________________
धनंजय
प्राचीन चरित्रकोश
धनुर्ग्रह
२. वसिष्ठकुल का एक ब्राह्मण । इसे १०० स्त्रियाँ | 'धनधर्मन्-(भविष्य.) वायुमत में मथुरा नगरी में तथा अनेक पुत्र थे। इसने अपना धन उनमें बराबर राज्य करनेवाला तथा ब्रह्मांडमत में वैदेश का नागवंशी . बाँट दिया। फिर भी उन पुत्रों में अनबन बनी रहती राजा । यह नखवान के बाद राजगद्दी पर बैठ गया। थी। उन झंझटों से तंग आ कर, इसका करुण नामक पुत्र, धनपाल-अयोध्या नगरी का एक वैश्य । इसने सूर्य भवनाशिनी नदी के तट पर रहने के लिये गया । अंत में का एक दिव्य मंदिर बनवाया । एक पुराणिक को एक पूरे अंत में शिवभस्म से इसका उद्धार हुआ । 'शिवभस्म' | साल का वेतन दे कर, वहाँ पुराणपठन के लिये कहा। का माहात्म्य बताने के लिये यह कथा दी गयी है | बाद में छः मास में ही इसकी मृत्यु हो गई। इसके (पद्म. पा. १.१५२)।
संचित पुण्य के कारण, सूर्य ने विमान से इसे ले जा कर ३. एक वैश्य । दक्षिण समुद्र के तट पर यह रहता था। अपने आसन पर बिठाया, इसकी पूजा करवाई। पश्चात् इसकी माता की मृत्यु होने पर, यह उसकी अस्थियाँ ले इसे ब्रह्मलोक में पहुँचाया (भवि. ब्राह्म. ९४)। कर काशी गया। अस्थियाँ ढोनेवाले शबर साथी ने उसे | २. (सो.) भविष्यमत में सावित्री का पुत्र । इसने ३००० द्रव्य का हाँडा समझ कर चुरा लाया। तब धनंजय पुनः | वर्षों तक राज्य किया। उस शबर के घर गया। उसकी स्त्री को यथेच्छ द्रव्य | ३. सरस्वती के तट पर भद्रावती नगर में रहनेवाला .
देना मान्य कर, उसने वह हाड़ा माँगा । परंतु शबर ने वह | एक वैश्य । इसे धृष्टबुद्धि नामक दुर्वर्तनी पुत्र था (धृष्टबुद्धि जंगल में ही छोड दिया था। इसलिये इसे वह नहीं मिला | देखिये)। (स्कन्द, ४.१.३०)।
धनयाति--(सो.) भविष्यमत में संयाति का पुत्र । ४. त्रेतायुग का एक ब्राह्मण । इसने विष्णु की अत्यंत
धनवर्धन-कृतयुग में पुष्कर क्षेत्र में रहनेवाला ।। भक्ति की। वस्त्रप्रावरण न होने के कारण, इसने पीपल
एक सदाचारी वैश्य । एक बार वैश्वदेव कर के यह . की एक शाखा तोड़ कर आग जलाई। पीपल को तोड़ते
इत | भोजन कर रहा था। बाहर 'अन्नं देहि ' ऐसा शब्द इसने ही, विष्णु के शरीर पर जख्म के घाव पड गये।
सुना । बाहर आ कर इसने देखा तो वहाँ कोई न था। तब इसके भक्ति से प्रसन्न हो कर विष्णु इसके पास आया।
वापस जा कर त्यक्त अन्न का भोजन इसने शुरु किया। इसने विष्णु के शरीर के जख्मों का कारण उसे पूछा ।।
| त्यक्त अन्न खाने के पाप के कारण, उसी क्षण इसके सौ विष्णु ने कहा, 'अश्वत्थ की शाखा तोड़ने के कारण, मेरे
टुकड़े हो गये (भवि. ब्राह्म. ३.४२-४७)। शरीर पर ये घाव पड़े है' । तब यह अपनी गर्दन तोड़ने
धनशर्मन्-मध्यदेश में रहनेवाला एक ब्राह्मण । को तैय्यार हो गया। विष्णु ने इसे वर माँगने के लिये
यह एक बार दर्भ, समिधा आदि लाने के लिये अरण्य कहा। इसने वररूप में 'विष्णुभक्ति' की ही याचना की
में गया। अरण्य में इसने तीन पिशाच देखे । उन्हें देख (पद्म क्रि. १२)। 'अश्वत्थमाहात्म्य' बताने के लिये
कर इसने उनकी दुःस्थिति का कारण पूछा । बाद में उन यह कथा दी गयी है।
पिशाच के उद्धार के लिये, इसने तिल तथा शहद का ... ५. अत्रि के कुल की वंशवृद्धि करनेवाला एक ऋषि ।
दान कर के 'वैशाख स्नान' का व्रत किया । उस व्रत का ६. वर्तमान मन्वन्तर का सोलहवाँ व्यास (व्यास
| पुण्य इसने उन पिशाचों को दिया । इस पुण्य के.बल, उन देखिये)।
पिशाचों को मोक्षप्राप्ति हुई (पन. पा. ९८)। ७. विश्वामित्रकुल का एक मंत्रद्रष्टा ब्रह्मर्षि (कुशिक
धनायु--(सो. पुरूरवस्.) मत्स्य के मत में पुरूरवा देखिये)।
| के पुत्रों में से एक। ८. कुमारी का पति (म. उ. ११५.४६०* पंक्ति. ५)। धनिया-सोम की सत्ताईस स्त्रियों में से एक तथा
धनद--कुबेर का नाम । तृणबिंदु की कन्या इडविड़ा | प्राचेतसदक्ष की कन्या। का पुत्र (म. स. ११.१३४% पंक्ति. २; भा. ९.२.३१- धनिन्-कप नामक देवों का दूत । ब्राह्मणों के पास ३२)।
जा कर इसने 'कप' देवों के सदाचार का वर्णन किया २. मरुद्गणों में से तीसरे गणों में एक ।
(म. अनु. २६२.८-१६ कुं.)। धनदा-स्कन्द की अनुचरी मातृका (म.-श. ४५. धनुर्ग्रह-(सो. कुरु.) धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों में से एक
(म. आ. १०८.११)। इसके नाम के 'धनुग्रह' एवं ३१४
१३)।