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ध्रुव
प्राचीन चरित्रकोश
ध्रुव
बड़ा ही कठिन हैं। उसमें बड़ोबड़ों ने हार खाई है। अतः | पीना भी छोड़ दिया, एवं केवल वायु पी कर, यह रहने यह मार्ग त्याग कर, तुम घर लौट जाओ।
लगा। नारद का भाषण सुन कर ध्रुव ने कहा, 'मैं ने न्याय- तपस्या के पाँचवे महीने में, प्राणवायु भी इसके वश निष्ठर क्षत्रिय वंश में जन्म लिया है। मेरे स्वभाव में | में आ गया, एवं वायु पीना भी ध्रुव ने बंद किया। एक लाचारी नहीं है। सुरूचि के अपशब्दों से मेरा हृदय भग्न पाँव पर खड़ा हो कर, अहोरात्र यह श्रीविष्णु के ध्यान हो गया है। अतः आपके उपदेश का परिणाम मेरे उपर
के पदेशका परिणाम मेरे उपर में मगन होने लगा। होना असंभव है। त्रिभुवन में श्रेष्ठ स्थान प्राप्त करने की छः महीनों तक ऐसी कड़ी तपस्या करने के पश्चात् , आकांक्षा मेरे मन में जाग उठी है। वह स्थान मुझे कैसे | तपस्या की सिद्धि ध्रुव को प्राप्त हुई । इसकी अंगूठे के भार प्राप्त होंगा, यह आप मुझे बताइये। आप त्रैलोक्य में से पृथ्वी दबने लगी, एवं इन्द्रादिकों के श्वासों का अवरोध घूमते हैं । उस कारण मेरी समस्या का सुझाव, केवल होने लगा। फिर सारे देव श्रीविष्णु की शरण में गये । विष्णु आप ही कर सकते है ।'
ने ध्रुव को तपश्चर्या से परावृत्त करने का आश्वासन देवजनों ध्रुव का यह भाषण सुन कर, नारद के अन्तःकरण में को दिया। उस आश्वासन से सारे देव संतुष्ट हुएँ, एवं ध्रुव के प्रति अनुकंपा उत्पन्न हुअी। उसने कहा, 'अपने माता | अपने अपने स्थान पर वापस लौटे। की आज्ञानुसार तुम श्रीहरि की कृपा संपादन करो। उसके पश्चात् गरुड़ पर आरूढ हो कर, श्रीविष्णु मधुवन में लिये यमुना के किनारे मधुवन में जा कर, तुम इन्द्रिय- ध्रुव के पास आये, एवं उन्होंने सगुण स्वरूप में इसे दर्शन दमन करो'। इतना कह कर नारद ने ध्रुव से 'ॐ नमो | दिया। जिसके ध्यान में छः महीनों तक ध्रुव मग्न था, भगवते वासुदेवाय' नामक द्वादशाक्षरी गुप्तमंत्र प्रदान | उसे साक्षात् देख कर वह अवाक् हो गया (भा. ४.८किया, एवं आशीर्वाद दे कर वह चला गया। स्कन्द तथा ९)। श्रीविष्णु का गुणवर्णन करने की बहुत सारी कोशिश विष्णु पुराण में लिखा गया है कि, यह मंत्रोपदेश ध्रुव ध्रुव ने की। किंतु वह करने में इसे असमर्थता प्रतीत को सप्तर्षियों द्वारा प्राप्त हुआ। बाद में उत्तानपाद राजा | हुई। को अपने कृतकर्म का पश्चात्ताप हुआ, एवं वह ध्रुव को फिर श्रीविष्णु ने ध्रुव के कपोल को वेदस्वरूपी शंख से 'वापस लाने के लिया घर से निकला। किंतु उसे नारद ने | स्पर्श किया। पश्चात् उस शंख के कारण प्राप्त हुएँ वेदमय कहा, 'तुम्हारा पुत्र शीघ्र ही महत्कार्य कर के वापस वाणी से, ध्रुव ने विष्णु का स्तवन किया। इससे आनेवाला है। इसलिये उसे वापस बुलवाने की कोशिश, प्रसन्न हो कर, विष्णु ने इसे इच्छित वर माँगने इस समय तुम मत करो।'
के लिये कहा । ध्रुव ने नक्षत्रमंडल में अचल - नारद के कथनानुसार, ध्रुव ने मथुरा के पास यमुना | स्थान प्राप्त करने का वर श्रीविष्णु से माँग लिया।
के तट पर मधुवन में तपस्या प्रारंभ की, एवं 'ॐ नमो | विष्णु ने वह वर इसे दिया, एवं कहा, 'उत्तानपाद राजा भगवते वासुदेवाय' यह द्वादशाक्षरी मंत्र का जाप प्रारंभ | तुम्हें राजगद्दी पर बैठा कर वन में जावेगा । तुम छत्तिस किया । तपस्या के समय ध्रुव की उम्र केवळ पाँच साल | हजार वर्षों तक राज्य करने के बाद, नक्षत्रमंडल में अचलकी थी।
स्थान प्राप्त करोगे। तुम्हारा सौतेला भाई उत्तम । मृगया के फलाहार, उदकपान, एवं वायुभक्षण क्रमशः कर के, एक लिये वन में जावेगा, तब वहीं उसका नाश होगा। उत्तम पैर पर खड़ा हो कर, ध्रुव श्रीविष्णु की आराधना करने की माता सुरुचि उसके मृत्यु के दुख के कारण, अरण्य में लगा । तपस्या के पहले दिन ध्रुव ने 'अनशन' किया। दावानल में प्रविष्ट होगी। तुम अनेक यज्ञ कर के सब को दूसरे दिन से यह विधिपूर्वक आराधना करने लगा। वंद्य तथा संसारमुक्त हो जाओगे। बाद में ध्रुव ने
तपस्या के पहले महीने में, तीन दिन में एक बार यह | श्रीविष्णु की पूजा की, तथा पश्चात् यह स्वनगर चला कैथ एवं बेर के फल खा कर गुजारा करता था। आया। दूसरे महीने में, हर छठे दिन सूखे पत्ते एवं कुछ तिनखे ध्रुव के आगमन की वार्ता उत्तानपाद को ज्ञात होते ही खाने का क्रम इसने शुरू किया। तीसरे महीने में केवल | वह अत्यंत आनंदित हुआ। ध्रुव महत्कार्य कर के वापस पानी पर रहना इसने प्रारंभ किया। वह पानी भी यह | आनेवाला है, यह नारद के भविष्यवाणी से उत्तानपाद हर नवे दिन पीता था। चौथे महीने में, इसने पानी | पहले से जानता ही था। ध्रुव ने राजधानी में प्रवेश करते
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