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________________ नारद नारद ने पुनः जन्म लिया, ऐसा निर्देश प्राप्त है ( म. आ. ५९. ४३ ) । देवों का वार्ताहर - त्रैलोक्य के राजाओं का वार्ताहर, एवं सलाहगार ऋषि मान कर, नारद का चरित्रचित्रण महाभारत में किया गया है। अर्जुन के जन्म के समय नारद उपस्थित था (म. आ. ११४.४६ ) | द्रौपदी के स्वयंवर में, अन्य गंधर्व एवं अप्सराओं के साथ, यह गया था (म. आ. १७८.७) । पश्चात् द्रौपदी के निमित्त पांडवों का आपस में कोई मतभेद न हो, इस उद्देश्य से नारद इंद्रप्रस्थ चला आया। पांडवों के प्रति, मुंद एवं उपसुंद की कथा का वर्णन कर, द्रौपदी के विषय में झगड़े से बचने के लिये कोई नियम बनाने की प्रेरणा, इसने पांडवों को दे दी ( म. आ. २०४ ) 1 प्राचीन चरित्रकोश युधिष्ठिर इंद्रप्रस्थ का राजा होने के पश्चात्, नारद ने उसे हरिश्चंद्र की कथा सुना कर, राजसूय यश की प्रेरणा दी ( म. स. ११.७० ) । राजसूययज्ञ में अवभृथस्नान के समय, नारद ने स्वयं युधिष्ठिर को अभिषेक किया (म. स. ४९६.१० ) । विदर्भ देश की राजकन्या दमयंती के स्वयंवर की बार्ता इंद्र को नारद ने ही कथन की थी (म. व. ५१.२०-२४)। राजा अश्वपति के पास जा कर, सत्यवान् एवं सावित्री के विवाह का प्रस्ताव नारद ने ही प्रस्त किया था (म. व. २७८.११-३२) । प्राचीन राजाओं की अनेक कथाएँ नारद के द्वारा 'महाभारत' में कथन की गयी हैं । उनमें से इसने सृज्य राज्य को कथन किये, 'पोटश राजकीय उपाख्यान की कथाएँ विशेष महत्त्वपूर्ण मानी जाती है (म. द्रो, परि. १.८.३२५-८७२ ) । उन कथाओं में निम्नलिखित राजाओं के चरित्र, पराक्रम, महत्ता, दानशीलता, एवं उत्कर्ष का वर्णन किया गया है:-१. आविक्षित मस्त २. वैदिथिन सुहोत्र, ३. पौरव, ४. औशीनर शिबि, ५. दाशरथि राम, ६. ऐक्ष्वाकु भगीरथ, ७. ऐलविल दिलीप, ८. यौवनाश्व मान्धातृ, ९. नाहुष ययाति, १०. नाभाग अंबरीष, ११. यादव शशबिंदु, १२. आमूर्तरयस गय, १३. सांकृति रंतिदेव, १४. दौष्यन्ति भरत, १५ वैन्य पृथु, १६. जामदग्न्य परशुराम । नारद ने कथन की हुआ येही कथाएँ, भारतीय युद्ध के बाद, श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से निवेदन की थी ( म. शां. २९ ) । 6 नारद द्रो. १३८ ) । भारतीय युद्ध में हुए कौरवों के संपूर्ण विनाश की वार्ता, बलराम को नारद ने ही सुनायी थी ( म. श. ५३. २३-३१) । अर्जुन एवं अश्वत्थामा के युद्ध यें ब्रह्मास्त्र को शांत करने के लिये नारद प्रकट हुआ था (म. सी. १४० ११-१२ ) । युद्ध के पश्चात् युधिि के पास आ कर, उसका कुशल समाचार नारद ने पूछा था ( म. शां. ९-१२ ) | युधिष्ठिर के अधमेधयज्ञ के समय नारद उपस्थित था (म. अश्व. ९०.३८ ) । प्राचीन ऋषिओं की तपः-. सिद्धि का दृष्टान्त दे कर, नारद ने धृतराष्ट्र की तपस्याविषयक श्रद्धा को बढाया था ( म. आश्व. २६.१) । वन में धृतराष्ट्र, कुन्ती एवं गांधारी दावानल से दग्ध होने का समाचार, नारद ने ही युधिष्ठिर को कथन किया. पा ( म. आश्व. ४५. ९ - ३१ ) | नारद ने युधिष्ठिर से कहा, 'धृतराष्ट्र लौकिक अग्नि से नहीं, किंतु अपने ही अनि से दग्ध हो गया है ' । इतना कह कर, इसने युधिष्ठिर से धृतराष्ट्र को जलांजली प्रदान करने की आज्ञा दी ( म. आश्व. ४७. १- ९ ) । सांत्र के पेंट से मुसल पैदा होने का शाप देनेवाले ऋषिओं में नारद एक था (म. मौ. २. ४) । तत्वज्ञ नारद- एक तत्व के नाते, नारद श्रेष्ठ विभूति थे। तत्त्वज्ञ नारद ने दिये उपदेश के अनेक कथाभाग 'महाभारत' में निर्देश किये गये है। तीस लाख श्लोकोवाला 'महाभारत' मारद ने देवताओं को सुनाया था ( म. आ. परि. १. ४) ' पंचरात्र' नामक आत्मतत्त्व का उपदेश नारद ने व्यास को दिया था ( म. शां. ३२६) । इसने सूर्य के अष्टोत्तरशत नाम का उपदेश धौम्य को दिया था ( म. व. ३. १७- २९ ) । इसने शुकदेव को वैराग्य, ज्ञान आदि विविध विषयों का उपदेश दिया था (म. शां. ३१६-३१८) । मार्कडेय को नारद ने धर्मशास्त्र एवं तत्वज्ञान के बारे में जानकारी दी थी (म. अनु. ५४ - ६३ कुं.) । पूजनीय पुरुषों के लक्षण, एवं उनके आदरसत्कार से होनेवाले लाभ का वर्णन इसने श्रीकृष्ण को बताया था (म. अनु. ३१.५-२५) | श्रीकृष्ण की माता देवकी को, विभिन्न नक्षत्रों में विभिन्न वस्तुओं के दान का महत्व नारद ने कथन किया था ( म. अनु. ६४.५-३५) । " श्रेयःप्राप्ति के लिये नारायण की उपासना करने का उपदेश, नारद ने पुंडरीक को दिया था ( म. अनु. १२४ ) । समुद्र के किनारे महासत्र करनेवाले ज्ञानी भारतीय युद्ध के रात्रियुद्ध में, नारद ने कौरवपांडवों की सेनाओं में दीपक का प्रकाश निर्माण किया था ( म. ३६२ "
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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