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________________ नारायण प्राचीन चरित्रकोश निकोथक भायजात्य विष्णु मत में यह भूमित्र का, वायुमत में भूतिमित्र का, निकुंत--भविष्य के मत में शोणाश्व का पुत्र । तथा मत्स्य तथा ब्रह्मांड के मत में भूमिमित्र का | निकुंभ--कृष्ण के द्वारा मारा गया एक दानव (ह. पुत्र था। | वं. २. ८५-९०; षट् पुर देखिये)। नारायणि-अंगिरा कुल का गोत्रकार । ' परस्परा- | । २. प्रह्लाद का तृतीय पुत्र (म. आ. ५९. १९)। यणि' इसका ही पाठभेद है। इसके सुंद एवं उपसुंद नामक दो पुत्र थे (म. आ. २०१. नारायणी-मुद्गल ऋषि की स्त्री। इसी को 'इंद्रसेना' २०००)। कहते थे। ____३. (स.इ.) अयोध्या के हर्यश्व राजा का पुत्र (वायु. २. दुर्गा का एक नाम । मार्कंडेय पुराण में इसका ८८.६२)। इसे संहिताश्व नामक एक पुत्र था (पन. माहात्म्य दिया गया है (मार्क. ८८)। सृ. ८, क्षेमक देखिये)। भागवत में इसके पुत्र का नारी-मेरु की कन्या, तथा अग्रीध्रपुत्र करू की स्त्री | नाम बर्हणाश्व दिया हैं। (भा. ५.२. २३)। ४. गणेश का प्राचीन नाम। वाराणसी में इसका नारीकवच--(सू. इ.) अश्मक देश के मूलक राजा मंदिर था । इसकी पूजाआराधना करने पर भी, दिवोदास का नामांतर (मूलक १. देखिये)। परशुराम के भय के की स्त्री सुयशा को पुत्र न हुआ। इसलिये उसने इसका कारण, यह सदैव नारीसमुदाय में रहता था। इस | देवालय तथा देवमूर्ति को उद्ध्वस्त किया। फिर क्रुद्ध कारण इसे यह नाम प्राप्त हुआ। हो कर, निकुंभ ने वाराणसी उद्ध्वस्त होने का शाप नार्मर-एक वैदिक राजा । यह 'उर्जयन्ती' का दिया (ब्रह्मांड. ६७.३०-५५, वायु. ९०.२७.५२; ब्रह्म. राजा था। सहवसु के राजा के साथ इन्द्रशत्रु के रूप में, ११.४३; गणपति देखिये)। उस शाप के अनुसार, इसका उल्लेख प्राप्त है (ऋ. २. १३.८)। क्षेमक राक्षस के द्वारा, वाराणसी उद्ध्वस्त हो गयी। नार्मेध-एक सूक्तंद्रष्टा (शकत देखिये)। ५. कश्यप एवं दनु का पुत्र, एक दानव (म. आ. . नार्य--एक उदार वैदिक राजा । नर्य का वंशज होने | ५८.२६)। से इसे नार्य नाम प्राप्त हुआ। ६. कुंभकर्ण के वृत्रज्वाला से उत्पन्न हुए दो पुत्रों में से नार्षद--कण्व ऋषि का पैतृक नाम (ऋ. १०.३१. दूसरा पुत्र (भा. ९.१०.१८) हनुमानजी ने इसका वध . ११; अ. वे. ४. १९.२)। किया (वा. रा. यु. ७५)। २. इन्द्र का शत्रु एक असुर (ऋ १०. ६१. ७. रावण के पक्ष का एक राक्षस । नील नामक वानर ने इसका वध किया (वा. रा. यु. ९.४३)। ३. अश्विनों का आश्रित । इसकी पत्नी का नाम ८. दुर्योधन के पक्ष का एक योद्धा (म. द्रो. १३१. रूशती था (ऋ. १. ११७.८)। नालायनी-इन्द्रसेना का नामांतर (मौद्गल्य ३. ९. स्कन्द का एक सैनिक (म. श. ४४.५२)। देखिये)। निकुंभनाभ-बलि दैत्य के सौ पुत्रों में से एक । नालीजंध-नाड़ीजंघ देखिये। निकुषज--ब्रह्मसावर्णि मनु का पुत्र । नासत्य-अश्विनीकुमारों में से एक का नाम ।। निकृषज--कश्यप कुल का एक ब्रह्मर्षि । 'निकृतिज' दूसरे का नाम दस्र था (म. शां. २०१.१७)। मार्ताण्ड | इसका नामांतर हैं। नामक आठवे प्रजापति के ये पुत्र थे। निकृति-सुबल राजा की कन्या, गांधारी की बहन, नाविक-विदुर का मित्र । लाक्षागृह से बाहर आने | तथा धृतराष्ट्र की भार्या (म. आ; १०३. १११३; पंक्ति. के बाद, पांडवों को अपनी नौका के सहारे, इसने | ४)। गंगा के पार पहुँचाया (म. आ. परि. १. क्र. ८५. २. दंभ एवं माया की कन्या (भा. ४.८.३)। पंक्ति.७)। यह सामान्यनाम होगा। निकृतिज-निकृतज देखिये। नाहुष-एक सूक्तद्रष्टा (ययाति देखिये)। निकोथक भायजात्य--एक ऋषि । भयजात का २. एक राजा । यह नहस् जाति के लोगों का राजा | वंशज होने से इसे यह नाम प्राप्त हुआ। यह प्रतिथि था। इसके पास अच्छे अश्व थे (ऋ. ८. ६.२४)। | देवतरथ का शिष्य था (वं. बा. २) ३६७ राखया
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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