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________________ देवापि प्राचीन चरित्रकोश ९°ा किया ( बृहहे. ७.१४-८; ८.७)। इससे प्रतीत होता है, देवावृध-(सो. क्रोष्टु) सात्वत राजा का पुत्र । क्षत्रिय हो कर भी, इसने ब्राह्मणवर्ण स्वीकार कर रोहित्य इसका पुत्र बभ्रु । पद्ममत में यह सात्वत का द्वितीय किया। पृथूदक नामक तीर्थ पर तपस्या कर के, इसने यह पुत्र था । इसे पुत्र न था, इसलिये इसने पर्णाशा नदी ब्राह्मणत्त्व प्राप्त किया था (म. श. ३९.१०)। के तट पर तपस्या की। तब नदी ने कन्या का रूप धारण 'बृहस्पति की स्तुति कर, इसने वर्षा करवाई। अपने कर इसे वरण किया । पश्चात् उस कन्यारूपधारी नदी से सूक्त में इसने स्वयं को 'औलान' कहलाया है (ऋ. १०. | इस बभ्रु नामक पुत्र उत्पन्न हुआ (पद्म. स. १३ )। ९८.११)। पुराण में कुछ भेद से यही जानकारी उपलब्ध | इसने यज्ञ में ब्राह्मणों को कांचनछत्र अर्पण कियी था ('म. शां. २२६.२१; अनु. २००.७ कुं.)। महाभारत में इसे प्रतीप एवं शैब्या-स्त्री सुनंदी का | देवी-एक अप्सरा । पुत्र बताया गया है (म. आ. ९०.४६)। भागवत, २. प्रलादपुत्र वीरोचन की स्त्री (भा. ६. १८.१६)। मत्य, वायु एवं विष्णुमत में यह प्रतीपपुत्र होने के ___३. वरूण की पत्नी । इसे बल नामक पुत्र एवं सुरा बारे में मतभेद नहीं है। इसे शंतनु तथा बाहिक नामक नामक कन्या थी (म. आ. ६०.५१; देवी ४. देखिये )। दो भाई थे । बचपन में ही इसने विरक्ति स्वीकार की ४. विश्वव्यापक आदिमाया के लिये प्रयुक्त सामान्य(म. आ. ८९.५२, ९०.४६; ह. वं. १.३२.१०६)। नाम । देवी का शब्दशः अर्थ 'स्त्री देवता' है। धर्मशान की इच्छा से विरक्त हो कर, यह वन में गया। इस अर्थ से, देवों के स्त्रियों के लिये, यह शब्द बाद में यह देवों का उपाध्याय बना। इसे च्यवन तथा प्रयुक्त किया जाता है। किंतु 'देवी' यह नाम प्रायः इष्टक नामक दो पुत्र थे (वायु. ९९.२३२; ब्रह्म. १३. आदिमाया ने पृथ्वी पर लिये नानाविध अवतारों के ११७)। कुष्ठरोग से पीडित होने के कारण, लोगों ने लिये, अधिकतर प्रयुक्त किया जाता है। इसे राजा बनाना अमान्य किया था (मत्स्य. ५०. । पुराणों में 'देवी' यह देवता अत्यंत प्रभावशाली मानी गयी है। इसलिये किसी भी संकट के समय, देव भागवत में उपरोक्त सारी कथा दे कर, उसमें और एवं मानव, इसकी शरण में जा कर संकट मुक्त होते है। कुछ जानकारी भी दी गयी है। शंतनु ने देवापि को स्कंद, पद्म, मत्स्य पुराणों में देवी की पराक्रम की अनेक राज्य का स्वीकार करने की प्रार्थना की। शंतनु के प्रधानों कथाएँ ग्रथित की गयी हैं। 'कालिका पुराण' एवं 'देवी ने कुछ बुद्धिमान् ब्राह्मणों को भेज कर इसकी मति पाखंड भागवत' ये ग्रंथ देवीमाहात्म्य बताने के लिये ही केवल मतों की ओर प्रवृत्त की । अंत में शंतनु के पास आ कर | | लिखे गये है । मार्कडेय पुराण में, देवीमाहात्म्य बताने के यह वेदमाग की निंदा करने लगा। इससे यह पतित लिये 'सप्तशती' नामक उपाख्यान की रचना की गयी सिद्ध हो कर, राज्य के लिये अयोग्य बना, तथा शंतनु का है (मार्क ७८-९०)। उसका पटन देवीभक्त लोग दोष नष्ट हो गया (विष्णु. ४.२०.७)। प्रतिदिन किया करते हैं। बाद में यह कला पिग्राम में रहने लगा। कलियुग में मानव एवं सृष्टि में जो शक्तिखोत है, उसकी आसना, सोमवंश नष्ट होने के बाद, कृतयुगारंभ में इसने पुनः 'देवी उपासना' का आद्य अधिष्ठान है । देवगणों में से एक बार, सोमवंश की स्थापना की (भा. ९.२२)। दत्त, शिव, एवं गणेश इन देवताओं में, एवं स्वयं मनुष्य कलियुग में वर्णाश्रमधर्म नष्ट होने के बाद, नये कृतयुग के शरीर में जो सामथ्य एवं शक्ति है, उनी एकत्रित कर के आरंभ में, वर्णाश्रमधर्म की स्थापना इसीके हाथों से | के कार्यप्रवण बनाना, यह 'देवी आसना' का मुख्य होनेवाली है (भा. १२.२; विष्णु. ४. २०.७; ९; उद्देश्य है। देवीद्वारा विश्व की उत्पत्ति होती है, एवं सुवर्चस् देखिये)। विश्व का विस्तार ही उसीके कृपाप्रसाद से होता है। २. चेदि देश का एक क्षत्रिय । कर्ण ने इसका वध | सृष्टिविस्तार के लिये, उस सृष्टि में हरएक प्राणिमात्र की किया (म. क. ४०.५०)। आसक्ति या काम निर्माण होना बहुत जरूरी है। जब तक ३. आष्टिषेण राजा के उपमन्यु नामक पुरोहित का पुत्र | सृष्टि में मोह नहीं, तब तक सृष्टि का विस्तार नहीं हो (मिथु देखिये)। | सकता। सृष्टि के चराचर वस्तुओं के बारे में, उपासकों के देवाह-(सो. विद.) वायुमत में हृदीक का पुत्र ।। मन में आसक्ति या काम निर्माण करना, एवं पश्चात् उस २00
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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