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नारद
प्राचीन चरित्रकोश
नारद
विदर्भ राजा सुशर्मा, तथा काशिराज का आपस में युद्ध | ले लिये । पश्चात् संजय की कन्या दमयती से नारद का हो कर, दोनों का ही नाश हो गया। जनककुल तथा | ब्याह हो गया (दमयंती देखिये)। भर्तृकुल दोनों का ही नाश देख कर, दुःखातिरेक से इसने | सुवर्णष्ठीविन् कथा-संजय की सेवा से संतुष्ट हो कर, चिता में प्रवेश किया। .
नारद ने उसे बर माँगने के लिये कहा । संजय ने सर्वगुणबात यहाँ तक बढ़ते ही यह पानी से बाहर आया | संपन्न पुत्र माँगा। नारद के वरानुसार कुछ दिनों के बाद एवं यह सारा कथाभाग इसे सपने जैसा प्रतीत होने संजय को एक पुत्र हुआ। महाभारत द्रोणपर्व के अनुसार, लगा। किन्तु उस प्रसंग के चिह्नस्वरूप जलने की निशानी जिसके मूत्रपूरीषादि उत्सृष्ट पदार्थ सुवर्ण के है, ऐसा पुत्र इसकी जाँघ पर रह गई, तथा उसके दुःख से यह लगातार | संजय ने नारद से माँगा । नारद के आशीर्वाद से उसे वैसा तड़पने लगा । सरोवर के किनारे बैठे हुए विष्णु का दर्शन | ही सुवर्णष्ठीविन् नामक पुत्र पैदा हुआ। सुवर्णमय मलमूत्र लेते ही, इसकी वेदना शान्त हो गयी (ब्रह्म. २२८)। विसर्जन करनेवाले उस बालक को कई चोर चुरा ले गये
'देवीभागवत' के कथनानुसार, अपने नारीअवतार | तथा उसका उदर उन्होंने विदीर्ण किया। किन्तु इच्छित में नारद तालजंघ राजा की पत्नी बना था, जिससे इसे | सुवर्णप्राप्ति न होने के कारण, क्रोधित होकर वे आपस में बीस पुत्र पैदा हुएँ थे (दे. भा. ६. २८-३०)। ही लड़ कर मर गये (म. द्रो. ५५)। ___ एक बार गाने की मधुर आवाज सुन कर, नारद ने शान्तिपर्व में यही कथा कुछ अलग ढंग से दी गई वृंदा से पूछा, 'यह गाने की आवाज कहाँ से आ रही है। 'अपना पुत्र इंद्र का पराजय करनेवाला हो,'ऐसी है ? फिर उसने इसे गीतगायन में तल्लीन कुब्जा दिखाई, सुंजय की इच्छा थी। 'तुम्हारा पुत्र दीर्घायु नहीं होगा' एवं कुब्जा का जन्मवृत्तांत इसे बताया (नारद २.८०)। ऐसा शाप पर्वत ने संजय को दिया था। फिर संजय ...
विवाह-शिबिराज संजय की दमयंती नामक कन्या अत्यंत निराश हो गया । उसका दीनवदन देख कर के साथ नारद का विवाह हुआ था, ऐसा कथाभाग कई | नारद ने उसे कहा, 'पर्वत के शाप से तुम्हारा पुत्र मृत पुराणों में दिया गया है। 'नारदविवाह' की ब्रह्मवैवर्त होते ही, मेरा स्मरण करो। मैं तुम्हे उसी रूपगुण का पुराण में दी गयी कथा इस प्रकार है (ब्रह्मवै. ४.१३०.१० | दूसरा पुत्र प्रदान करूँगा।' -१५)। एक बार नारद तथा उसका भतीजा पर्वत घूमते | नारद के वर के अनुसार संजय को एक पुत्र हुआ। घूमते शैव्यपुत्र संजय (संज्य) के घर आये, एवं वहाँ कुछ उसका नाम सुवर्णष्ठीविन् रख दिया गया। वह अपना काल तक रह गये। संजय ने इनका स्वागत किया, एवं पराभव करेगा ऐसा भय इंद्र को लगा । इसलिये इंद्र अपनी कन्या दमयंती को इनके सेवा में नियुक्त किया। ने उस पुत्र के पीछे वज्र छोडा, जिससे कुछ फायदा नहीं उस समय नारद तथा पर्वत में एसा करार हुआ था, हुआ। बाद में एक दाई के साथ वह पुत्र सरोवर की 'इन दोनों के मन में जो भी बात आवेगी, वह छिपाना ओर घूमने गया । उस समय उसे एक शेर ने मार नहीं बल्कि तत्काल दूसरे को कथन करना, अगर कोई कुछ डाला । पुत्रशोक से पागल से हुए, संजय ने नारद का छिपाने की कोशिश करे, तो दूसरा उसे शाप दे सकता| स्मरण किया। फिर नारद प्रकट हुआ, एवं संजय के
शोकहरणार्थ इसने उसे काफी उपदेश किया। उपदेश करते ___ कई दिन बीतने के बाद, नारद दमयन्ती पर प्रेम करने समय इसने मरुत्ता दि राजाओं का चरित्र कथन कर के लगा, किन्तु यह बात इसने पर्वत से छिपा रखी । नारद | उसका दुःख कम किया। उसका शोक दूर होने पर, नारद की इस दगाबाजी को देख कर, पर्वत इस पर अत्यंत क्रोधित ने उसे उसका मृत पुत्र वापस दिया (म. द्रो. परि. १. हुआ, एवं उसने इसे शाप दिया, 'तेरा मुख वानर के | क्र. ५८)। सदृश हो जावेगा, एवं अन्यों को तुम साक्षात् मृत्यु शत्रुघ्न को चेतावनी-रामायणकाल में राम का के समान दिखाई दोगे'। यह शाप सुन कर, नारद ने भी अश्वमेधीय अश्व वीरमणि ने पकड़ लिया। उस समय पर्वत को प्रतिशाप दिया, 'तुम्हें स्वर्गप्राप्ति नहीं होगी। वहाँ प्रकट हो कर, नारद ने अश्व की रक्षा करनेवाले शत्रुघ्न
इस पर पर्वत दीन हो कर नारद की शरण में आया, को चेतावनी दी, एवं सावधानी से युद्ध करने के लिये तथा इसे अपना शाप वापस लेने के लिये प्रार्थना करने कहा। 'युद्धभूमि में विजय अत्यंत प्रयत्न से ही प्राप्त लगा। फिर नारद एवं पर्वत ने अपने अपने शाप वापस | होता है,' ऐसा इसके उपदेश का सार था।