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________________ धौम्य हवन किया । जब पांडव अज्ञातवास के लिये, चले गये, तब उनका अग्रिहोत्र का अनि साथ लेकर चौग्य पांचाल देश चला गया ( म. वि. ४. ५४–५७ ) । भारतीय युद्ध में, भीष्म निर्याण के समय, धौम्य ऋषि युधिष्ठिर के साथ उसे मिलने गया था। युद्ध समाप्त होने पर, श्रीकृष्ण ने पांडवों से विदा ली। उस समय भी धौम्य उपस्थित था (भा. १. ९ ) । भारतीय युद्ध में मारे गये पांडवपक्ष के संबंधी जनों का दाहकर्म धौम्य ने ही किया था (म. स्त्री. २६.२७ ) । । प्राचीन चरित्रकोश युधिष्ठिर राजगद्दी पर बैठने के पश्चात्, उसने धौम्य की धार्मिक कार्यों के लिये नियुक्ति की (म. शां. ४१. १४ ) । धृतराष्ट्र, गांधारी एवं कुंती वन में जाने के बाद, एक बार युधिष्ठिर युयुत्सु के साथ उन्हे मिलने गया । उस वक्त हस्तिनापुर की व्यवस्था युधिष्ठिर ने धौम्य पर सौंपी थी (म. आश्र. ३०. १५) । धौम्य ने धर्म का रहस्य युधिष्ठिर को बताया था ( म. अनु. १९९ ) । धर्मरहस्य वर्णन करते समय, धौम्य कहता है, 'टूडे हुएँ भर्तन, टूटी खाटें, मुर्गियाँ, कुत्ते आदि को घर में रखना, एवं घर में वृक्ष लगाना अप्रशस्त है। फूटे बर्तनों में कलि वास करता है, टूटी खाट में दुर्दशा रहती है, तथा वृक्षों के आसपास केतु रहते हैं। इसलिये उन सब से बचना चाहिये' धौम्य ने सौम्यस्मृति नामक एक ग्रंथ की रचना भी की थी ( C. C. )। 6 भय ध्रुक - ( शुंग. भविष्य. ) वायु मत में वसुमित्र राजा का पुत्र इसे अंतक, आर्द्रक, भद्र, एवं भद्रक नामांतर भी प्राप्त थे । एक बार उत्तानपाद राजा की गोद में, सुरुचि का पुत्र उत्तम खेल रहा था। यह देख, ध्रुव को भी पिता की गोद में खेलने की इच्छा हुई। अतः वह अपने पिता के गोड़ पर चढ़ने लगा। किंतु राजा ने ध्रुव के तरफ देखा तक नही । ध्रुव की सौतेली माता सुरुचि ने ध्रुव का हाथ पकड कर कहा 'ईश्वर की आराधना कर के तुम मेरे उदर से पुनः जन्म लो । तभी तुम राजा की गोद में खेल सकोगे ' । " २. एक ऋषि व्यापाद ऋषि के दो पुत्रों में से यह एक था । इसके ज्येष्ठ भाई का नाम उपमन्यु था (म. अ.नु. ४५. ९६. कुं.) । हस्तिनापुर के मार्ग में श्रीकृष्ण से इसकी भेट हुई थी ( म. उ. ३८८ ) । सत्यवान का पिता शुमत्सेन अपने प्रिय पुत्र तथा स्नुषा को देते ते, इस ऋषि के आश्रम में भाया था। फिर इसने उसे भविष्य बताया, 'तुम्हारा पुत्र शीघ्रं ही स्नुषा के साथ जीवित वापस आयेगा' ( म. व. २८२. १९) । ध्रुव - ( स्वा. उत्तान ) उत्तानपाद राजा एवं सुनीति का पुत्र एवं एक प्रातःस्मरणीय राजा (म. अनु. १५० ) | अपने दृढनिश्चय एवं लगन की कारण, पाँच वर्ष की छोटी उम्र में, इसने ऋपियों को भी अप्राप्य ' श्रीविष्णुदर्शन एवं नक्षत्रमंडल में ध्रुवपद प्राप्त किया। नक्षत्रमंडल में सप्ताओं के पास स्थित 'ध्रुव तारा' यही है ( भा. ४. १२.४२-४३)। -- ४. एक मध्यमाध्वर्यु | धौम्र-एक कपि शरशय्या पर पड़े हुए भीष्म से । यह मिलने गया था ( म. शां. ४७.६६* पंक्ति ९ ) । ध्यानकाष्ठ-भगुकुलोत्पन्न एक ऋषि ( धर्मगुप्त एक ऋषि ( धर्मगुप्त देखिये) । ध्युषिताश्व - (सू. इ. ) वायु मत में शंखण राजा का पुत्र । भागवत में इसे विधृति, एवं विष्णु में इसे व्युत्थिताश्व कहा गया है । 1 उत्तानपाद राजा की सुरुचि एवं सुनीति नामक दो रानियाँ थी । उनमें से सुरुचि उसकी प्रिय रानी थी, एवं सुनीति ( सुनृता) से वह नफरत करता था । राजा के अप्रिय पत्नी का पुत्र होने के कारण, बालक ध्रुव को भी प्रतिदिन अपमान एवं मानहानि सहन करनी पडती थी। 3 सौतेली माता का कठोर भाषण सुन कर ध्रुव अत्यंत खिन्न हुआ। उस समय राजा भी चूपचाप बैठ गया। फिर ध्रुव रोते रोते अपनी माता के पास गया। सुनीति ने इसे गोद में उठा लिया । सौत का कठोर भाषण पुत्र के द्वारा सुन कर उसे अत्यंत दुख हुआ अपने कमनसीब को दोष देते हुई, वह फूट फूट कर रोने लगी । पश्चात् ईश्वराधना का निश्चय कर, ध्रुव ने अपने पिता के नगर का त्याग किया। यह बात नारद को ज्ञात हुई । ध्रुव का ईप्सित, जान लेने पर, उसने अपना वरदहस्त ध्रुव 'के सिर पर रखा । ध्रुव का स्वाभिमानी स्वभाव तथा क्षात्रतेज देख कर, नारद आश्चर्यचकित हो गया । उसने ध्रुव से कहा "तुम अभी छोटे हो इतनी छोटी यंत्र में तुम इतने स्वाभिमानी हो, यह बड़ी खुषी की बात है। किंतु मान-अपमान के झंझटों में पड़ कर मन में असंतुष्टता का अमिसिगाना ठीक नहीं है क्योंकि, असंतोष का कारण मोह है, तथा मोह से दुःख ही दुःख पैदा होते है । भाग्य से जो भी मिले, उस पर संतोष - मानना चाहिये । ईश्वर के आराधना का तुम्हारा निश्चय ३३४
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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