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नकवत्
प्राचीन चरित्रकोश
नकुल
'न
नकवत्-(सो. क्रोष्टु.) वायुमत में हृदीक का पुत्र । समय, कुन्ती ने द्रौपदी से नकुल एवं सहदेव की विशेष
नकुल-(सो. कुरु.) हस्तिनापुर के पांडु राजा के देखभाल करने को कहा था। पुत्रों में से एक, एवं पाँच पांडवों में से चौथा पांडव ।। पांडवों के उपनयन के बाद, शतशृंगनिवासी ऋषि अश्विनी कुमारों के द्वारा पांडुपत्नी माद्री के गर्भ से नकल | उन्हें हस्तिनापूर ले आये, एवं उन्हें भीष्माचार्य के हाथों एवं सहदेव ये जुडवें पुत्र उत्पन्न हएँ। उनमें से नकुल में सौंप दिया गया (म. आ. ११७.२९) । अन्य पांडवों के . ज्येष्ठ था।
साथ, नकुल को भी द्रोणाचार्य ने नानाप्रकार के दिव्य एवं
मानव अस्त्रों की शिक्षा प्रदान की (म. आ. १२२.२९)। नकुल एवं सहदेव, ये दोनों अनूपम रूपशाली एवं
विचित्र प्रकार से युद्ध करने में, नकुल विशेष प्रवीण हो परम मनोहर थे (म. आ. १.१४४)। नकुल स्वयं अश्वविद्यानिपुण भी था । कुरुकुल में नकुल जैसा रूपशाली
गया । इस कारण, इसे 'अतिरथी' उपाधि प्राप्त हुई
(म. आ. १३८.३०), एवं द्रुपद के साथ किये गये युद्ध और कोई नहीं था, इस कारण इसे 'नकुल' नाम
में, इसे सहदेव के साथ पांडवपक्ष का 'चक्ररक्षक' बना प्राप्त हुआ था (म. वि. ५.१६७%)।
दिया गया (म. आ. १३७.२७) । नकुल के शंख. का युधिष्ठिर, अर्जुन, एवं भीमसेन इन पांडवों के हर | नाम 'सुघोष ' था (म. भी. २३.१६)। विचार एवं कृति में सहाय करनेवाले, मितभाषी एवं अन्य पांडवों के साथ, धौम्य ऋषि ने नकुल का भी विवाह । आज्ञापालक बंधुओं के रूप में, नकुल एवं सहदेव का. द्रौपदी से लगा दिया (म. आ.१९०.१०-१२) । द्रौपदी चरित्रचित्रण 'महाभारत' में किया गया है । ये दोनों |
| से नकुल को शतानीक नामक पुत्र हुआ (म. आ. २२०.. बंधु पराक्रमी हैं। किंतु उस पराक्रम को स्वतंत्र अस्तित्त्व
७९)। द्रौपदी के सिवा, शिशुपाल की कन्या एवं धृष्टकेतु न हो कर, वह अन्य पांडवों के पराक्रम में विलीन सा
| की बहन रेणुमती अथवा करेणुमती नकुल को विवाह में, हुआ है। ये दोनों बंधु परम मातृभक्त हैं। किंतु उस दी गयी थी (म. आ. ९०.८६)। उससे इसे निरमित्रमातृभक्ति का सारा झुकाव इनकी सापत्न माता कुंती की
नामक पुत्र हुआ था (भा. ९.२२)। ओर है, एवं इनके बदले कुंती के ही चरित्र को, वह
युधिष्ठिर के राजसूययज्ञ के समय, नकुल दिग्विजय अधिक उठाव देता है। अपनी पत्नी द्रौपदी पर इन दोनों
करने, पश्चिम दिशा में गया था। अपने 'पश्चिम दिग्विबंधुओं का काफी प्रेम है। किंतु द्रौपदी की इनके प्रति
जय' में, इसने वहाँ के राजाओं को जीत कर अगणित भावना मातृवत् वात्सल्य की थी । इस कारण, अन्य
करभार लाया । इसने जीत कर लाये हुए खजाने का बोझ पांडवों की तुलना में ये दोनों बंधु फीके से प्रतीत होते हैं।
दस हजार ऊँट, बड़ी कठिनाई से तो कर ला सके थे (म. नकुल का जन्म शतशृंग नामक हिमालय के एक स. २९.१७-१८)। . शिखर पर हुआ (म. आ. ११५) । शतशृंगनिवासी अपने पश्चिम दिग्विजय के लिये, खांडवप्रस्थ से बाहर ऋषियों ने इसका नामकरणविधि किया (म. आ. ११५. निकलने पर: नकुल सर्वप्रथम कार्तिकेय को प्रिय रोहीतक १९)। कृष्णपिता वसुदेव ने काश्यप ऋषि द्वारा, अन्य पर्वत पर गया। वहाँ इसने मत्तमयूरकों से युद्ध किया। पांडवों के साथ नकुल का भी उपनयन करवाया। मत्तमयूरकों को जीत कर, इसने मरुभूमि, बहुधान्यक, शुकाचार्य द्वारा इसने अस्त्रविद्या एवं ढालतरवार चलाने | शैरीषक तथा महेत्थ आदि देशों को जीत लिया। आक्रोश की कला में निपुणता प्राप्त की (म. आ. १२३.३१)। नामक राजर्षि का पराजय किया। बाद में दशार्ण, शिबि,
पांडु की मृत्यु के पश्चात्, नकुल की माता माद्री ने त्रिगर्त, अंबष्ठ, मालव, कर्पट, मध्यमकेय, वाटधान तथा इसे एवं सहदेव को कुन्ती के हाथों सौंप दिया। वह | द्विज देशों को जीत कर यह वापस आया । स्वयं पति के साथ चिता पर आरूढ हो गयी (म. आ. दिग्विजय के दूसरे भाग में, इसने पुष्करवन के लोग, १२४)। अन्य पांडवों की अपेक्षा, कुन्ती की नकुल | उत्सवसंकेतगण, सिंधु तीर के ग्रामणीय, सरस्वती तीर के सहदेव से विशेष प्रीति थी। पांडवों के वनवासगमन के | मत्स्याहारी शूद्र, एवं आभीर, पंचनद, अमर पर्वत,
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