SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 37
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्राचीन चरित्रकोश अजिह्नका अजिह्निका अशोकवन की एक राक्षसी (म.व. २६४. ४४ ) । अजीगर्त सौयवसि - भृगुकुलोत्पन्न एक ब्राह्मण | इसे पुच्छ शुनःशेष तथा गोल नामक तीन पुत्र थे । शुनःशेप को इसने वरुण को बलि देने के लिये, हरिश्चन्द्र को बेच दिया था (ऐ. बा. ७. १५-५७ ) । ( अम्बरीष तथा ऋचीक देखिये ) । अजेय - पारावत तथा विकुंठ देवताओं में से एक। अजैकपात्-- भूत ऋषिको घोरा से उत्पन्न एक रुद्र । २. एक अग्नि, यह रुद्रभी था। (अज एक गद् देखिये) अजैकपाल - शंकर के प्रसाद से प्राप्त पुत्र । इसका एक पैर मनुष्य का तथा दूसरा बकरे का था । बचपन में मृत्यु रोगों के साथ इसे मारने के लिये आया। परंतु इसने मृत्यु को जीत लिया । इस कारण इसे मृत्युंजय नाम प्राप्त हुआ। यह अत्यंत सात्त्विक था (भवि. प्रति. ४. ११) अंजक - कश्यप को दनु से उत्पन्न एक दानव । अंजन - ( सू. निमि.) विष्णु के मत से कुणिपुत्र | २. ऐरावण का पुत्र । यह यम का वाहन है ( ब्रह्मांड ३- ७. ३३० ) । । अंजनपर्वन् घटोकच का पुत्र ( म.उ. १९५ १९०. ५९३ ) । यह रात्रियुद्ध में अश्वत्थामा के हाथों से मारा गया (म. हो. १२१.५२ ) । अंजना -- यह पूर्वजन्म में पुंजकस्पती नामक अप्सरा थी। शाप के कारण यह पृथ्वी पर कुंजर नामक वानर की कन्या हुई। परंतु अन्य स्थानों पर इसे गौतम ऋषि की कन्या माना गया है ( शिव. शत. २० ) । यह केसरी बानर की पत्नी थी (भवि. प्रति. ४. १३) । मतंग ऋषि के कहने से अंजनी ने पति के साथ वेंकटाचल पर जा कर पुष्करिणीतीर्थ पर स्नान कर के, वराह तथा वेंकटेशं को नमस्कार किया। तदनंतर आकाशगंगातीर्थ पर वायु की आराधना की । १००० वर्षों तक तप होने के बाद वायु प्रगट हुआ, तथा उसने कहा ' चैत्र माह की पौर्णिमा के दिन मैं तुम्हारी कामना पूर्ण करूंगा। तुम वरदान मांगो।' इसने पुत्र मांगा । बाद में वायुप्रसाद से इसे मारुती (हनुमान) उत्पन्न हुआ ( स्कन्द २.४०) । इसे मार्करा नामक खोत थी ( आ. रा. सार. १३)। इसका अंजनी तथा अंजना दोनों नामों से उल्लेख भाता है। यह काम रूपधरा थी ( वा. रा. किं. ६६ ) । अरमान - - (आंध्र. भविष्य . ) मेघस्वाती का पुत्र । अतिरथ अट्टहास - वर्तमान मन्वन्तर के बीसवें पौखाने में हिमालय के अट्टहास शिखर पर यह शिव का अवतार हुआ। वहाँ इसे निम्नांकित शिष्य थे- १. सुमन्तु, २. बर्वरी, ३. कच, ४. कुशिकंधर ( शिव शत. ५) । अणि मांडव्य - मांडव्य ऋषी का नामान्तर | . अणीचिन् मौन - धार्मिक विधि के संबंध में एक तत्त्वज्ञ तथा जावाल तथा चित्र गोत्रायणि का समकालीन (सां. बा. २३. ५ ) । अग्रह -- (सो. पूरु.) विभ्राज अथवा पार राजा का शुकाचार्य की कन्या कृत्वी अथवा कीर्तिमती । इसे ब्रह्मपुत्र । इसे नीप नामक दूसरा नाम है। इसकी पत्नी दस तथा अन्य भी सौ पुत्र थे। दत्त अतिकाय -- धान्यमालिनी से रावण को प्राप्त पुत्र । इसका शरीर अत्यंत स्थूल होने के कारण, इसे यह नाम मिला । इसने ब्रह्मदेव की आराधना कर के अस्त्र, कवच, दिव्य रथ तथा सुरामुरो से अवध्यत्व प्राप्त किया। इसी कारण, इसने इन्द्र का पराभव किया तथा वरुण को जीत कर उससे उसका पाश प्राप्त किया । कुंभकर्ण की मृत्यु के बाद यह युद्धार्थ आया तब लक्ष्मण ने इसका वध किया । ( वा. रा. यु. ७१ ) । अतिथि - (सू.इ.) कुरा का पुत्र इसका पुत्र निषध । भविष्य के मतानुसार इसने दस हजार वर्षो तक राज्य किया । २. आय देवगणों में से एक। अतिथिग्व- दिवोदास को इस नाम से संबोधित किया है। इसका संबंध इंद्रोत, पर्णय, करंज और तुर्वयाण से माना जाता है । अतिधन्वन् -- मशक का शिष्य । इसका शिष्य उदर शांडिल्य (वं. बा. २ ) । इसने उदरशांडिल्य को उद्गीथ की उपासना के बारे में जानकारी बताई (छां. उ. १.९.२ ) । अतिनामन् - चाक्षुष मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक । अतिबाहु- स्वायंभुव मनु का पुत्र (मनु देखिये ) । २. कश्यप को प्राधा से उत्पन्न एक गंधर्व । अतिभानु-- सत्यभामा तथा कृष्ण का पुत्र । अतिभूति - (सू. दिष्ट. ) विष्णु के मत में यह खनिनेत्र का पुत्र है। अतिरथ -- (सो. पुरु. ) मतिनार का पुत्र ( म. आ. ८९. ११ ) । १५
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy