसार, यह हमेशा अग्नि | देखिये)। प्रज्वलित कर लाया करती थी। एक दिन, इसके हाथ | निचंद्र--कश्यप एवं दनु का पुत्र, एक दानव (म.. में स्थित अग्नि भड़क उठा, एवं उसकी फड़कती ज्वाला | आ. ५९. २६)। में, इसका अपूर्व रूपयौवन सूर्य को दिख पड़ा । सूर्य को नितंभू--एक महर्षि । यह शरशय्या पर पड़े हुए इसके प्रति कामवासना जागृत हुई। | भीष्मजी को देखने आया था (म. अनु. २६.८)। पश्चात् सूर्य मनुष्यरूप धारण कर, सुजिह्न के पास | नितान मारुत--एक वैदिक व्यक्तिनाम (क. सं. आया, एवं कहने लगा, 'मैने निक्षुभा का पाणिग्रहण | २५. १०)। किया है, एवं मुझसे उसे गर्भधारणा भी हुयी है'। फिर नित्य--मरीचिकुलोत्पन्न एक ऋषि । क्रुद्ध हो कर सुजिह्व ने निक्षुभा को शाप दिया, 'तुम्हारा २. कश्यप कुल का मंत्रकार । गर्भ अग्नि से आवृत होने के कारण, तुम्हारी होनेवाली ३. शांडिल्यकुल का एक ऋषि । यह मंत्रद्रष्टा था। . संतति, लोगों के लिये निंद्य एवं तिरस्करणीय होगी। । निदाघ--कश्यपकुल का गोत्रकार | यह भृगु ऋषि । फिर सूर्य अग्नि का रूप धारण कर, निक्षुभा के पास | का शिष्य था। आया एवं उसने इसे कहा, 'तुम्हारी संतति अपूज्य | २. पुलस्त्य का पुत्र, एक ऋषि । यह ब्रह्मपुत्र ऋभु का होने पर भी, वह सद्विद्य एवं सदाचारी रहेंगी, एवं मेरे | शिष्य था (नारद. १.४९)। पूजा का अधिकार उसे प्राप्त होगा। निदाज--(सो. क्रोष्टु.) एक राजा । वायुमत में यह बाद में इसे सूर्य की गर्भ से अनेक पुत्र हुएँ । मग, | शूरराजा का पुत्र था। द्विजातीय, भोजक आदि उनके नाम थे, एवं शाकद्वीप निद्राधर-कश्यप तथा दनु का पुत्र, एक दानव। । में वे रहते थे। पश्चात् कृष्णपुत्र सांब ने, उन्हे जम्बुद्वीप निधि-सुख देवों में से एक। में से सांबपुर में स्थित सूर्यमंदिर में पूजाअर्चा का काम निध्रुव काण्व-एक सूक्तद्रष्ट्रा (ऋ. ९.६३)। करने के लिये, नियुक्त किया। उनके साथ, उनके अठारह कश्यपवंश के वत्सार ऋषि का यह पुत्र था । च्यवन ऋषि कुल सांबपुर में आये एवं बस्ती बना उधर ही रहने तथा सुकन्या की कन्या सुमेधस् , इसकी स्त्री थी। कुंडलगे। सांब ने भोजकुल में पैदा हुई कन्याएँ उन्हे प्रदान पायिन् नामक सुविख्यात आचार्य इसीका ही पुत्र था। की (भवि. ब्राह्म. १३९-१४०; मग देखिये)। (ब्रह्मांड.. ३.८.३१; वायु. ७.२७)। भविष्यपुराण में दी गयी सूर्यवंशीय एवं मिहिरकुलीय निदिताश्व--एक वैदिक राजा। यह मेध्यातिथि का लोगों की यह कथा रूपकात्मक प्रतीत होती है। शुरू में आश्रयदाता था (ऋ. ८.१,२०)। जातिबहिष्कृत माने गये वे लोग, बाद में आनर्त देश के 'तिरस्कार्य अश्वोंवाला, ' ऐसा इसका नाम का अर्थ भोजवंश में सम्मीलित हो गये से दिखते है। लगाया जाये, तो यह कोई ईरानी राजा प्रतीत होता है। निखवेट-रावण के पक्ष का एक राक्षस । तार नामक | किंतु सायणाचार्य इसके नाम का अर्थ, अपने विपक्षियों वानर ने इसका वध किया (म. व. २६९. ८)। | के अश्वों को लज्जित करनेवाला,' एसा लगाते है। . निगद पार्णवल्कि-एक वैदिक ऋषि । यह पर्णवल्क | निबंधन--(स्. इ.) अयोध्या के अरुण राजा का का वंशज, एवं गिरिशर्मन् कष्टिविद्धि का शिष्य था (वं. | पुत्र । इसका पुत्र सत्यव्रत 'त्रिशंकु' नाम से प्रसिद्ध हुआ ब्रा. १)। था (त्रिशंकु देखिये)। इसे त्रिबंधन भी कहते थे ( भा. निघ्न--(सू. इ.) अयोध्या का राजा । यह अनरण्य | ९.७.४; त्रिधन्वन देखिये)। राजा का पुत्र था। इसे अनमित्र तथा रघूत्तम नामक दो पुत्र | २. एक ऋषि । इसकी माता भोगवती के साथ इसका थे (पद्म. सु. ८)। | अध्यात्म विषय पर हुआ संवाद मनन करने योग्य है २. (सो. वृष्णि) एक यादव राजा । विष्णु, मत्स्य (म. शां. परि. १. क्र. १५, पंक्ति.६)। . ३६८
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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