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________________ देवी प्राचीन चरित्रकोश देवी , आसक्ति को पूरी करना, यह 'देवी उपासना' से ही भेज दिये। किंतु देवी ने उन दोनों का ही वध किया । "केवल साध्य हो सकता है । उस कारण इसे 'चामुंडा नाम प्राप्त हुआ। चण्ड-मुण्ड को मारने के बाद, चामुंडा ने शुंभ-निशुंभ का भी वध किया ( स्कंद्र.५.१.३८;चंड ३ . देखिये ) | देवी के अनेक अवतार पृथ्वी पर हो गये हैं। उस हर एक अवतार का प्रभाव एवं रूप अलग है। देवी के उस अवतार का नाम भी इसके उस अवतार के रूप एवं गुणवैशिष्टय के अनुसार विभिन्न रखा गया है। देवी के इन विभिन्न अवतारों के नाम एवं उनके गुणवैशिष्ट्य इस प्रकार है : , (१) त्रिगुणात्मिका - चराचर सृष्टि का स्वरूप सत्त्व, रज एवं तम इन तीनो गुणों से युक्त, अंतएव ' त्रिगुणास्मक है। उन तीनो स्वरूप देवी धारण करती है। इसलिये उसे 'त्रिगुणात्मिका' कहते है। अपने गुणात्मक स्वरूप के कारण, आध्यात्मिक शक्ति के साथ आदि दैविक एवं आधिभौतिक सांमध्ये ही देवी अपने भक्तों को प्रदान करती है उस कारण 'देवी उपासना' से । भक्तों की आध्यात्मिक, आधिदैविक एवं आधिभौतिक उन्नति हो जाती है। , (२) दुर्गा - माकैडेय पुराणान्तर्गत 'देवी माहात्म्य' में, देवी का निर्देश दुर्गा नाम से किया गया है, एवं उसे काली, लक्ष्मी, एवं सरस्वती का अवतार कहा है । दुर्गम नामक असुर का वध करने के कारण, देवी को 'दुर्गा' नाम प्राप्त हुआ। देवों के नाश के लिये, दुर्गम तपस्या कर रहा था | ब्रह्मदेव को प्रसन्न कर, उसके वर से दुर्गम ने सारे वेद, पृथ्वी पर से चुरा लिये। उस कारण यशयागादि सारे कर्म बंद हुएँ पृथ्वी पर अनावृष्टि का भय छा गया। ब्राह्मणों ने विनंती करने पर देवी ने शवनेत्रयुक्त रूप धारण कर, दुर्गम का वध किया, एवं उसने चुरायें हुएँ वेद मुक्त किये (पद्म स्व. २८९ दे. भा. ७.२८ ) । ( ३ ) महिषासुर मर्दिनी एवं महालक्ष्मी - महिप नामक राक्षस, ब्रह्मदेव के वर के कारण उन्मत्त हो कर देवों को अस्त करने लगा। देवों ने प्रार्थना करने पर आदिमाया ने अष्टादश भुजायुक्तरूप धारण किया, एवं रणांगण में महिषासुर का वध किया। देवी के उस अवतार को 'महिषासुर मर्दिनी एवं महालक्ष्मी ' ' ' कहते है (महिषासुर देखिये) । महिषासुर का वध करने के बाद, उस स्थान पर महालक्ष्मी ने पापनाशनतीर्थ उत्पन्न किया (स्कंद १.२.६५०२.२० ) । (४) चामुंडा -- शुंभ-निशुंभ नामक दो दानवों ने, देवी का वध करने के लिये, चण्ड-मुण्ड नामक दो राक्षस ३०१ शुंभ-निशुंभ के पक्ष का रक्तबीज नामक और एक असुर था। ब्रह्मदेव के दरभाव से उसके रक्त के बिंदु भूमि पर पडते ही उतने ही राक्षस निर्माण होते थे । इस कारण यह युद्ध में अजेय हो गया था चामुंडा ने उसका सारा रक्त, भूमी पर एक ही रक्तबिंदु छिड़कने का मौका न देते हुये, प्राशन किया। उस कारण रक्तबीज का नाश हुआ (दे. भा. ५.२७- २९ मार्के. ८५९ शिव. उमा. ४७; रक्तबीज देखिये) । ( ५ ) शाकंभरी - अपने क्षुधित भक्तों को, देवी ने कंदमूल एवं सब्जियों खाने के लिये दी। उस कारण उसे 'शाकंभरी' नाम प्राप्त हुआ। ( ६ ) सती -- दक्ष प्रजापति की कन्या के रूप में आदिमाया ने अवतार लिया, उसे 'सती' कहते है । अपनी इस कन्या का विवाह दक्ष ने महादेव से कर दिया । पश्चात् दक्ष ने एक पशयन प्रारंभ किया। उस यज्ञ के लिये, दक्ष ने अपनी कन्या सती एवं जमाई शिव को निमंत्रण नहीं दिया। फिर भी सती पिता के वशखान यज्ञस्थान में यज्ञसमारोह देखने आयी । वहाँ दक्ष ने उसका अपमान किया। तब कोश सती ने यज्ञकुंड में अपना देह शोंक दिया। शिव को यह ज्ञात होते ही, दुखी हो कर सती का अर्धदग्ध शरीर कंधे पर ले कर, वह नृत्य करने लगा। उस नृत्य से समस्त त्रैलोक्य त्रस्त हो गया। पश्चात् विष्णु ने शंकर को नृत्य से परावृत्त करने के लिये, सती के कलेवर का एक एक अवयव शस्त्र से तोड़ना प्रारंभ किया । जिन स्थानों पर सती के अवयव गिरे, उन स्थानों पर सती या शक्ति देवी के इक्कावन स्थान प्रसिद्ध हुएँ उन्हे 'शक्तिपीठ' कहते है ( शक्ति देखिये) । (७) पार्वती, काली, एवं गौरी - - दक्षकन्या सती ने हिमालय के उदर में पुनः जन्म लिया। हिमालय की कन्या होने से, इसे हैमवती, गिरिजा, एवं पार्वती ये पैतृक नाम प्राप्त हुएँ। इसकी शरीरकांति काली होने के कारण, उसे 'काली' नामांतर भी प्राप्त हुआ था। एक बार शंकर ने मजाक के हेतु से, पार्वती की कृष्णवर्ण के उपलक्ष में, उसे 'काली' कह के पुकारा।
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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