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देवी
प्राचीन चरित्रकोश
. दैव्यांपति
कालिका, भद्रकर्णिका ), गोमन्त (गोमती), गोदाश्रमे (अरोगा), वैश्रवणालय (निधि), शङखोद्धार ( ध्वनि), (त्रिसंध्या), गोदावरी तट ( विश्वेशी), चट्टल (भवानी), | शालिग्राम (महादेवी), शिवकुण्ड (शिवानन्दा), चन्द्रभागा ( काला ), चित्त ( ब्रह्मकला देवी ), | शिवचक्र ( शुभा-चण्डा), शिवलिंग (जनप्रिया), शिवचित्रकूट (सीता), चैत्ररथ (मदोत्कटा), छगलाण्ड | संनिधि (पार्वती), शुचि (नारायणि), शोण (प्रचण्डा), जनस्थान (भ्रामरी), जयन्ती (जयन्ती) जालन्धर (शोणाक्षी), शोणसंगम (सुभद्रा), श्रीपर्वत (श्रीसुंदरी), (त्रिपुरमालिनी), जालन्धर (विश्वमुखी), ज्वालामुखी, श्रीशैल ( महालक्ष्मी), श्रीशैल (माधवी ), सती (अम्बिका), त्रिकूट (रुद्रसुंदरी ), त्रिपुरा (त्रिपुरसुंदरी), | (अरुन्धती), सन्तान (ललिता), सरस्वती ( देवमाता), त्रिस्त्रोता (भ्रामरी) देवदारुवन (पुष्टि), देवलोक | सर्वशरीरिन (शक्ति), सहस्त्राक्ष (उत्पलाक्षी), सह्याद्रि ( इंद्राणी ), देविकातट ( नन्दिनी ), द्वारवती | (एकवीरा), सह्याद्रि (एकवीरा), सिद्धपुर (मातालक्ष्मी (रुक्मिणी), नंदीपुर (नंदिनी), नलहाटी (नला), | देवी), सिन्धुसंगम (सुभद्रा), सुगन्धा (सुनन्दा), नागबंधन (सुगंधा ), नेपाल ( महामाया ), नैभिप | सुपार्श्व (नारायणी), सूर्यबिम्ब (प्रभा), सोमेश्वर (लिंगधारिणी), पञ्चसागर ( वाराही ), पयोष्णी | ( वरारोहा), स्थानेश्वर (भवानी), हरिश्चन्द्र (चन्द्रिका), ( पिंगलेश्वरी ), पाताल ( परमेश्वरी ), पारतटे ( पारा), हस्तिनापुर (जयन्ती), हिंगुला (कोटरी), हिवावतपृष्ठ पिण्डारक वन (कृति), पुण्ड्वधन ( पाटला), पुरुषोत्तम (नंदा), हिमाद्रि ( भीमादेवी), हिरण्याक्ष (महोत्पला), (विमला), पुष्कर ( सावित्री, पुरुहूतादेवी), प्रभास | हेमकूट (मन्मथा), कालिका. ६४; मत्स्य. १३; पद्म. (चंद्रभागा ), प्रभास ( पुष्करावती), प्रयाग(ललिता), | सृष्टि. १७; दे. भा. ७.७;)। बदरी ( उर्वशी), बहुला (चण्डिका ), बिल्वक (बिल्व- | देहिन्-अमिताभ देवों में से एक । पत्रिका), ब्रह्मास्य (सरस्वती), भद्रेश्वर (भद्रा), भर- दैत्य--एक मानवजाति । कश्यप एवं दिती की संतती ताश्रम ( अनंता, अंगना), भैरवपर्वत (अवन्ति), | "दैत्य' कहलाती थी। उस वंश के लोगों से ही यह मकरन्दक ( चण्डिका ), मगध (सर्वानंदकरी), मणिवेदिक | मानवजाति उत्पन्न हो गयी होगी। ( गायत्री), मथुरा ( देवकी ), मन्दर (कामचारिणी), दैत्यों का सुप्रसिद्ध राजा वृषपर्वन था। उसकी कन्या मर्कोट ( मुकुटेश्वरी ), मलयपर्वत ( रम्भा ), मलयाचल शर्मिष्ठा पुरु राजा ययाति को विवाह में दी गयी थी। ( कल्याणी ), महाकाल (महेश्वरी), महालय (महापद्मा, | उससे आगे पुरु आदि वंश निर्माण हएँ। महाभागा ), महालिंग ( कपिला ), मांडव्य (माण्डवी दैत्यों का पुरोहित शुक्र था। उसके पास मृत को देवी), मातृणा ( वैष्णवी), माधव वन (सुगन्धा ), जीवित करनेवाली 'संजीवनी विद्या' थी। वह विद्या मानस (दाक्षायणी ), मानस (कुमुदा ), मायापुरी| देवों ने, अपने पुरोहित बृहस्पति के पुत्र कच के द्वारा ' (नीलोत्पला ), मायापुरी ( कुमारी ), माहेश्वरपुरी | शक्र से संपादित की। (स्वाहा ), मिथिला (महादेवी), मुकुट (सत्यवादिनी), शुक्र के वंश में से शंड, मर्क, त्वष्ट्र, वरुत्रि, त्वष्ट, यमुना ( मृगावती ), यशोर ( यशोरेश्वरी ), युगाद्या | त्रिशिरस , विश्वकर्मन वृत्र, वरुचिन ये पुरुष प्रसिद्ध हैं। (भूतधात्री ), रत्नावली ( कुमारी), रामगिरि ( शिवानी), | ये सारे दैत्यों के पुरोहित एवं इंद्र के शत्र थे । उनमें से रामतीर्थ ( रमणा ), रामा ( तिलोत्तमा ), रुद्रकोटि शंड एवं मर्क' दैत्यों को छोड़ कर देवों के पक्ष में जा (रुद्राणी ), लंका (इंद्राक्षी), ललित (संनति), वक्त्रेश्वर | मिले। उस कारण शुक्र ने उनको शाप दिया। (महिषमर्दिनी ), वराहशैल ( जया ), वस्त्रेश्वर (तृष्टि ), आगे चल कर, दानव, देय, राक्षस, नाग, दस्यु वाराणसी ( विशालाक्षी), विकूट ( भद्रसुंदरी), विनायक आदि शब्द वंशवाचक न रह कर गुणवाचक हो गये। ( उमादेवी), विन्ध्य (विन्ध्यनिवासिनी), विन्ध्य कन्दर
दैत्यद्वीप---गरुड का पुत्र (म. उ. ९९.११)। (अमृता), विपाशा ( अमोघाशी), विपुल (विपुला),
| दैत्यसेना---दक्ष प्रजापति की कन्या तथा केशी दैत्य विभाष ( कपालिनी), विराट (अम्बिका विशालाक्षी),
| की स्त्री (म. व. २१३.१)। विश्वेश्वर (पुष्टि, विश्वा), वृन्दावन ( उमा), वृन्दावन
दैय्यांपति--पक्ष का पैतृक नाम (दै. ब्रा. ३.१०.९. (राधा), वेगल (प्रचण्डा ), वेणानदी ( अमृता),
| ३-५)। अग्निचिति की ईटें बनाने की विद्या शांडिल्यायन वेदवदन ( गायत्री ), वैद्यनाथ ( जयदुर्गा ), वैद्यनाथ
| ने इसे सिखायी थी (श. बा. ९.५.१.१४)। ३०३