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द्रुपद
प्राचीन चरित्रकोश
क्रोधित हुआ, तथा उसके नाश के लिये उपाय ढूँढने युद्ध में इसने काफी पराक्रम दर्शाया । भारतीय युद्ध के लगा। द्रोणविनाशक पुत्र की प्राप्ति के लिये यह ऋषियों | पंद्रहवे दिन हुए रात्रियुद्ध में, मार्गशीर्ष वद्य एकादशी के के एवं ब्राह्मणों के आश्रम में घूमने लगा। एक बार दिन प्रभात समय में, द्रोण के हाथों इसकी मृत्यु हुई उपयाज ऋषि के कहने पर, याज नामक काश्यपगोत्रीय | (म. द्रो. १६१. ३४; भारत-सावित्री)। ब्राह्मण के आश्रम में यह गया। वह ब्राह्मण अत्यंत लोभी द्रौपदी तथा धृष्टद्युम्न के सिवा, द्रुपद को शिखंडी, होने के कारण, कौनसा भी असूक्त कर्म करने के लिये सुमित्र, प्रियदर्शन, चित्रकेतु, सुकेतु, ध्वजकेतु (म. आ. सदा तैयार रहता था। द्रुपद ने उसे पुत्रप्राप्ति का उपाय परि. १.क्र. १०३. पंक्ति. १०८-११०), वीरकेतु (म. पूछा, एवं पुत्र होने पर एक अर्बुद धेनु दान देने का प्रलोभन द्रो. ९८.३३), सुरथ एवं शत्रुजय (म. द्रो. १३१. उसे दिखाया (म. आ. १६.७.२१)। उसपर पुत्रप्राप्ति | १२६) नामक अन्य पुत्र थे। धृष्टकेतु नामक पौत्र भी के लिये, यज्ञ करने की सलाह याज ने इसे दी। इसे था। इसके पुत्रों में से शिखंडी, जन्म के समय स्त्री
उपयाज के उस सलाह के अनुसार, उपयाज तथा उसका था। बाद म एक यक्ष क प्रसाद स उस पुरुषत्व प्रात भाई याज दोनों को अपने साथ नगर में ला कर, इसने यज्ञ हुआ। द्रुपद ने उसे शंकर से भीष्म के वध के लिये माँग किया। यज्ञसमाप्ति पर सिद्ध किया गया चरु खाने के लिया था (सौत्रामणि देखिये)। लिये, याज ने द्रुपद की पत्नी सौत्रामणि को बुलाया। - द्रुम--अधिरथ सूत का पुत्र तथा कर्ण का भाई। परन्तु उसके आने में विलंब होने पर, याज ने वह चरु | भारतीय युद्ध में भीम के द्वारा यह मारा गया (म: द्रो. अग्नि में झोंक दिया। तत्काल अग्नि में से एक कवचकुंडल- १३०. २३)। भांडारकर मंहिता में ध्रुव पाटभेद धारी दिव्य पुरुष, तथा एक श्यामवर्णा स्त्री प्रकट हुई। प्राप्त है। उन्हें अपने पुत्र एवं पुत्री मान मान कर, इसने उनके नाम | . २. महाभारतकाल का एक राजा। यह शिबि मामक धृष्टद्युम्न तथा द्रौपदी रख दिये (म. आ. १५५)। दैत्य के अंश से पैदा हुआ था (म. आ. ६१.८)। .
द्रौपदीस्वयंवर--द्रौपदी उपवर होते ही द्रपद ने उसके ३. गंधर्वो का पुरोहित (म. स. परि. १. क्र. ३, स्वयंवर की तैयारी की। मत्स्ययंत्र का, धनुष्य द्वारा वेध | पंक्ति. १०)। कुबेर सभा में रह कर, यह कुबेर की करने वाले को ही द्रौपदी दी जायेगी, ऐसी शर्त इसने | उपासना करता था (म. सभा. परि. १.३.३०)। भीष्मक.. रखी थी। ब्राह्मण वेष में पांडव इस स्वयंवर में आये थे। पुत्र रुक्मिन् का यह गुरु था (म. उ. १५५. ७) । इसने अर्जुन ने शर्त पूरी की। इसे द्रुपद ने द्रौपदी दी। उसे विजय नामक धनुष्य दिया था (म.उ. १५. 'क्षत्रियों को छोड़ कर द्रुपद ने एक ब्राह्मण को अपनी कन्या | ११०)। दी, एवं हमारा अपमान किया, ऐसी सारे क्षत्रिय |
द्रमसेन--एक क्षत्रिय राजा । यह गविष्ठ नामक राजाओं की कल्पना हुई।
दैत्य के अंश से उत्पन्न हुआ था (म. आ. ६१. ३२)। उस कारण वे द्रुपद से लड़ने के लिये प्रवृत्त हो गये। यह शल्य का चक्ररक्षक था । युधिष्ठिर द्वारा इसका वध किंतु पांडवों ने उन सब का पराजय किया। बाद में द्रपद ने | हुआ (म. श. ११.५२)। अपना पुरोहित पांडवों के निवासस्थान पर भेजा। द्रौपदी- २. दुर्योधनपक्षीय एक राजा (म. आ. ६१. ३२)। स्वयंवर का प्रण जीतने वाले पांडव ही हैं, यह जान कर यह धृष्टद्युम्न के द्वारा मारा गया (म. द्रो. १४५ इसे अत्यंत आनंद हुआ। बाद में बड़े ही समारोह के | २४)। साथ, इसने पाँच पांडवों के साथ द्रौपदी का विवाह कर दुमिल-ऋषभदेव तथा जयंती के शतपुत्रों में से दिया (म. आ. १९०)।
एक । यह भगवद्भक्त था (भा. ५.४; ११.४)। ___ भारतीय युद्ध में द्रपद, पांडवों के पक्ष में प्रमुख था। द्रुह्य--द्रुहथु का नामांतर। इसने पांडवों की ओर से मध्यस्थता करने के लिये. द्रहय --ऋग्वेदकालीन एक मानवजाति । यदु, तुर्वश, अपने पुरोहित को धृतराष्ट्र के पास भेजा था। परंतु | अनु, पूरु एवं द्रुह्य ये ऋग्वेदकालीन पाँच सुविख्यात समझौते के सारे प्रयत्न निष्फल हो कर युद्ध प्रारंभ हुआ। जातियाँ थी (ऋ. १. १०८. ८)। इस 'गण' के ब अपने पुत्र, बांधव तथा सेना के सहित द्रपद, पांडवों लोग भारत के उत्तर पश्चिम विभाग में रहते थे (राथकी सहायता के लिये, युद्ध में शामिल हुआ। भारतीय | त्सु. वे. १३१-१३३)। महाभारतकाल में यह लोग
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