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ध्रुव आंगिरस
ध्रुव आंगिरस -- सूक्तद्रष्टा (ऋ. १०.१७३) । इसके मूलों में राष्ट्र तथा राजा के संबंध में प्रजातंत्रात्मक विचार दिखाई देते हैं।
प्राचीन चरित्रकोश
संधि, सुसंधि एवं शंत्रण, ये इक्ष्वाकु वंश के राजा, दाशरथिराम के पूर्वकाल में हुए थे, ऐसा रामायण का कहना है । किंतु पुराणों में उन्हें दाशरथि राम के वंशज बताया गया है ( पार्गि. ९३ ) । ध्रुवसोधि——ध्रुवसंधि देखिये ।
ध्वनि-सुधामन् देवों में से एक।
ध्रुवक- स्कंद का एक सेनिक ( म.श. ४४.६० ) । ध्रुवक्षिति--तेल देवों में से एक।
ध्वन्य-- एक राजा । यह लक्ष्मण का पुत्र था । प्रजापति पुत्र संवरण ऋषि ने दान देने के कारण राजा की ध्रुवरत्नान्द की अनुचरी एक मातृका (म.श. प्रशंसा की है ( . ५.२३.१० ) । स एवं मास्ताच त्रसदस्यु ४५.४.)। ऋषि ध्वन्य के आश्रय में थे । ध्रुवसंधि--( इ.) कोशल देश के पुण्य राजा का पुत्र । इसे 'पौष्य' भी कहते थे। इसे लीलावती तथा मनोरमा नामक दो स्त्रियाँ थी। एक बार यह ससैन्य मृगया के हेतु वन में गया। वहाँ इसकी एक क्रूर सिंह से मुठभेड़ हुई। उस में यह मारा गया। इसे लीलावती से शत्रुजित, | तथा मनोरमा से सुदर्शन नामक पुत्र हुए थे (वे. भा. ३. १४) भविष्य में इसके नाम का 'ध्रुवसेधि' पाठ । प्राप्त है।
• ध्रुवाश्व - - ( स. इ.) भानुमान राजा का नामांतर | २. (सू. इ. भविष्य.) मत्स्यमत में सहदेव का पुत्र इसका बृहद नामांतर भी प्राप्त है।
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ध्वज प्रधान राजा का नाम (सांत्र ३. देखिये ) | ध्वजकेतु द्रुपद का पुत्र ( म. आ. २१८.१९ ) । 'ध्वजवती सूर्यदेव की आज्ञा से आकाश में ठहरने वाली हरिमेधा ऋषि की कन्या ( म. उ. १०८.१३ ) । ध्वजसेन द्रुपद का पुत्र (म. आ. परि. १०३. पंक्ति. १०९) । ध्वजग्रीव रावण के पक्ष का एक राक्षस (बा. रा. सुं. ६) ।
प्रा. च. ४३ ]
ध्वत्र
ध्वजवती -- हरिमेधा ऋषि की कन्या ( म. उ. १०८.
१२) ।
ध्वसन द्वैतवन - मत्स्य देश का एक राजा सरस्वती नदी के तट पर इसने अश्वमेध यज्ञ किया (श. जा. १३. ५.४.९ ) ।
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ध्वसन्ति वेदकालीन एक राजा इंद्र के । शत्रु पुरुपंति के साथ इसका उल्लेख प्राप्त है। यह दोनों कश्यप कुल के अवत्सार ऋषि के आश्रयदाता थे । अवत्सार ऋषि ने उल्लेख किया है कि इन दोनों राजाओं से उसे धन मिला था (ऋ. ९.५८.३ ) । अश्विनों द्वारा इसे सहायता दी गयी थी (ऋ. १.११२.२३) । वस्त्र तथा ध्वसंति एक ही होने की संभावना है। पुरुपंति के साथ भी ध्वस्र का उल्लेख प्राप्त है (ऋ. ९.५८.३, साम. २. ४०९)।
ध्वसे यह स्त्रीलिंगी द्विवचन भी प्राप्त है ( पं. बा. १३.७.१२), किंतु वे किसी स्त्रियों के नाम होंगे या नहीं, यह कहना मुष्किल है ( ध्वस्त्र देखिये) ।
ध्वत्र - ऋग्वेदकालीन एक राजा । ध्वस एवं पुरुषन्ति राजाओं से विपुल संपत्ति प्राप्त करने का उल्लेख, अवत्सार काश्यप ने किया है (ऋ. १.५८.३ - ४ ) । इसने तुरंत तथा पुरुमिह को दान दिया था (पं. बा. १२.७.१२ जे. प्रा. २.१३९ ) । सायण ने शाख्यायन ब्राह्मण से उद्धरण ले कर इसका उल्लेख किया है ( . ९.५८. २ ) । इसका उल्लेख द्विवचन की तरह भी कभी कभी किया जाता है। सायण के मत में वह आप स्त्रीलिंग है। वल एवं ध्वसंति एक ही व्यक्ति रहे होगें ।
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