SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 344
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धर्मसारथि प्राचीन चरित्रकोश धात धर्मसारथि-(सो. आयु.) त्रिककुद् राजा का पुत्र । अपना मस्तक मोहिनी को अर्पण किया। यही धर्मागद इसका पुत्र शांतरथ । अगले जन्म में सुव्रत बना (पद्म. भृ. २२)। धर्मसावर्णि--एक मनु । धर्म तथा दक्षकन्या सुव्रता धर्मात्मन्-वायु तथा ब्रह्मांड के मत में व्यास की को यह चाक्षुष मन्वन्तर में उत्पन्न हुआ। ग्यारहवें सामशिष्य परंपरा का हिरण्यनाभ का शिष्य । मन्वन्तर का यह अधिपति था। वायुपुराण में लिखा है २. ऋग्वेदी ब्रह्मचारी। कि, यह दसवें मन्वन्तर का अधिपति था ( मनु देखिये)। धर्मारण्य--एक ब्राह्मण (म. शां. ३४९.५)। देवी भागवत में उस मन्वन्तर का नाम 'सूर्यसावर्णि' पद्मनाभ नामक नाग से इसने अध्यात्मविद्या प्राप्त की तथा दे कर, उसके अधिप का नाम वैवस्वतपुत्र 'नाभाग' दिया उस के कारण यह कृतार्थ हो गया। गया है (दे. भा. १०.१३)। धर्मसूत्र--(सो. मगध. भविष्य.) भागवतमत में धर्मिन्--(सू. इ. भविष्य.) वायु के मत में भरद्वाजसुव्रत का पुत्र (धर्म १३. देखिये)। पुत्र (धर्मन् देखिये)। सेत--एक विष्णअवतार । यह आर्यक तथा । धर्मयु--(सो. पूरु.) एक राजा। भागवत, मत्स्य वैधृता से धर्मसावर्णि मन्वन्तर में उत्पन्न हुआ था (भा. तथा वायुमत में यह रौद्राश्व का पुत्र था। उसे यह ८.१३.२६)। मिश्रकेशी नामक अप्सरा के गर्भ से उत्पन्न हुआ (म.आ. धर्मसेन-(सू . इ. ) मांधातापुत्र अंबरीष का ८९.१०; धनयु देखिये। नामांतर। धातकि-प्रियव्रतपुत्र दीतिहोत्र का पुत्र । वीतिहोत्र धर्मस्व-एक ब्राह्मण । एक बार गंगा की डोली ले ने इसे पुष्करद्वीप का आधा भाग दिया था (भा. ५. २०.३१)। कर, यह घर जा रहा था। रास्ते में एक बैल ने, रत्नाकर नामक व्यापारी के कापकल्प नामक नौकर की हत्या की। धातु--मरुतों के तीसरे गणों में से एक। . कापकल्प स्वयं अत्यंत पापी था। किंतु उसकी अचानक धातृ--वैवस्वत मन्वन्तर के बारह आदित्यों में से एक मृत्यु के कारण, धर्मस्व के हृदय में उसकी प्रति दया (भा. ६.६.३९; पन. सृ.६)। इसकी माता का नाम उत्पन्न हुई। इसने उसके शरीर पर तुलसीपत्र से गंगोदक | अदिति, एवं पिता का नाम कन्या था (म. आ..५९. छिड़क दिया। इससे कापकल्प का उद्धार हो गया। १५)। खाण्डववनदाह के समय, श्रीकृष्ण एवं अर्जुन के गंगोदक का यह प्रभाव देख, धर्मस्व ने स्वयं गंगा की बीच युद्ध का संभव उत्पन्न हुआ था। उस समय, यह आराधना की, एवं वर प्राप्त किया, 'गंगा का नाम लेते देवताओं की ओर से आया था (म. आ. २१८.३३)। लेते ही मुझे मृत्यु प्राप्त हो' (पद्म. क्रि. ७)। - इसके द्वारा स्कंद को पाँच पार्षद प्रदान किये गये थे। धर्माकर-एक धार्मिक गृहस्थ । एक राजपुत्र ने उनके नाम :--कुन्द, कुसुम, कुमुद, डम्बर, एवं आडम्बर . अपनी सुस्वरूप भार्या, सुरक्षितता के उद्देश्य से छः महिनों (म. श. ४४.३५)। । तक इसके पास रख दी। फिर भी इस सच्चरित्र पुरुष के। इसे कुहू, सीनीवाली, अनुमति, एवं राका नामक चार मन में उस स्त्री के बारे में कामवासना उत्पन्न नहीं हुई। पत्नियाँ थी। उनसे इसे, सायंकाल, दर्श, पूर्णमास, एवं छः महिने के बाद राजपुत्र वापस लौटा । कुत्सित लोगों ने | प्रातःकाल नामक चार पुत्र हुएँ (भा. ६.१८.३)। इसके राजपुत्र के हृदय में संशय उत्पन्न करने का प्रयत्न किया. | पुत्रों के ये नाम रूपकात्मक प्रतीत होते है। परंतु कुछ लाभ नहीं हुआ। बाद में लोकनिंदा से त्रस्त हो। आदित्य के नाते, यह हरसाल कार्तिक मास में कर, यह चिताप्रवेश करने लगा । उस अग्निपरिक्षा में से | प्रकाशित होता है, एवं इसके ११०० किरणें रहती हैं यह विनाकष्ट बाहर आया, एवं इसके निंदकों के मुख पर | (भवि. ब्राह्म. १.७८)। भागवतमत में, यह चैत्रमास कोढ हो गया। देवों ने इसे 'सजनाद्रोहक' पदवी दी थी । ('मधुमास') में प्रकाशित होता है (भा. १२.११.३३; (पद्म. सु. ५०)। विवस्वत् देखिये)। धर्मांगद-एक राजा । विदिशा नगरी के ऋतुध्वज- । २. ब्रह्माजी का पुत्र । भागवतमत में, यह भृगु ऋषि पुत्र रुक्मभूषण को संध्यावली नामक भायों से यह उत्पन्न | को ख्याति से उत्पन्न हुआ था। इसके दूसरे भाई का हुआ था। पिता की इच्छा पूर्ण करने के लिये, इसने | नाम विधाता, एवं बहन का नाम लक्ष्मी (श्री) था । ३२२
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy