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नारद
प्राचीन चरित्रकोश
नारद
प्रचेताओं को नारद ने ज्ञानोपदेश दिया था (म. शां. | करने के हेतु, यह तुंबरु के पास गया। वहाँ इसे सारी ३१६-३१९)। सृष्टि की उत्पत्ति तथा लय के बारे में | रागिनियाँ टूटी मरोड़ी अवस्था में दिखाई पड़ीं। इसने जानकारी इसीने देवल को बतायी थी (म. शां. २६७)। उन्हें उनकी यह विकल अवस्था का कारण पूछा। फिर समंग के साथ इसका ज्ञानविषयक संवाद हुआ था (म. | | उन्होंने कहाँ, 'तुम्हारे बेढंगे' गायन के कारण, हमारी यह शां. २७५)। पुत्रशोक करनेवाले अकंपन राजा को, मृत्यु | हालत हो चुकी है । तुंबरु का गायन सुनने के बाद हमें की कथा बता कर इसने शांत किया था (म. शां. २४८- | पूर्वस्थिति प्राप्त होगी। २५०)। शास्त्रश्रवण से क्या लाभ होता है, इसकी रागिनियों के इस वक्रोक्तिपूर्ण भाषण से लज्जित हो जानकारी इसने गालव को दी थी (म. शां. २७६)। कर, यह श्वतद्वीप में गया। वहाँ इसने विष्णु की
प्राणापान में से प्रथम क्या उत्पन्न होता है, इसका | आराधना की । उस आराधना से प्रसन्न हो कर श्रीविष्णु ज्ञान नारद ने देवमत को प्रदान किया (म. आश्व. २४)। ने इससे कहा, 'कृष्णावतार में मैं खुद तुम्हें गायन शतयूषा को इसने स्वर्ग के बारे में जानकारी दी (म. | सिखाऊंगा'। इस वर के अनुसार, कृष्णावतार के आश्व. २७)।
समय, यह कृष्ण के पास गया । वह जांबवती, सत्यभामा भागवत आदि ग्रंथों में भी तत्त्वज्ञ नारद के अनेक | एवं रुक्मिणी, इन कृष्णपत्नियों ने तथा बाद में स्वयं कृष्ण निर्देश दिये गये है। सावर्णि मनु को 'पंचरात्रागमतंत्र' ने इसे गायनकला में पूर्ण पारंगत किया। श्रीकृष्ण के पास का उपदेश नारद ने दिया था (भा. १.३.८, ५.१९. | जाने के पहले यह पुनः एक बार तुंबरु के पास गया था। १०)। इसने व्यास को 'भागवत' ग्रंथ लिखने की परंतु वहाँ धैवतों के साथ षड्जादि छः देवकन्याओं को इसने प्रेरणा दी थी (भा. १.५.८)। ऋषिओं को इसने | देखा, एवं शरम के मारे यह वहाँसे वापस चला आया। ‘भागवतमाहात्य' बताया था (पध्न. उ. १९३- |
नारद-नारदी-पुराणों में नारद का व्यक्तिचित्रण,
एक धर्मज्ञ देवर्षि की अपेक्षा, एक हास्य जनक व्यक्ति के संगीतकलातज्ज्ञ---नारद श्रेष्ठ श्रेणी का संगीतकलातज्ज्ञ | नाते भी किया गया प्रतीत होता है। एवं 'स्वरज्ञ' था (म. आ. परि. १११.४०)। इसका विष्णु की माया के कारण, नारद का रूपांतर कुछ
नारदसंहिता' नामक संगीतशास्त्रसंबंधी एक ग्रंथ भी | काल के लिये 'नारदी' नामक एक स्त्री में हो गया था। प्राप्त है।
यह कथा विभिन्न पुराणों में, अलग अलग ढंग से दी गई • नारद ने संगीत कला कैसी प्राप्त की, इसके बारे में | है। 'नारदपुराण के मत में, वृंदा के कहने पर नारद ने कल्पनारम्य कथा अध्यात्मरामायण में दी गई है (अ. रा. | एक बार सरोवर में डुबकी लगाई। उस सरोवरस्नान के ७)। एक बार लक्ष्मी के यहाँ संगीत का समारोह हुआ। कारण, इसका रूपांतर नारदी नामक स्त्री में हो गया । उस समय गायनकला न आने के कारण, लक्ष्मी ने नारद इसी नारदी का कृष्ण से वैवाहिक समागम हो गया। को दासियों के द्वारा बेंत एवं धक्के मार कर सभास्थान से | पश्चात् अन्य एक सरोवर में स्नान करने पर, इसे पुरुषरूप निकाल दिया, एवं संगीतकलाप्रवीण होने के कारण तुंबरु | फिर वापस मिल गया (नारद, २.८७; पद्मका सम्मान किया । यह अपमान सहन न हो कर, इसने | पा. ७५)। लक्ष्मी को शाप दिया, 'तुम राक्षसकन्या बनोगी। मटके | यही कथा 'ब्रह्मपुराण' में इस प्रकार दी गयी है। में इकट्ठा किया गया खून पी कर रहनेवाली स्त्री के उदर एक बार श्वेतद्वीप में जा कर, नारद ने श्रीविष्णु की स्तुति से तुम्हारा जन्म होगा । अपने माता के नीच कृत्य के की। उसने प्रसन्न हो कर इसे वर माँगने के लिये कहा । कारण, तुम्हें घर से निकाल दिया जायेगा। फिर इसने कहा, 'भगवन् मुझे अपनी माया दिखाओ'।
गायन सीखने के लिये यह गानबंधुओं के पास गया । इसे गरुड़ पर बैठा कर विष्णु कान्यकब्ज देश ले गया, तथा वहाँ यह गानविद्याप्रवीण बन गया, एवं इसे स्वरज्ञान हो | एक सरोवर में स्नान करने के लिये उसने इसे कहा । कर, संगीतकला में अन्तर्गत दशसहस्र स्वरों का सूक्ष्म स्नान के लिये सरोवर में डुबकी लगाते ही इसे पता चला भेदाभेद यह समझने लगा। किन्तु इसका संगीत ज्ञान केवल | कि, इसका रूपांतर काशिराज की कन्या सुशीला नामक ग्रांथिक ही रहा। इसके गले से निकलनेवाले स्वर अभी | स्त्री में हो गया है । बाद में सुशीला का रूप धारण किये तक बेढंगे ही रहे । अपने अधुरे संगीतज्ञान का प्रदर्शन | हुए नारद का ब्याह विदर्भ राजा सुशर्मा से हुआ। पश्चात्
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