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दवी
प्राचीन चरित्रकोश
देवी
इसने यह अपमान समझा, एवं गौरवर्ण प्राप्त करने के | प्रकाश देती है। ४. योगीश्वरी--यह उत्तर दिशा में रहती लिये तपस्या करने, यह हिमालय पर्वत में गयी । शंकर है। उसके दृष्टिपान से सनकादिक योगी सिद्ध बने । अत्यंत स्त्रीलंपट होने से, उसके मंदिर में किसी भी स्त्री ५. त्रिपुरा-त्रिपुरासुर का वध करने के लिये, इसने शंकर का प्रवेश न हो, ऐसी व्यवस्था इसने की। अपनी माता की | की मदद की। ६. कोलंबा-यह पूर्व दिशा में वाराह गिरि सखी कुसुमामोदिनी एवं शिवगणों में से वीरक को, शंकर पर रहती है । ७. कपालेशी--यह कोलंबा के साथ रहती की मंदिरद्वार पर कड़ा पहारा रखने के लिये इसने कहा।। है। ८. सुवणाक्षी । ९. चर्चिता। १०. त्रैलोक्यविजया-- फिर भी वीरक की दृष्टि बचा कर, अंधकासुर का अड़ि | यह पश्चिम दिशा में रहती है। ११.वीरा। १२.हरिसिद्धि-- नामक पुत्र सर्प का रूप ले कर शिवमंदिर में पहुँच गया। यह प्रलय की देवता है । १३. चंडिका---ईशान्य में पश्चात् पार्वती का रूप ले कर उसने शंकर को भुलाने का रहनेवाली इस देवी ने चंडमुंड का वध किया । १४. प्रयत्न किया। किंतु शंकर ने अंतर्ज्ञान से उसे पहचान कर भूतमाला अथवा भूतमाता--यह गुह के भ्रमध्य से उसका नाश किया।
निकली (स्कंद १.२.४७; ३.१.१७; मत्स्य. १३; दे. वीरक पहारे पर होते हुए भी, अडि राक्षस को भा. ९)। शिवमंदिर में प्रवेश मिल गया। उस लापरवही के लिये देवीपीठ--उपरिनिर्दिष्ट देवी अवतारों के अतिरिक्त, पार्वती ने उसे शाप दिया, 'तुम पृथ्वी पर शिलाहो कर | देवी के १०८ नाम, एवं स्थान पुराणों में मिलते हैं । देवी गिरोंगे' । पश्चात् पार्वती की तपस्या से संतुष्ट हो कर, के ये स्थान 'देवीपीठ' नाम से पहचाने जाते हैं। पुराणों में ब्रह्मदेव ने उसे गौरवर्ण प्रदान किया। उससे इसे गौरी | निर्दिष्ट देवीपीठ एवं वहाँ स्थित देवी के अवतार के नाम . नाम प्राप्त हुआ (पद्म. सृ. ४४; मस्त्य. १५५-१५८; निम्नलिखित सूची में दिये गये है। इस सूची में से प्रथम . कालि. ४७)।
नाम देवीपीठ का, एवं उसके बाद कंस में दिया नाम (4) कालिका-दारुक दैत्य का संहार करने के लिये, वहाँ स्थित देवी के अवतार का है :पार्वती ने शंकर के कंठ से, एक महाभयानक देवी निर्माण अच्छोद ( सिद्धदायिनी ), अट्टहास (फुलरा), की। वह कृष्णवणीय होने से उसे 'कालिका 'नाम प्राप्त | अमरकंटक (चण्डिका), अम्बर (विश्वकाया ), अम्बर । हुआ। कालिका ने एक गर्जना करते ही, दारुक अपने | (विश्वकाया देवी), अश्वत्थ (वन्दनीया देवी), उज्जसैन्य के साथ मृत हो गया। शिव के कंठ से उत्पन्न होने यिनी (चण्डिका), उत्कलात (विमला), उत्तरकर के कारण, कालिका के शरीर में शिवकंठ में स्थित विष | (औषधि ), उत्पलावर्तक (लोला), उष्मतीर्थ (अभया), उतर गया था। उस कारण दारुक के वध पश्चात् , कालिका | एकाम्रक (कीर्तिमती), कन्यकाश्रम ( शर्वाणी), कपालके उग्र स्वरूप से स्वयं देव त्रस्त हो गये। पश्चात् | मोचन ( शुद्धा, शुद्धि, ), कमलाक्ष (महोत्पलादेवी), शंकर ने बालरूप धारण कर, कालिका का स्तनपान किया कमलालय (कमला, कमलादेवी), करतोया तट (अपां), एवं उसका सारा विष शोषण किया । तब यह शान्त हो | करवीर (महिषमर्दिनी), करवीर (महालक्ष्मी), कर्कोट गयी (स्कंद. १.२.६२)।
(मुकुटेश्वरी), कर्णाट (जयदुर्गा), कर्णिक (पुरुहूता), (९) मातृका-देवी का और एक अवतार मातृका कश्मीर (महामाया), काञ्ची (देवगर्भा), कार्तिकेय है। घंटाकर्णि, त्रैलोक्यमोहिनी आदि सात मातृका (सप्त- (शाङ्करी, यशस्करी देवी), कान्यकुब्ज (गौरी), मातृका) प्राचीनकाल से प्रसिद्ध हैं। मुहेंजोदड़ो एवं | कामगिरी (कामाख्या), कायावरोहण (माता), कालंजर हड़प्पा के उत्थनन में उपलब्ध 'सिंधुघाटी संस्कृति में भी (काली), कालमाधव (काली), कालीपीठ (कालिका), मातृका की मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं (मातृका देखिये)। काश्मीरमण्डल (मेधा), किरीट (किरीट), किष्किंध
इसके अतिरिक्त देवी भागवत एवं मस्त्य पुराण में, | पर्वत ( तारा ), कुब्जाम्रक (त्रिसंध्या ), कुमुद देवी के अन्य चौदह अवतारों का निर्देश किया गया है। (सत्यवादिनी), कुरुक्षेत्र (सावित्री), कुशद्वीप देवी के वे चौदह अवतार इस प्रकार है :-- (कुशोदका), कृतशौच (सिंहिका ), केदार (मार्गदायिनी),
१. सिद्धांबिका-स्कंद ने उसकी स्थापना की। कोटितीर्थ (कोटवी), गंगाद्वार (हरिप्रिया, रतिप्रिया २. तारा–यह दक्षिण दिशा में स्थित है। ३. भास्करा- देवी), गंगा (मंगला), गण्डकी (गण्डकी), गन्धमादन यह पश्चिम दिशा का पालन करती है, एवं नक्षत्रों को | (कामुका, कामाक्षी), गया (मंगला), गोकर्ण (भद्र
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