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________________ प्राचीन चरित्रकोश ध्रुव ही, इसे शृंगारित हाथी पर बैठा कर नगर में लाया गया। पिता ने इसके मस्तक का अवमाण किया । ष दोनों माताओं से मिला | सुरुचि ने इसे 'चिरंजीव हो ' ऐसा आशीर्वाद दिया । माता, पिता तथा बंधुओं के साथ ध्रुव सुख से कालक्रमणा करने लगा। पश्चात् राजा ने इसे राज्याभिषेक किया तथा स्वयं का में चला गया । , " एक बार ध्रुव का सौतेला भाई उत्तम, पर्वत पर मृगया के हेतु से गया । एक बलाढ्य यक्ष ने उसका वध किया । यह सुन कर ध्रुव ने अत्यंत क्रोधित हो कर यक्षों के पारिपत्य के लिये विजयशाली रथ में बैठ कर, यक्षनगरी अलका पर आक्रमण किया । वहाँ घमासान युद्ध हुआ । यक्ष ने मायाजाल फैलाकर, भुव को निर्वल बना दिया। ध्रुव फिर ऋषियों ने ध्रुव को आशीर्वाद दिया, 'तुम्हारे शत्रु का निःपात होगा । बादमें 'नारायणास्त्र के योग से, भुव यक्षो का मायापटल दूर कर के, यक्षों को पराजित किया । इस प्रकार ध्रुव गुहयक नामक यक्षों का नाश कर रहा था । तब स्वायंभुव मनु को यक्षों पर दया आई। अपने नाती ध्रुव को उसने युद्ध से तथा गुह्य के हनन से परावृत्त किया। इतना ही नहीं, यक्षवध के कारण क्रोधित हुए कुबेर को प्रसन्न करने के लिये, मनु ने इसे कहा। फिर ध्रुव ने युद्ध बंद किया, एवं पितामह के कथनानुसार कुबेर का स्नेहभाव संपादित किया । कुबेर ध्रुव पर प्रसन्न हुआ एवं उसने इसे वर माँगने के लिये कहा। तब ध्रुव ने वर माँगा, 'मैं अहरि का असेद स्मरण करता रहूँ'। छत्तिस हजार वर्षों तक राज्य करने के बाद, अपने यत्सर नामक पुत्र को गद्दी पर बैठा कर अब बदरिकाश्रम में गया। इसे स्वर्ग में ले जाने के लिये एक विमान आया । उसमें बैठने के लिये यह जैसे ही तैयार हुआ, वैसे ही मृत्यु ने आ कर इससे कहा, 'स्वर्ग में जाने से पहले तुम्हें देहत्याग करना पड़ेगा। परंतु यह मान्य न कर, मृत्यु के सिर पर पाँव रख कर, ध्रुव विमान में बैठ गया। स्वर्ग जाते समय इसे अपने सुनीति माता का स्मरण हुआ, तथा उसे भी अपने साथ स्वर्ग ले जाने की इच्छा हुई। इतने में इसने देखा कि, सुनीति इसके पहले ही स्वर्ग जा पहुंची है । , अन्त में इसे सप्तर्षियों के समीप अचल ध्रुवपद प्राप्त हुआ। वह तारा 'ध्रुव' नाम से प्रसिद्ध है (भा. ४.८-१२ विष्णु. १.११-१२ मत्स्य ४.२५ २८ १.६२ स्कन्द. ४.१.१९-२१; ह. वं. १.२.९ - १३ ) । ध्रुव अपने पूर्वजन्म में ध्रुव एक ब्राह्मणपुत्र था। इसने मातापिता की योग्य शुश्रूषा तथा धर्मपालन किया। पश्चात् एक राजपुत्र से इसकी मित्रता हुई। उसका वैभव देख कर इसे भी राजपुत्र बनने की इच्छा हुई । अपने पूर्वसंचित पुण्य के कारण, अगले जन्म में, यह उत्तानराद राजा का पुत्र बना । ( विष्णु. १.१२.८४ - ९० ) । ध्रुव ने पक्षवर्धिनी एकादशी का व्रत किया था ( पद्म. उ. ३६ ) । अयपरिवार भुय के कुल चार पत्नीयों का निर्देश प्राचीन ग्रंथों में प्राप्त है। उनके नाम इसप्रकार है: ( १ ) भ्रमि - यह शिशुमार प्रजापति की कन्या थी । इससे भुव को कल्प एवं यत्सर नामक दो पुत्र हुएँ। उनमें ध्रुव वत्सर ध्रुव के पश्चात् राजगद्दी पर बैठा । से ( २ ) इला - यह वायु ऋषि की कन्या थी । इससे ध्रुव को उत्कल (विरक्त ) नामक एक पुत्र हुआ । ( ३ ) शंभु -- इससे ध्रुव को लिष्ट एवं भव्य नामक दो पुत्र हुएँ (विष्णु. १.१२.१६ . . १.२ - १४) । को ( ४ ) धन्या -- यह मनु की कन्या थी । इससे ध्रुव. शिष्टि नामक एक पुत्र हुआ ( मत्स्य. ४.३८ ) । २. (सो. पुरूरवस् . ) नहुष का पुत्र, एवं ययाति का भाई ( म. आ. ७०.२८ ) । इसके नाम के लिये 'उद्धव' पाठभेद उपलब्ध है । ३. पांडवपक्षीय एक राजा । भारतीय युद्ध में पांडवों का ही विजय होगा, यह कर्ण को बताते समय, कृपाचार्य ने जिन पांडवपक्षीय राजाओं के नाम बताये, उनमें से यह एक था। ४. एक राजा । यमसभा में बैठ कर, यह सूर्यपुत्र यम की उपासना करता था ( म. स. ८.१० ) । इसके नाम के लिये 'भव' पाठभेद भी उपलब्ध है । ५. कौरवपक्ष का एक योद्धा भीम ने इसका वध किया ( म. द्रो. १३०.२३) । ६. मुख देवों में से एक । ७. विकुंठ देवों में से एक । ८. लेख देवों में से एक । ९. धर्म एवं वसु का पुत्र । १०. धर्म को धूम्रा के गर्भ से उत्पन्न द्वितीय बसु (म. आ. ६०.१८ ) । ११. मधुबन के शाकुनि ऋषि के नौ पुत्रों में से ज्येष्ठ । ३३६
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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