SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 38
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अतिरात्र प्राचीन चरित्रकोश अतिरात्र- चक्षुर्मनु का पुत्र (मनु देखिये)। लाता है, ऐसा माना जाता था (ऋ. ५.४०.५-९. अतिसाम एतुरेत-प्राणविद्या की रक्षा करने वाले | ब्रह्माण्ड, ३.८.७७; ह. बं. १.३१. १३-१४, प्रभाकर तत्त्वज्ञानियों में से एक मान कर इसे नमन किया गया है | आत्रेय देखिये)। (जै. उ. ब्रा. २६.१५)। स्वायंभुव मन्वन्तर में प्रजोत्पादनार्थ ब्रह्मदेव द्वारा निर्मित अतुलविक्रम- (सू.इ.) भविष्य के मतानुसार दस मानस पुत्रों में सें यह एक था ( वायु. १.९)। यह क्रोधदान का पुत्र । ब्रह्मदेव के नेत्र से या मस्तक से उत्पन्न हुआ था (भा. ३.१२. अत्यंहस आरुणि-प्लक्ष दय्यांपति के पास सावित्राग्नि | २४; मत्स्यः ३.६-८)। यह स्वायंभुव मन्वन्तर में ब्रह्मा के के बारे में प्रश्न करने के लिये इसने अपना शिष्य भेजा | कान से उत्पन्न हुआ (वायु, ९.१०१; ब्रह्माण्ड, २.९.२३; था। परंतु उस शिष्य की उसने काफी निर्भर्त्सना की (तै. । ब्रह्मन् देखिये)। स्वायंभुव मनु का यह जामात । दक्ष ने ब्रा. ३.१०.९.३-५)। सती एवं शंकर को न बुलाने के कारण, सती ने स्वयं को दग्ध __ अत्यराति जानंतपि- एक पृथ्वीजेता। राजा न कर लिया। इस क्रोध के कारण शंकर ने सब को दग्ध होते हुए भी, वासिष्ठ सात्यहध्य ने इसे ऐन्द्र महाभिषेक कर दिया। उसमें इसकी मृत्यु हो गई । दक्ष की कन्या किया। इस कारण, इसने सारी पृथ्वी जीती। वासिष्ठ अनसूया इसकी पत्नी । अत्रि को अनसूया से पांच पुत्र सात्यहव्य ने जब पौरोहित्य का स्मरण दिला कर उसके हुए। १. श्रुति (शंखपद की माता तथा कर्दम पौलह लिये पुरस्कार मांगा, तब इसने कहा कि, " उत्तर कुरुओं प्रजापती की पत्नी), २. सत्यनेत्र, ३. हव्य, ४. आपोमूर्ति को जीतने के बाद संपूर्ण पृथ्वी का राज्य आपको दे कर मैं शनैश्वर, ५. सोम | इस मन्वन्तर. में हजारो आत्रेय उत्पन्न आपका सेनापति बनूंगा"। इस पर सात्यहव्य ने कहा, हुए (ब्रह्माण्ड. २. ११. २५)। शंकर के वर से ही यह "तुमने मुझको धोखा दिया । क्यों कि मानव उत्तर कुरुओं पुनः वैवस्वत मन्वन्तर में उत्पन्न हुआ। यह एक प्रजापति को नहीं जीत सकते ।” तदनंतर सात्यहव्य ने इसे हतबल था (म. स. ११.१५, शां. २०१; मत्स्य. १७१. २६किया तथा शिबिराजा का पुत्र अमित्रतपन शुष्मिण शैव्य के २७)। कदम प्रजापति के कन्याओं में से, अनसूया इसकी द्वारा इसका वध करवाया (ऐ. ब्रा. ८.२३)। क्षत्रिय ने पत्नी थी (भा. ३. २४. २२)। . . ब्राह्मण के साथ द्रोह नहीं करना चाहिये, इस लिये यह इसे अनसूया से दत्त, दुर्वास तथा सोम नामक तीन पुत्र कथा बताई गई है। . हुए (ब्रह्मांड, ३.८.८२,६५, मार्क. १६; अग्नि २०.१२; अत्रायनि-अंगिराकुल का एक गोत्रकार। | भा. ४.१.१५,३३)। वायु पुराण में अग्नि को दत्त, दुर्वास अत्रि-एक सूक्तद्रष्टा । ऋग्वेद में अत्रि की एक कथा ये दो पुत्र तथा ब्रह्मवादिनी कन्या उत्पन्न हुइ ऐसा का बार बार उल्लेख आता है। इसे अत्यधिक ताप उल्लेख है (७०.७५-७६)। अत्रि को सोम तथा अर्यमा हो रहा था तब अश्विनों ने इसे शांत किया (ऋ. १. नामक दो पुत्र थे ऐसा उल्लेख महाभारत में दिया है ११२.७)। इसे कुछ कारणवश कारागृहवास करना पड़ा (शां. २०१)। पुष्कल महर्षि इसका पुत्र था ऐसा भी था । इसके कारागृहवास का कारण था, जनता का पक्ष उल्लख प्राप्य ह (म. आ.६०.६)। इनक नत्र स चन्द्रमा लेकर राजा से लड़ाई। यह लोकशासित राज्य के लिये उत्पन्न हुआ (भा. ९.१४.२-३)। प्रयत्न करता था (ऋ. ५.६६)। इसे पांचजन्य कहा है स्वायंभुव मन्वन्तर में इसने उत्तानपाद को दत्तक (ऋ. १.११७.३)। यह अग्निकुंड में गिरा या अनी में | लिया था (ब्रह्मांड. २.३६.८४-९०: ह. वं. १.२)। झुलसा । उस अग्नी के दाह से अश्विनों ने इसे मुक्त किया | के बाद से अधिनों ने इसे मक्त किया। इसका गौतम ऋषि के साथ ब्राहाणमहात्म्य पर संवाद (ऋ. १. ११८. ७; ११९. ६)। बहुधा कारागृह की हुआ था (म. व. १८३) । वायु का हैहय अर्जुन के साथ यातनाओं की कल्पना व्यक्त करने के लिये ऐसा वर्णन | जब युद्ध चल रहा था तब राहू ने चन्द्र तथा सूर्य का किया होगा (ऋ. ५.७.८.४, १०.३९. ९)। पांचवें | पराभव कर के सर्वत्र अंधकार कर दिया । उस समय मंडल में अत्रिगोत्र के काफी सूक्तकारों का उल्लेख है। देवताओं की प्रार्थना मान्य कर के अत्रि स्वयं चन्द्र बना ( यजत तथा रातहव्य देखिये ) अत्रि ने चतुराज याग शुरू तथा अंधकार का नाश किया (स. अनु. २६१८)। किया (तै. सं. ७. १.८)। इसे ग्रहण के संबंध में प्रथम यह एक सूक्तकार था (वायु. ५९.१०४, ब्रह्म. १.३२%, ज्ञान हुआ । इसी लिये ग्रहण लगने पर अत्रि सूर्य को वापस मत्स्य. १४५बृ. उ. २.१.१.)। अत्रि को पैतामहर्षि कहा १६
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy