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________________ नाभाग प्राचीन चरित्रकोश नारद ज्ञान हो गया, एवं ब्रह्मलोक में इसे प्रवेश मिल गया (म. | नामांतर भी प्राप्त हैं (अग्नि. २७२. १७१; नभग अनु. ११५.५८-६८)। देखिये)। इसके सत्याचरण एवं उदारता की एक कथा पद्मपुराण ३. (सू. दिष्ट.) वैशाली देश का राजा । यह वैवस्वत । में दी गयी है। अपने कुमारआयु में, यह गुरुगृह में मनु का पौत्र, एवं दिष्ट राजा का पुत्र था । विष्णुमत विद्यार्जन कर रहा था । यह मौका देख, वैवस्वत मनु के | में यह 'नेदिष्ट' का भागवतमत में यह 'दिष्ट' का, अन्य पुत्रों ने उसका राज्य आपस में बाँट लिया । नाभाग एवं वायुमत में यह मनु का पुत्र था (सुप्रभा ३. को उसके राज्य के हिस्से से वंचित कर, इसे इसका पिता | देखिये)। हिस्से के रूप में दिया। फिर इसके पिता ने इसे कहा, नाभानेदिष्ठ मानव-एक सूक्तद्रष्टा ऋषि (ऋ १०. 'तुम चिंता मत करो। विपुल धनार्जन का रास्ता मैं तुम्हे | ६१-६२)। यह स्वायंभुव मनु का पुत्र था । पुराणों दिखाता हूँ। आंगिरस ऋषि यज्ञ कर रहे है। यज्ञ के | में 'नाभाग' के नाम पर दी गयी 'आंगिरस यज्ञ' की छठवें दिन उन्हे कुछ भ्रम सा हो कर, यज्ञ के मंत्र की | कथा वैदिक ग्रंथों में इसके नाम पर दी गयी है (ऐ. उन्हे विस्मृति हो जाती है। उस वक्त, तुम उसे दो वैश्व- | ब्रा. ५. १४; तै. सं. ३. १. ९. ४-६; सां. बा. २८. देवसूक्त' गा कर बताओ। उससे उसका यज्ञ पूरा होगा, | ४; ३०. ४; सां. श्री. २६. ११. २८-३०)। एवं प्रसन्न हो कर, यज्ञ के लिये एकत्रित किया सारा धन | 'पंचविंशब्राह्मण' में इसके नाम का निर्देश 'नाभाने-' वह तुम्हे दे देंगा।' | दिष्ठी' नाम से कर, इसने प्रणयित ऋग्वेद सूक्तों को पिता के कथनानुसार, इसने अंगिरस् को 'मंत्रस्मरण | 'नाभानेदिष्ठीय सूक्त' कहा गया है (पं. बा. २०.' के बारे में सहायता दी' एवं अंगिरस् ने भी यज्ञ का | ९.२)। सारा धन इसे दे दिया। किंतु इसी वक्त एक कृष्णवर्णीय | नाभि-एक राजा । प्रियव्रतपुत्र आग्नीध्र राजा को. पुरुष का रूप धारण कर, रुद्र वहाँ उपस्थित हुआ, एवं | पूर्वचित्ति नामक अप्सरा से यह उत्पन्न हुआ था । इसे : यज्ञधन माँगने लगा। यज्ञ का अवशिष्ट धन पर रुंद्र का | मेरुदेवी नामक स्त्री थी, जिससे इसे ऋषभदेव नामक ही अधिकार रहता है, यह जानते ही नामाग ने सारा पुत्र हुआ। इसके नाम से, इसके 'वर्ष' (राज्य), द्रव्य रुद्र को दे दिया । इसकी इस उदारता से प्रसन्न को 'अजनाभवर्ष' नाम प्राप्त हुआ (भा. ५. २. १९; हो कर, रुद्र ने आंगिरस के यज्ञ की सारी संपत्ति नाभाग ४.२)। .. को प्रदान की एवं इसे 'ब्रह्मविद्या' भी सिखायी (पन. | नाभिगुप्त-कुशद्वीप का राजा ' श्रेयव्रत' हिरण्यरेतस् सृ.८)। के सात पुत्रों में से एक । हिरण्यरेतस् ने अपने राज्य के बिल्कुल यही कथा नाभानेदिष्ठ के नाम पर प्राचीन | सात भाग कर, वे अपने सात पुत्रों में बाँट दिये थे (भा. वैदिक ग्रंथों में दी गयी है (ऋ १०.६१-६२)। ऋग्वेद | ५.२०.१४; हिरण्यरेतस् देखिये)। के उन सूक्तों की रचना 'नाभाककाण्व ' ने की हैं (ऋ. __ नायकि-अंगिरसकुल का मोत्रकार। ८.३९-४१; नि. १०.५)। नायु-दक्ष एवं असिनी की कन्या, तथा कश्यप की नाभाग को अंबरीष नामक एक पुत्र था । इसके वंश | पत्नी। की विस्तृत जानकारी बारह पुराणों में दी गयी है (वायु. नारद-एफ वैदिक द्रष्टा एवं यज्ञवेत्ता (अ. वे. ५. - ८९; विष्णु. ४.२; अग्नि. २७२, ब्रह्मांड. ३.६३, ब्रह्म. १९.९; १२.४.१६; २४; ४१; मै. सं. १.५.८)। यह ७; मत्स्य. १२; ह. वं. १.१०; भा. ९.४-६)। हरिश्चंद्र राजा का पुरोहित था, एवं पुरुषमेध करने की राय २. (सू. इ.) अयोध्या देश का राजा । विष्णु, वायु | इसीने उसे दी थी (ऐ. ब्रा. ७.१३)। वशा धेनु का मांस एवं भागवतमत में, यह श्रुत राजा का पुत्र था । मत्स्य- ब्राह्मण ने भक्षण करना योग्य है या अयोग्य, इस विषय में मत में, भगीरथ राजा के दो पुत्रों में से यह कनिष्ठ पुत्र | इसका नामनिर्देश अथर्ववेद में कई बार आया है। था। भागवत में इसका 'नाम' नामांतर प्राप्त है। इसके यह बृहस्पति का शिष्य था (सां. ब्रा. ३.९)। यद्यपि पुत्र का नाम अंबरीष था। किंतु रामायण में अंबरीष | सारी विद्याएँ इसने बृहस्पति से प्राप्त की थी, तथापि इसके पूर्वकालीन बताया गया है। 'ब्रह्मज्ञान' के प्राप्ति के लिये, यह सनत्कुमार के पासइसके नाभागारिष्ट, नाभानेदिष्ट, एवं नाभागदिष्ट | गया था (छां. उ. ७.१.१)। ३६०
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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