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धनुग्रह
प्राचीन चरित्रकोश
धन्वन्तरि
'धनुर्धर ' ये पाठभेद उपलब्ध हैं। भीमसेन ने इसका | (म. आ. १६.३७)। इसे आदिदेव, अमरवर, वध किया (म. क. ८४.२-६)।
अमृतयोनि एवं अब्ज आदि नामांतर भी प्राप्त है। धनुर्धर-धनुग्रह का नामांतर (धनुग्रह देखिये)। | दुर्वासस् ने इंद्र को शाप दे कर, वैभवहीन बना दिया
तब गतवैभव पुनः प्राप्त करने के लिये, देव दैत्यों ने धनुर्वक्त्र-स्कंद का एक सैनिक (म. श. ४४.५७)।
क्षीरसमुद्र का मंथन किया। उस समुद्रमंथन से प्राप्त, धनुष-(सो. ऋक्ष.) एक राजा । मत्स्यमत में यह
.चौदह रत्नों में से धन्वन्तरि एक था। समुद्र में से प्रकट सत्यधृति का पुत्र था। इसके लिये सुधन्वन् पाठभेद
होते समय, इसके हाथ में अमृतकलश था। जब यह उपलब्ध है।
समुद्र से निकला तब तेज से दिशाएँ जगमगा उठी (ह. धनुषाक्ष-(धनुषाख्य) रैभ्यकुलोत्पन्न एक ऋषि ।
वं. २९.१३)। यह विष्णु का अवतार एवं 'आयुवेदबालधि ऋषि के पुत्र मेधाविन् ने इसका अपमान किया।
प्रवर्तक' देवता था (विष्णु. १.९.९६; भा. १.३.१७; अतः उसके नाश के लिये इसने शाप दिया, जिसका कुछ
८.८.३१-३५)। इसे आयुर्वेदशास्त्र का ज्ञान इंद्र के परिणाम नहीं हुआ। तब इसने पर्वत शिला गिरा कर
प्रसाद से एवं चिकित्साज्ञान भास्कर के प्रसाद से प्राप्त उसका विनाश कर दिया। पर्वत गिरने से ही मेधाविन्
हुआ था (भवि. १.७२; मस्त्य. २५१.४)। की मृत्यु होगी ऐसां उसको वर था (म. व. १३६; शां.
__ समुद्रमंथन से निकलने के पश्चात्, विष्णु भगवान् को ३२३.७)।
इसने देखा। उसे देख कर यह ठिठक गया । विष्णु ने धनेयु-(सो. पुरूरवस् .) विष्णुमत में रौद्राश्व का
इसे 'अब्ज' (पानी से जिसका जनम हुआ) कह कर पुत्र । इसे अन्यत्र धर्मेयु कहा है।
पुकारा । पश्चात् इसने विष्णु से. प्रार्थना की, 'यज्ञ में २. एक ऋषि । उपरिचर वसु के यज्ञ में यह सदस्य
मेरा भाग एवं स्थान नियत कर दिया जाय। विष्णु ने था (म. शां. ३२३.७)।
कहा, 'यज्ञ के भाग एवं स्थान तो बँट गये है। किंतु धनेश्वर-अवन्ती नगरी का एक पापी ब्राह्मण । यह
अगले जन्म में तुम्हारी यह इच्छा पूरी होगी। उस जन्म निषिद्ध पदार्थों का व्यापार करता था। एक बार व्यापार के
में तुम विशेष ख्याति प्राप्त करोंगे । 'अणिमादि' लिये यह माहिष्मती नगरी में गया। कार्तिक माह होने सिद्धियाँ तुम्हें गर्भ से ही प्राप्त होगी, एवं तुम सशरीर के कारण, अनेक पुण्यात्माओं से, तथा कीर्तन, पुराण, |
देवत्व प्राप्त करोंगे। तुम 'आयुर्वेद ' को आठ भागों में भजन, गायन आदि से उसका संबंध सहजवश आ गया।
विभक्त करोंगे। एवं उस कार्य के लिये, लोग तुम्हें मंत्र से त्रिपुरी पौर्णिमा का दीपोत्सव भी इसने देखा। उसी रात्रि | आहुति देने लगेंगे। को सर्पदंश के कारण, इसकी मृत्यु हो गयी। यम ने इसे | विष्णु के उस आशिर्वचनानुसार, धन्वन्तरि ने द्वापरएक कल्प तक नर्क में रखने के लिये कहा। किन्तु उस नर्क | युग में काशिराज धन्व (सौनहोत्र ) के पुत्र के रूप में के अग्निकुंड में भी यह बिनाकष्ट जीवित रहा । माहिष्मती | पुनर्जन्म लिया। उस जन्म में, इसने भरद्वाज ऋषिप्रणीत नगरी में इसने किये हुए पुण्य का यह फल है, ऐसा नारद
'आयुर्वेद ' आठ विभागों में विभक्त किया, एवं प्रजा ने यम को बताया। नारद की सूचनानुसार यम ने इसे को रोगमुक्त किया (वायु. ९२.९-२२, धन्वन्तरि २. यक्ष योनि में भेज दिया। वहाँ यह कुबेर का सेवक बना देखिये)। (पम. उ. ११३-११४; स्कंद. २.४.२९)।
उस महान कार्य के लिये, नित्यकर्मान्तर्गत पंचमहाधन्या-उत्तानपाद ध्रुव की पत्नी ।
यज्ञ 'वैश्वदेव' में बलिहरण के समय, 'धन्वंतरये धन्व-(सो. काश्य.) काशी देश का राजा । यह | स्वाहा' कर के इसे यज्ञाहुति मिलने लगी। इस तरह, दीर्घतपस् के पश्चात् राजगद्दी पर बैठ गया। इसका | इसकी विष्णु भगवान् के पास की गयी प्रार्थना सफल 'धर्म' पाठभेद भी उपलब्ध है। आयुर्वेदशास्त्र का | हुई । वैद्यक एवं शल्यशास्त्र में पारंगत व्यक्तिओं को आज प्रणेता धन्वन्तरि इसीका पुत्र था (धन्वंतरि २. देखिये)। | भी 'धन्वन्तरि' कहा जाता है (उल्लणकृत 'सुश्रुत
धन्वन्तरि-देवताओं का वैद्य एवं 'आयुर्वेदशास्त्र' | संहिता टीका' सू. १. ३)। का प्रवर्तक देवता । समुद्रमंथन के समय, यह अमृत | धन्वन्तरि स्वरूप वर्णन-धन्वन्तरि देवता का स्वरूप का श्वेत कमंडलु हाथ में रख कर समुद्र से प्रकट हुआ | वर्णन प्राचीन ग्रंथों में उपलब्ध है (भा. ८. ८. ३१