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नारद
प्राचीन चरित्रकोश
नारायण
'पराशरमाधवीय' आदि ग्रंथों में, नारद के काफी श्लोक | वह स्त्री बना। उस समय उसे नारदी नाम प्राप्त हुआ लिये गये हैं।
(नारद. उ. ८०, नारद देखिये)। नारद याज्ञवल्क्य का परवर्ती होगा। नारद ने सात
नारायण--एक सूक्तद्रष्टा (ऋ. १०.९०)। प्रकार के दिव्य दिये हैं। याज्ञवल्क्य ने पाच ही प्रकार के
२. एक भगवस्वरूप देवता, एवं स्वायंभुव मन्वंतर के दिये हैं। नारद ने न्यायशास्त्र का सुसंगत विवेचन नहीं
सत्ययुग में प्रकट हुएँ भगवान् वासुदेव के चार अवतारों किया। याज्ञवल्क्य ने उसे व्यवस्थित ढंग से किया है।
में से एक । यह एवं इसके तीन भाई नर, हरि एवं कृष्ण नारद किस प्रदेश का रहनेवाला था, यह बताना कठिन
धर्म ऋषि के पुत्र के रूप में पृथ्वी पर अवतीर्ण हुए थे है। इसने कार्षापण (सिक्का) का उल्लेख किया है । यह
(म. शां. ३३४.९.१२; नरनारायण एवं नर देखिये)। सिक्का पंजाब में प्रचलित था। कुछ लोग कहते हैं कि, यह देवकीपुत्र कृष्ण इसीका ही अवतार बताया गया है नेपाल का निवासी होगा।
(म. आ. १.१)। ___ भट्टोजी दीक्षित ने 'ज्योतिर्नारद' नामक ग्रंथ का उल्लेख |
___ दक्षयज्ञ के समय, भगवान् शंकर ने एक प्रज्वलित किया है (चतुर्विशतिमत. ११)। रघुनंदन ने 'बृहन्नारद'
त्रिशूल चलाया। दक्षयज्ञ का विध्वंस कर के, वह भगवान् का एवं 'निर्णयसिंधु', 'संस्कारकौस्तुभ' आदि ग्रंथों में
नारायण की छाती में आ लगा। फिर नारायण ने हुंकार . 'लघुनारद' का निर्देश किया है । 'खुले आम किये गये
किया, एवं वह त्रिशल शंकर के हाथ में लौटा दिया। पातक की अपेक्षा, गुप्तरूप से किया गया पातक कई गुना
अपने त्रिशूल के अवमान से क्रुद्ध हो कर, शंकर ने नर एवं . कम दोषाह है, क्यों कि, उसमें कम से कम पातक
नारायण पर आक्रमण किया। पश्चात् हुए रुद्र-नारायण करनेवाले आदमी की धर्म के प्रति भीरूता प्रकट होती
युद्ध में, नारायण ने रुद्र का गला दबा दिया। अतः रुद्र । है', ऐसा धर्मशास्त्रकार के नाते नारद का कहना था
'नीलकंठ' हो गया (म. शां. ३३०.४९)। (नारद. १३.२७)।
नारायण ने देव एंव दानवों को समुद्रमंथन के लिये शिक्षाकार-नारद ने सामवेद पर एक 'शिक्षा' की |
| प्रवृत्त किया (म. आ. १५.११-१३)। पश्चात् इसने रचना की। यह शिक्षा प्रायः श्लोकबद्ध है। 'भट्ट
मोहिनी का रूप धारण कर, देवताओं को अमृत पिलाया शोभाकर' ने उस पर भाष्य लिखा है।
(म. आ. १६.३९-४००)। देवासुरसंग्राम में इसने असुरों अन्य ग्रंथ-नारद के नाम पर 'नारदपुराण' एवं |
का संहार किया था (म. आ. १७.१९-३०)। वास्तुशास्त्रसंबंधी अन्य एक ग्रंथ उपलब्थ हैं। उनमें से
नारायण के कृष्ण एवं श्वेत केश, श्रीकृष्ण एवं बलराम 'नारदपराण ' इसने 'सारस्वत कल्प' में बताया था के रूप में प्रगट हुए थे । महाभारत काल में, यह अपने (नारद. २.८२)।
भाई नर के साथ, बदरिकाश्रम में सुवर्णमय रथ पर बैठ ३. विश्वामित्र के ब्रह्मवादी पुत्रों में से एक (म. अनु. | कर तपस्या करता था (म. शां. १२२४६ )। ४.५९)।
महाभारत में, श्रीविष्णु के वाराह, नृसिंह आदि ४. राम की सभा का एक धर्मशास्त्री। इसने शूद्र हो कर
अवतार नारायण के ही अवतार बताये गये हैं (म. स. भी तपस्या करनेवाले शंबूक नामक शूद्र का, राम के द्वारा
३८)। पृथ्वीलोक से श्रीकृष्ण का निर्माण होने के बाद, वध करवाया । सोलह साल की छोटी उम्र में मृत हुए एक
अपने नारायणस्वरूप में वह विलीन हो गया (म. स्वर्गा. ब्राह्मणपुत्र को इसने पुनः जीवित कर दिया (वा. रा. उ.
५.२४*)। ७४)।
__पौष मास में नारायण के पूजन से प्राप्त होनेवाले नारद काण्व--एक सूक्तद्रष्टा (ऋ. ८.१३, ९.
पुण्यफल का वर्णन महाभारत में दिया गया है (म. अ. १०४-१०५)।
१०९.४)। नारद-पर्वत-वैदिक ऋषिद्वय (ऐ. बा. ७.३४ | पद्ममत में, पुष्करक्षेत्र में हुए ब्रह्माजी के यज्ञ में, ८.३१; नारद १. देखिये)।
उद्गातृगणों में से एक प्रतिहर्ता के नाते, नारायण उपस्थित नारदिन--विश्वामित्र का पुत्र ।
था (पम. सृ. ३४)। नारदी--नारद ने एक बार वृंदारण्य के कौसुम सरोवर ३. तुषित एवं साध्य देवों में से एक । में स्नान किया, जिस कारण उसका पुरुषत्व नष्ट हो कर | ४. (कण्व. भविष्य.) एक राजा । भागवत तथा
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