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________________ प्राचीन चरित्रकोश घुमत् ३. प्रतर्दन राजा का नामांतर ( प्रतर्दन देखिये) । ४. शाल्व राजा का प्रधान । कृष्ण ने इसका वध किया (मा. १०.६) । घुमत्सेन -- शाल्वदेशीय सत्यवत् वा चित्राश्व राजा का पिता (सावित्री देखिये ) | २. एक राजा । राजसूय दिग्विजय के समय, अर्जुन ने इसे जीता। यह धर्मराज की सभा में उपस्थित था (म. स. ४.२७; २३.२७०* पंक्ति ४) । यह कृष्ण के द्वारा मारा गया (म. स. परि. १ क्र. २१) । ३. (सो. मगध. भविष्य.) भागवत मत में शम का पुत्र मत्स्य के मत में त्रिनेत्र का पुत्र ( हदसेन २० देखिये ) । द्युम्न - ( स्वा. उत्तान . ) चक्षुर्मनु तथा नड्वला का पुत्र ( मनु देखिये) । घुम्न विश्वचर्षणि आत्रेय - सूक्तद्रष्टा (ऋ. ५. २१) । द्युम्नीक वासिष्ठ - सूक्तद्रष्टा (ऋ. ८.८७ ) । द्योतन - सायण के मत में एक राजा का नाम (ऋ. ६.२०.८)। २. सुतप देवों में से एक। द्रविड़ कृष्ण तथा का पुत्र । द्रविड़ा (सु. दि.) वायु के मत में वैशाली के -- विंदु राजा की कन्या विदा इसीका ही नामांतर था। इसका पुत्र विश्रवस् ( वायु. २.२४.१६; विश्रवस् देखिये) । २. कई जगह इसे विश्रवस् की पत्नी बता कर कुबेर को इन दोनों का पुत्र कहा है ( मा. १.४.२ ४.१.२६)। द्रविण पृथु तथा अर्चिमा पुत्र (मा. ५.२२.२४) । २. धर नामक वसु का पुत्र ( म. आ. ६०.२० ) । २. तुति देखों में से एक। -- इणिक अभि को वसोधरा से उत्पन्न पुत्र (भा. ६.६.१३) । द्रुपद द्रुति - - ( स्वा. प्रिय. ) नक्त की पत्नी । इसे गय नामक एक पुत्र था ( मा. ५.१५.६ ) । द्राह्यायण - - (णि) सामवेद के श्रोत तथा गृह्यसूत्र तैयार करनेवाला आचार्य इसे खादिर भी कहते हैं खभूती का यह पैतृक नाम था। इसे राणायनीय शाखा का सूत्रकार माना जाता है। किंतु हेमाद्रि के मत में, राणायनीय तथा कीथुम शाखा का सूत्रकार गोमिल नामक आचार्य है (आद कल्प)। इसके द्वारा रचित 'स्वादिर तसूत्र' शाक्शाखा का माना जाता है (भगव जै. उ. बा. प्रस्तावना पृ. १७ ) । प्रा. च. ३९] द्रुपद - (सो. अज.) पांचाल देश का सुविख्यात राजा एवं द्रौपदी का पिता । उत्तर पांचाल देश के सोमक राजवंश के पत् राजा का यह पुत्र था। इस लिये, इसे ' सौमकि ' नामांतर भी प्राप्त था ( म. आ. परि. १. ७५.२७) । पांचालाधिपति पत् राजा को काफी वर्षों तक पुत्र नहीं हुआ । पुत्रप्राप्ति के लिये उसने तपस्या की । तप करते समय, एक बार मेनका नामक अप्सरा वहाँ आयी । उसका लावण्य देख कर पुफ्त मोहित हो गया, एवं उसका वीर्य स्खलित हो गया । उस वीर्य से एक बालक का जन्म हुआ। वही द्रुपद है ( म. आ. परि. १ क्र. ७९, पंक्ति १५२-१७५ ) | यह मरुद्गणों के अंश से हुआ (म. आ. ६१.७४) । द्रुपद को यज्ञसेन (म. आ. १२२.२६), पांचाल, तथा पार्पत नामांतर भी प्राप्त थे। द्रोणविरोध द्रुपद ने अस्त्रशिक्षा तथा धनुर्विद्या शिक्षा, द्रोणाचार्य के पिता भरद्वाज के निरीक्षण में प्राप्त की थी । इसलिये द्रोण द्रुपद का गुरुबंधु था । धनुर्विद्या पूर्ण होने पर, द्रुपद ने भरद्वाज को गुरु दक्षिणा दी, एवं वचन दिया, 'मेरे राज्यारूढ होने पर यदि तुम या तुम्हारा पुत्र द्रोण मेरे पास सहायता मांगने आओगे, तो मैं तुम्हें अवश्य सहायता करूँगा। बाद में द्रुपद अपने राज्य में चला गया । -- । द्रुपद को राज्याधिकार प्राप्त होने के बाद, पूर्ववचनानुसार इसकी सहायता माँगने के लिये, द्रोण इसके पास आया परन्तु मदांध हो कर, द्रुपद ने सहायता की जगह द्रोण का अत्यंत उपहास किया। इस अपमान का बदला लेने के लिये, द्रोण ने पांडवों का आचार्यत्व मान्य किया, एवं उनके द्वारा द्रुपद से प्रतिशोध लिया ( द्रोण देखिये) । बाद में द्रोण ने इसका आधा ( उत्तर पांचाल ) राज्य स्वयं लेकर, दूसरा आधा ( दक्षिण पांचाल ) राज्य वापस दे दिया। द्रुपद गंगातट पर दक्षिण पांचाल में माकंदी में राज्य करने लगा (म. आ. १२८.१५ ) प्राचीन पांचाल ही आधुनिक रोहिलखंड है। सोमक एवं संजय राजवंश के लोग भी इसके साथ दक्षिण पांचाल पधारे। ये सारे लोग भारतीय युद्ध में द्रुपद के साथ पांडवों के पक्ष में शामिल थे। धृष्टद्युम्नजन्म - द्रोण ने अपने शिष्यों के द्वारा इसकी दुर्दशा करने के कारण, द्रुपद द्रोण पर अत्यंत ३०५
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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