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अजमीढ
प्राचीन चरित्रकोश
अजमीद से, पांचाल देश में पांचालवंशीय पुरुवंश का स्वतंत्र राज आरंभ हुआ । इस कारण इस वंश का नाम अजमीढवंश हो गया। पांचाल के दो भाग हुए। दक्षिण पांचाल तथा उत्तर पांचाल दक्षिण पांचाल में अजमीढपुत्र बृहदिषु तथा उत्तर पांचाल में अजमीढपुत्र नील राज करनें लगे |
बृहदिषु से भाडारपुत्र जनमेजय तक के बंध का उल्लेख, अनेक पुराणों में मिलता है। इस में प्रायः वीस पुरुष है।
जनमेजय के पश्चात्, उत्तर पांचाल का नीलवंशीय पृप्त पुत्र राजा द्रुपद, दक्षिण पांचाल का शासक बन गया द्रुपद की कन्या द्रौपदी, पांडवों की पत्नी थी तथा पुत्र धृष्टयुम्न, भारतीय युद्ध में पांडवों का सेनापति था।
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अजामिल - कान्यकुब्ज देश का एक ब्राह्मण । यह प्रथम सदाचारी था । परन्तु बाद में किसी वेश्या के मोह में फँसकर इसने वृद्ध मातापिता तथा विवाहिता पत्नी का भी त्याग कर दिया। राहगीरों को लूटना, छूत खेलना, धोखा देना तथा चोरी करना इ. साधनों से यह चरितार्थ चलाता था। इस प्रकार इसने अनुपासी वर्ष बिताये । इस वेश्या से इसे दस पुत्र हुए। उनमें से सबसे छोटे नारायण पर इसकी अधिक प्रीति थी । मरणसमय आने पर यह उसी को पुकारता रहा। केवल नामस्मरण के माहात्म्य से यमदूतों के हाथों से विष्णुदूतों ने इसे मुख द्रोण तथा द्रुपद के युद्ध के पश्चात् उत्तरपांचाल का किया। राव विष्णुदूत तथा यमदूतों का वार्तालाप इंसने अधिपति द्रोण हो गया । सुना । यमदूतों द्वारा कथित, वेदप्रतिपादित गुणाश्रित धर्म तथा विष्णुदूतो द्वारा प्रतिपादित शुद्ध भागवतधर्म भारतीय युद्ध के पश्चात्, पांचाल राज का नाम कही सुन कर इसे कृतकर्म का पश्चात्ताप हुआ तथा हरि के प्रति भक्ति इसके मन में उत्पन्न हुई । अन्त में विरक्त हो कर, मूलतः क्षत्रिय होते हुए भी आगे चल कर इस वंश के यह हरिद्वार को गया तथा गंगा में देहत्याग कर के मुक्त लोग ब्राह्मण हुए (वायु, ९१. ११६) हो गया ( भा. ६. १-२ ) ।
नही मिलता ।
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अजमीढ, अंगिरा गोत्र में प्रवर और मंत्रकार है (ऋ. ४. ४३ - ४४ ) ।
भारतीय युद्ध के लिये, हुपद ही पांडव पक्ष का प्रधान तथा कुशल नियोजक माना जाता है ।
दक्षिण पांचाल की राजधानी कांपिल्य थी तथा उत्तर पांचाल की राजधानी अहिच्छन। नीलवंशीय पत्पुत्र द्रुपद के समय दोनो पांचाल राज एकत्रित हुए ।
अजि
२. ( शिशु. भविष्य . ) ब्रह्मांडमतानुसार विधिसार राजा का पुत्र । विष्णुमतानुसार बिंदुसार का मत्स्यमतानुसार भूमिमित्र का तथा वायुमतानुसार क्षेमवर्मन् का पुत्र ।
अजमीह-- अजमीढ का नामान्तर ।
अजय - ( शिशु. भविष्य.) भागवतमतानुसार दर्भक का पुत्र ।
अजस्य - अंगिराकुल का गोत्रकार । अयस्य पाठ भी प्रचलित है ।
अजात - (सो. विदूरथ. ) मत्स्यमतानुसार हृदीक का पुत्र ।
अजातशत्रु - युधिष्ठिर का नामांतर ( भा. १. ८. ५६ म. भी. ८१.१७ ) ।
अजातशत्रु काश्य अथवा अजातरिपु-काशी का राजा । गार्ग्य बालाकी नामक अभिमानी ब्राह्मण को इसने वादविवाद में हराया (२.१.११. उ. ४. १ ) ।
अजामुखी-लंका के अशोकवन में, सीता के संरक्षण के लिये नियुक्त राक्षसियों में से एक ( वा. रा. सुं. २४. ४४ ) ।
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अजमीळ सौहोत्रसूक्तद्रष्टा ऋग्वेद में इसके दो सूक्त है ( ऋ. ४.४३ - ४४ ) । आजमीळासः ऐसा मंत्र में निर्देश है (ऋ. ४. ४४. ६ ) । पौराणिक उच्चार अजमी है।
अजित् - स्वायंभुव मन्वन्तर के याम देवताओं में से
एक ।
२. चाक्षुष मन्यन्तर के वैराग्य तथा संभूति से उत्पन्न विष्णु का अवतार (मनु देखिये) ।
३. भौत्य मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक । अजित - पृथुक देखों में से एक।
अजिन - ऊरु को षड़ाग्नेयी से प्राप्त पुत्र ।
अजिर सर्प सत्र में यह सुब्रह्मण्य नामक विज का कार्य करता था (पं. बा. २५.१५ ) ।
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२. स्वायंभुव मन्वन्तर के जिदाजित् देवों में से एक । अजिह्न - पारावत देवों में से एक ।
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