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________________ प्राचीन चरित्रकोश द्रोण गांधार देश में रहते थे (पार्गि. ज. ए. सो. १९१०. ही पुत्र था, एवं बभ्रु को सेतु नामक पुत्र हुआ, ऐसा भी ४९)। निर्देश प्राप्त है (विष्णु. ४.१७.१; भा. ९.२३.१४)। ___एकवचन तथा बहुवचन में 'ब्रह्य' का निर्देश ऋग्वेद दुष्यन्त ने यह वंश पूरुवंश में मिला दिया। भृगु वंश के में कई बार आया है (ऋ. ६. ४६.८,७. १८.६; ऋषे इसके उपाध्याय थे। १२, १४, ८. १०.५ ) । उनमें से एकवचन का ३. पूरुवंश के मतिनार राजा के चार पुत्रों में से एक निर्देश द्रुह्य गण के राजा से संबंधित रहा होगा। यह | (म. आ. ९४.११)। राजा सुदास का शत्रु था, एवं पानी में डूब कर उसकी | द्रोण-भारतीय युद्धकालीन सुविख्यात युद्धशास्त्रज्ञ, मृत्यु हो गयी (ऋ. ७. १८)। दाशराज्ञ युद्ध में इसे | कौरव एवं पांडवों का गुरु, एवं धर्मज्ञ आचार्य । आंगिरस काफी महत्त्वपूर्ण स्थान था । इंद्र, अमि, एवं अश्वियों का | गोत्रीय भरद्वाज ऋषि का यह पुत्र था। उस कारण, इसे यह भक्त था (ऋ.१.१०८.८८.१०.५)। 'द्रोण आंगिरस' भी कहते थे (म. उ. १४९.१७)। २. आयुपुत्र नहुष का पौत्र तथा ययाति को शर्मिष्ठा वसिष्ठ गोत्रीय शुक्राचार्य, एवं असित देवल, धौम्य, याज, से उत्पन्न तीन पुत्रों में से एक (म. आ. ७८.१०,८४, काश्यप आदि ऋषि इसके समकालीन थे। आंगिरस गोत्रीय . १०; ९५. ९; गरुड. १.१३९; पद्म. सु. १२) । अनु | कृपाचार्य की बहन कृपी इसकी पत्नी थी। उससे इसे तथा पूरु इसके भाई थे। ययाति ने सब पुत्रों को बुला कर, | अश्वत्थामन् नामक पुत्र हुआ था (म. आ. १२१.१-१ उन्हें अपनी जरा लेने के लिये कहा । शर्मिष्ठा से उत्पन्न | १२, विष्णु. ४.१९.१८)। पूरू नामक पुत्र ने ही जरा लेना मान्य किया । तब अन्य | द्रोण के पिता भरद्वाज ऋषि का आश्रम गंगाद्वार पर पत्रों को शाप दे कर, ययाति ने पूरु को ही गद्दी पर | था (म. आ. १२१.१३३१५७; १२३.६८)। एक दिन बैठाया। भरद्वाज मुनि गंगा नदी में स्नान करने के लिये गये थे। . जरा लेना अमान्य करने के कारण ययाति ने इसे | वहाँ घृताची नामक अप्सरा पहले से ही स्नान कर के, शाप दिया, 'तुम्हारे प्रिय मनोरथ एवं भोग-आशा सदा | वस्त्र बदल रही थी। उसका वस्त्र खिसक गया था। उस अंतृप्त रहेंगी। जहाँ नित्य ज्यवहार नावों से होता है, ऐसे अवस्था में उसे देख कर, भरद्वाज का वीर्य स्खलित हो गया। दुर्गम देश में तुम्हे रहना पडेगा, एवं वहाँ भी राज्या- भरद्वाज ने उस वीर्य को उठा कर, एक द्रोण में रख दिया । •धिकार से वंचित हो कर, 'भोज' नाम से तुम प्रख्यात उसी द्रोण से इसका जन्म हुआ। उस कारण इसे 'द्रोण' होंगे' (वायु. ९४.४९-५०; ह. वं. १.३०.२८-३१, नाम प्राप्त हुआ। द्रोणकलश में जन्म होने के कारण, इसे ब्रह्म. १२; १४६; म.आ. ७०)। उस शाप के अनुसार, 'अयोनिसंभव' (म. आ. ५७.८९; १२९.५, १५४. इसको एवं इसके वंश को म्लेंछ लोगों के प्रदेश में राज्य | ५), 'कुंभयोनि' (म. द्रो. १३२.२२), 'कुंभसंभव' मिल गया । इसके वंश की जानकारी अधिकांश पुराणों | (म. द्रो. १३२.३०) आदि नाम प्राप्त हुएँ थे। इसके में मिलती है। सिवा, शोणाश्व, रुक्मरथ, तथा भारद्वाज आदि नामांतर - ययाति ने सप्तद्वीप पृथ्वी को समुद्र के साथ जीता | से भी इसका उल्लेख पाया जाता है (म. आ. १२२. था। उसके पाँच भाग कर, उसने अपने पुत्रों में बाँट | १)। बृहसति एवं नारद के अंश से द्रोण का जन्म हुआ दिये। उनमें से पश्चिमी भाग ह्य को मिला (ह. व. १. था, ऐसे निर्देश भी विभिन्न ग्रंथो में प्राप्त है (म. आ. ३०. १७-१८; विष्णु. ४. १०.१७)। परंतु इसके | ६१.६३, पद्म. स. ७६ )। वंशज भरतखंड के उत्तर की ओर राज्य करते थे। शिक्षा-धनुर्वेद तथा ऋग्वेदादि अन्य वेदों का अध्यइसके राज्य में म्लेंच्छ लोगों की काफी बस्ती होने यन, इसने अपने पिता के ही पास किया । इसके अग्निका वर्णन प्राप्त है ( भा. ९.२३.१६) । द्रुह्यु को | वेश नामक चाचा ने इसे 'आग्नेयास्त्र' सिखाया (म. पूर्व की ओर का राज्य दिया गया था, ऐसा भी आ. १२१.७)। पिता के पास अध्ययन करते समय, कई जगह उल्लेख प्राप्त है (लिंग. १.६७)। इसे | पांचाल देश के पृषत् राजा का पुत्र द्रुपद, द्रोण का सहाबभ्रु तथा सेतु नामक दो पुत्र थे (ह. बं. १.३२.१२४; | ध्यायी था। यही द्रुपद आगे इसका सब से बड़ा दुष्मन अग्नि. २७६ )। मत्स्य के मत में इसे सेतु तथा केतु | बन गया। भारतीय युद्ध में, इसका वध द्रुपदपुत्र धृष्टद्युम्न नामक दो पुत्र थे (मत्स्य. ४८)। द्रुह्यु को बभ्रु नामक एक | ने ही किया। ३०७
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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