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धात
प्राचीन चरित्रकोश
धुनि
विधाता एवं यह मनु के साथ रहते थे (म. आदि. | धाटक--धृष्ट १. देखिये । ६०.५०)।
धिषणा-कृशाश्व ऋषि की पत्नी । मेरुकन्या आयति इसकी पत्नी थी। उससे इसे मृकण्ड २. एक देवी। इसने स्कंद के अभिषेक के समय नामक पुत्र हुआ था (भा. ४.१.४३-४४)। पदार्पण किया था (म. श. ४४.१२)। .. हस्तिनापुर जाते समय, मार्ग में श्रीकृष्ण से इसकी
धिष्ण्य-प्रतर्दन देवों में से एक । भेंट हुई थी (म. उ. ८१.३८८)।
२. अग्नि धिष्ण्य ऐश्वर देखिये। ३. भृगु का पुत्र ।
धीमत्-(सो. पुरूरवस् .) पुरूरवा को उर्वशी से 'धात्र--एक पौराणिक योद्धा । 'द्वादश-संग्राम' में ।
उत्पन्न पुत्रों में से द्वितीय पुत्र (म. आ. ७०.२२)। से धात्र नामक दशम-संग्राम में, इसने भाग लिया था। वार्त इसीका नामांतर था (मत्स्य. ४७.४४-४५)। ।
२. तामस मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक । धात्रेय--अत्रिकुल का एक गोत्रकार ।
३. अगस्य का पुत्र | पुलस्त्य ने इसे दत्तक लिया था। धायिका-द्रौपदी की दासी । जयद्रथ द्वारा द्रौपदी |
यह अगस्त्यगोत्रीय था। के अपहरण का समाचार इसने पांडवों को बताया था
धीर शातपर्णेय-शतपर्ण का वंशज, एक ऋषि । (म. व. २५३.१५)।
यह महाशाल का शिष्य था (श. ब्रा. १०.३.३.१)।
धीरधी--काशी का एक शिवभक्त ब्राह्मण । अनन्य धानंजय्य-अंशु का पैतृक नाम । २. एक आचार्य का पैतृक नाम (ला. श्री. १.१.२५;
शिवोपासना करने के कारण, शिवजी इसपर प्रसन्न हुएँ, २.१.२; ९.१०)।
एवं इसकी हरप्रकार सहायता करने लगे। धानाक--लुश देखिये।
शिवजी का इस पर प्रेम देख कर, शिवगणों को धान्यमालिनी--रावण की पत्नी। इसका पुत्र आश्चर्य हुआ। तब इसकी पूर्वजन्म की कहानी शिवजी अतिकाय (वा. रा. सु. २२)।
ने अपने गणों से कथन की । शिवजी बोले, 'यह ब्राह्मण २. एक अप्सरा । शाप के कारण, यह मगर बनी थी।
| पूर्वजन्म में एक हंस था। एक बार यह एक सरोवर कालनेमि राक्षस के वध के समय, हनुमान ने इसका उद्धार
के उपर से जा रहा था। यकायक यह थक गया, एवं
जमीन पर गिर पडा । पश्चात् इसका सफेद रंग बदल कर, धान्यायनि-अंगिराकुल का एक ऋषि ।
यह कृष्णवर्ण हो गया। इसका सफेद रंग बदलने का धान्व-असित नामक असुरों के ऋषि का पैतृक नाम
कारण, सरोवर में स्थित एक कमलिनी ने इसे बताया, एवं (श. बा. १३.४.३.११)। इसका 'धान्वन् ' नामांतर
गीता के दसवें अध्याय का पठन करते हुए शिवोपासना भी प्राप्त है (शां. श्री. १६.२.२०)।
करने को उसे कहा। इस पुण्यसंचय के कारण, उस हंस
को अगले जनम में ब्राह्मणजन्म प्राप्त हुआ है। धाम--एक ऋषिसमुदाय का नाम । उत्तर दिशा में
शिवजी ने आगे कहा, 'पूर्वकथा में निर्देश किया हुआ रह कर, श्री गंगा-महाद्वार का ये रक्षण करते है (म. उ.
हंस, अपने पूर्वजन्म में ब्राह्मण ही था। किंतु गलती से १०९.१४)।
गुरु को पादस्पर्श करने के पाप के कारण, उसे हंस की धामन्–अमिताभ देवों में से एक । २. तामस मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक ।
योनि प्राप्त हुई। ३. एक नक्षत्र (ऋ. ९.६६.२)।
पश्चात् शिवकृपा से यह जीवन्मुक्त हुआ , एवं स्वर्ग धारण-चन्द्रवत्सकुल में उत्पन्न एक कुलांगार नरेश।
चला गया (पद्म. उ. १८४)। अपने दुर्वर्तन के कारण, यह स्वजनोंसमेत नष्ट हो गया धीरोष्णी--एक पुरातन विश्वेदेव (म. अनु. १३८. (म. उ. ७२.१६)।
३२. कुं.)। २. एक कश्यपवंशीय नाग (म. उ. १०१.१६)। । धुनि--इन्द्र से शत्रुत्व रखनेवाला एक आदिवासी
धारिणी-(स्वा.) स्वधा को पितरों से उत्पन्न कन्या। प्रधान । यह एवं चुमुरि, इंद्र एवं दभीति के शत्रुपक्ष में थे यह ब्रह्मचारिणी तथा ब्रह्मनिष्ठ थी (भा. ४.१.६४)। (ऋ. २.१५.९; ६.१८.८, २०.१३, ७.१९.४; इन्द्र
धार्मिक-रामचन्द्र के सुज्ञ नामक मंत्रि का पुत्र। | देखिये)।
किया।