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________________ नारद प्राचीन चरित्रकोश इसने " । सोमक साहदेव्य नामक अपने शिष्य को सोमविया सिखायी थी (ऐ, ब्रा. ७.२४) पर्यंत नामक अन्य आचार्य के साथ, इसने आंष्टय एवं सुधांश्रष्टि राजाओं को ऐंद्रमहाभिषेक किया था (पे ब्रा. ८.२१ ) । 3 " । . २. एक देवर्षि एवं ब्रह्माजी का मानसपुत्र एक धर्मश तत्त्वज्ञ, वेदांत, राजनीतिज्ञ एवं संगीतज्ञ के नाते, नारद का चरित्र चित्रण महाभारत में किया गया है (म. आ. परि. १. १११) जी चाहे वहाँ भ्रमण । करनेवाले एक ऋषि के नाते, नारद तीनों त्रिकाल आकाशमार्ग से प्रवास करता था, एवं इसका संचार तीनों लोकों में रहता था। यह वेद एवं वेदांत में पारंगत, ब्रह्मशनयुक्त, एवं नयनीतिश था। राजाओं के घर में इसे वृहस्पति जैसा मान था । यह 'नानार्थकुशल', एवं लोगों के धर्म, राजनीति एवं नित्यव्यवहार आदि विषयों के संशय दूर करने में प्रवीण था। स्वभाव से यह पुण्यशील सीदासादा एवं मृदुभाषणी था । यह उत्कृष्ट प्रवचनकार एवं संगीतकार था । स्वरूपवर्णन - नारद की शरीरकांति श्वेत एवं तेजस्वी थी। इंद्र ने प्रदान किये सफेद, मृदु एवं धूत वस्त्र यह परिधान करता था। कानों में सुवर्णकुंडल, कंधों पर वीणा, • एवं सिर पर, ' श्लक्ष्ण शिखा' (मृदु चोटी ) से, यह अलंकृत रहता था । नारद कश्यप प्रजापति के घर लिये अपने अगले जन्म में भी, दस के शाप की पीड़ा इसे पूर्ववत् ही भुगतनी पड़ी। जन्म-नारद ब्रह्माजी का मानसपुत्र एवं विष्णु का तीसरा अवतार था ( भा. १.३.८९ मत्स्य. ३.६ - ८ )। यह ब्रह्माजी की जंघा से उत्पन्न हुआ था (भा. २.१२. (२८) । यह नरनारायणों का उपासक था ( भा. १.३ ), एवं दर्शन तथा जिज्ञासापूर्ति के हेतु यह उनके पास हमेशा जाता था (म. शां. ३२१.१३-१४ ) । यह चाक्षुष मन्वन्तर के सप्तर्षिओं में से एक था। दक्ष के शाप की यही कहानी, अन्य पुराणों में कुछ अलग ढंग से दी गयी है। हरिवंश के मत में, दक्ष ने नारद को शाप दिया, 'तुम नष्ट हो कर, पुनः गर्भवास का दुख सहन करोगे (ह. सं. १.१५)। परमेष्ठी ने अन्य अार्थियों को आगे कर, नारद को उःशाप देने की प्रार्थना दक्ष से की। फिर दक्ष ने परमेष्ठी से कहा, 'मैं अपनी कन्या तुम्हें विवाह में दे दूँगा, एवं उस कन्या के गर्भ से नारद का पुनर्जन्म हो जायेगा ( वायु. ६६.१३५१५० ब्रह्मांड २.२.१८ ) । इस उःशाप के अनुसार, परमेशी का विवाह दक्षकन्या से होने के पश्चात् उन्हे नारद पुत्ररूप में प्राप्त हो गया (अ. १२.१२-१५) । , " देवी भागवत के मत में, दक्ष ने नारद को शाप दिया, 'तुम्हारा नाश हो कर, अगला जन्म तुम्हें मेरे ही पुत्र के नाते लेना पड़ेगा। इस शाप के अनुसार, नारद मृत हो गया एवं 'दक्ष' एवं वीरिणी के पुत्र के नाते, नया जन्म लेने पर विवश हो गया (दे. भा. ७०१) । बायुपुराण के मत में, शिवजी के शाप के कारण जिन प्रजापतियों की मृत्यु हो गयी, उनमें नारद भी एक था ( वायु. ६६.९ ) । अपने अगले जन्म में, यह कश्यप प्रजापति का पुत्र एवं अरुंधती तथा पर्वत इन कश्यप संतति का भाई बन गया ( वायु. ७१. ७८. ८० ) । महाभारत के मत में, पर्वत नारद का भाई न हो कर, भतीजा था ( म. शां. १०० ५३ . भा. दे. ६.२७ ) । • ब्रह्मवैवर्तपुराण में नारद के पुनर्जन्म की कहानी कुछ अलग ढंग से दी गयी है। दक्ष के शाप के कारण, एक शूद्रस्त्रीगर्भ से यह पुनः उत्पन्न हुआ । इस नये जन्म में इसकी माता कलावती नामक शुद्ध स्त्री थी। इमिल नामक शुद्र की वह पत्नी थी। अपने पति की अनुमति से, कलावती ने पुत्रप्राप्ति के हेतु, कश्यप प्रजापति का वीर्य प्राशन किया। बाद में मिल ने देहत्याग किया, एवं कलायती एक ब्राह्मण के घर प्रसूत हो कर, उसे एक पुत्र हुआ। वही नारद है । बाद में इसे कश्यप ऋषि को अर्पण किया गया | कृष्णस्तव के कारण, यह शापमुक्त हुआ, एवं ब्रह्मदेव ने इसे सृष्टि उत्पन्न करने की अनुज्ञा भी दी। किंतु यह आजन्म ब्रह्मचारी ही रहा। महाभारत में, कश्यप एवं मुनि के पुत्र के रूप में, पुनर्जन्म - नारद ने दक्ष के ' हर्यश्व' नामक दस हवार पुत्रों को सांख्यान का उपदेश दिया, जिस कारण वे सारे विरक्त हो कर घर से निकल गये (म. आ. ७०. ५-६ ) । अपने पुत्रों को प्रजोत्पादन से परावृत्त करने के कारण, दक्ष नारद पर अत्यंत क्रुद्ध हुआ, एवं उसने इसे शाप दिया (विष्णु. १.१५ ) । इस शाप के कारण, नारद ब्रह्मचारी रह कर हमेशा भटकता रहा, एवं सारी दुनिया में झगड़े लगाता रहा ( मा. ६.५.२७-३९ ) । दक्ष का शाप इसे जन्मजन्मांतर के लिये मिला था। इस कारण प्रा. च. ४६ ] ३६१
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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