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________________ नकुल प्राचीन चरित्रकोश नकुल उत्तर ज्योतिष, दिव्यकटपूर, द्वारपाल, राम, हारहूण, -५२)। इनमें से दुर्योधन के साथ हुए युद्ध में, इसने सुराष्ट्र, मद्र आदि देशों के राजाओं को अपनी सत्ता | दुर्योधन पर.सैंकडों बाण छोड़ कर, उसे बहुत ही जर्जर किया मान्य करने के लिये, इसने विवश किया एवं उनसे करभार था । कर्ण के चित्रसेन, सत्यसेन, एवं सुषेण आदि तीन लिया। पुत्रों का नकुल ने वध किया (म. श. ९.१७-४९)। _अपने इस 'दिग्विजय' में, इसने पांडवों के कर्ण के साथ हुए युद्ध में, नकुल बुरी तरह से हारा पितृतुल्य मित्र भगवान् श्रीकृष्ण एवं अपने मातुल मद्रराज | गया था । उस युद्ध में, कर्ण नकुल को मारनेवाला ही शल्य को भी नहीं छोड़ा। था। किंतु अपनी माता कुंती को दिये वचन के अनुसार, ___ बाद में समुद्र के किनारे रहनेवाले पलक, वर्षक, किरात, कर्ण ने इसे जीवितदान दिया, एवं रण से पलायन करते यवन तथा शक लोगों से इसने करभार लिया, एवं हजारों हुए नकुल को जीवित छोड़ दिया (म. क. १७.९५)। उँटों पर वह लाद कर यह इन्द्रप्रस्थ वापस आया (म. युधिष्ठिर हस्तिनापुर का राजा होने के पश्चात्, उसने स. २९; भा. १०.७२)। . नकुल को सेनाध्यक्ष पद पर नियुक्त किया (म. शां. युधिष्ठिर एवं दुर्योधन में हुए द्यूतसमारोह में, युधिष्ठिर | ४१.११)। इसे धृतराष्ट्रपुत्र दुर्मर्षण का सुंदर महल रहने ने इसे जूए के दाँव पर रखा, एवं वह इसे हार बैठा | के लिये दिया (म. शां. ४४.१०-११)। युधिष्ठिर के (म. स. ५८.११)। फिर अन्य पांडवों के साथ, अपने | अश्वमेधयज्ञ के समय,नकुल एवं भीम पर हस्तिनापुर की शरीर पर धूल लपेट कर, यह भी वनवास के लिये चला | रक्षा का काम सौंपा गया था (म. आश्व. ७१.२५)। गया। वनवास में इसने क्षेमकर, महामुख एवं सुरथ | उस यज्ञ के पहले, नकुल 'दक्षिणदिग्विजय' के लिये नामक राक्षसों का वध किया (म. व. २७१.१६- गया था। उस दिग्विजय में, इसने साभ्रमती नदी के २२)। किंतु द्वैतवन के 'यक्षप्रश्न' के प्रसंग में, यह अर्जुन, किनारे देवी 'पांडुरा' नामक, तीर्थ की स्थापना की भीम आदि के साथ बूरी तरह से हारा गया एवं | (पद्म. उ. १६१)। सरोवर पर गिर पड़ा। पश्चात् युधिष्ठिर ने अपने सारे | महाप्रस्थान के समय; पांडव पृथ्वीप्रदक्षिणा करने बंधुओं की मुक्तता की (म. व. ३१२.१३)। निकले। हिमालय पर्वत पार कर, उत्तर की ओर जाते अज्ञातवासकाल में यह विराट दरबार में, ग्रंथिक समय, उन्हे वालुकामय सागर दिखा । उस सागर में से, • अथवा दामग्रंथिक नाम धारण कर के रहा था । इसका गुप्त वे द्रुतगती से जा रहे थे। राह में सर्वप्रथम द्रौपदी नाम जयत्सेन था। यह पहले से ही अश्वविद्या में कुशल की, एवं तत्पश्चात् नकुल की मृत्यु हुई। था। उस विद्या का उपयोग इसे विराट के दरबार में हुआ। अश्वों के रोग सुधारना, उनकी बुरी आदतें नकुल के इस अकाली मृत्यु का कारण भीम ने निकालना, एवं उन्हें शिक्षा देना आदि कामों में यह युधिष्ठिर से पूछा । युधिष्ठिर ने कहा, 'अपने देहसौंदर्य प्रवीण था। इस कारण, विराट ने अपनी अश्वशाला का नकुल को बड़ा ही गरूर था । उस कारण, इसकी नकुल के हाथों सौंप दी थी (म. वि. १२.८)। मार्ग में ही मृत्यु हो गयी है (म. महा. २.१२.१६)। मृत्यु के समय, इसकी आयु १०५ वर्षों की थी (युधिष्ठिर . 'कृष्णदौत्य' के समय, नकुल ने श्रीकृष्ण से सम- | देखिये)। योचित वर्तन कर युद्ध टालने की प्रार्थना की थी। नकुल ने कहा, 'कौरवों से संधि कर, युद्ध रुका देने की संभावना स्वर्ग जाने पर, युधिष्ठिर ने नकुल को देखने की अभी तक बाकी है। इसलिये कौरवों से सुलूक का प्रयत्न | इच्छा प्रगट की (म. स्व. २.१०)। फिर नकुल एवं आखिर तक करना जरूरी है।' (म. उ. ७८)। सहदेव तेजस्वी रूप में अश्विनीकुमारों के स्थान पर भारतीय युद्ध में, नकुल ने कौरव पक्ष के निम्नलिखित विराजमान होते हुएँ युधिष्ठिर को दिख पड़े (म. स्व. ४. योद्धाओं से युद्ध कर, पराक्रम दिखाया था :-(१) दुःशासन (म. भी. ४३.२०-२२); (२) गांधारराज शकुनि नकुल के नाम पर 'वैद्यकसर्वस्व' नामक एक ग्रंथ (म. भी. १०१.३०-३१); (३) धृतराष्ट्रपुत्र विकर्ण | उपलब्ध है (ब्रह्मवै. २.१६)। (म. भी. १०६.११); (४) बाल्हीकराज शल्य (म. २. युधिष्ठिर के अश्वमेध यज्ञ को तुच्छ बतानेवाला द्रो. १४.३०-३२); (५) दुर्योधन (म. द्रो. १६३.५१ । एक नेवला (म. आश्व. ९२ )। युधिष्ठिर नकुल को .८)। मय, न | ९)। ३३९
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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