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________________ देवशर्मन् प्राचीन चरित्रकोश देवापि अपने को भरद्वाज गोत्रज ऋषि बता कर, देवशर्मा के रूप | है (ऋ. ८.४.१९) । एकबार अकाल पड़ा। यह अपने धारण करनेवाला विष्णु वृंदा को अपने आश्रम में ले | पुत्रों के साथ कंदमूल लाने के लिये अरण्य गया। वहाँ गया । पश्चात् जालंधर का रूप धारण कर के, विष्णु ने इसे कूष्मांड के फल प्राप्त हुएँ । इसने एक साम कह कर, देवशर्मा के आश्रम में वृंदा का उपभोग लिया (पद्म. उ. उन फलों को गायों में परिवर्तित कर दिया (पं. बा. ९. १८; जालंधर देखिये)। २.१९)। देवश्रवस्--(सो. कोटु.) शूर राजा को मारिपा से २. (सो. कुरु.) क्रोधन एवं कंडू का पुत्र । विष्णु, उत्पन्न पुत्र । कंस की भगिनी कंसवती इसकी स्त्री थी। इसे | मत्स्य तथा वायु पुराणों में इसे अक्रोधन का पुत्र कहा सुवीर एवं इपुमान् नामक दो पुत्र थे (भा. ९.२४)। गया है । वैदर्भी मर्यादा इसकी स्त्री थी एवं ऋष्य वा रुच २. एक पि (म. शां. ४७.५)। यह विश्वामित्र के | इसका पुत्र था (म. आ. ९०.२२;भा. ९.२२.११)। कुल में पैदा हुआ था, एवं उसी के वंश का एक प्रवर भी देवाधिप-दुर्योधन के पक्ष का एक राजा (म. आ. था । इसे कुशिक गोत्र का मंत्रकार भी बताया गया है। ६१.२७)। - देवश्रवस् भारत-भरतवंश का एक राजा । देवानंद--(सो. मगध. भविष्य.) प्रियानंद राजा का दृपद्धती, सरस्वती, एवं आपया नदीयों के तट पर, इसने पुत्र । इसने बीस वर्षों तक राज्य किया। देववात् राजा के साथ काफी यज्ञ किये थे (ऋ. ३.२३. देवानीक--(सू. इ.) क्षेमधन्वा का पुत्र (पद्म. सु. २-३)। महाभारत (भांडारकर इन्स्टिटयूट आवृत्ति) में ८)। 'वेदश्रवस्' नाम से इसका निर्देश प्राप्त है। देवांतक-रावण का पुत्र । हनुमानजी ने इसका वध देवश्रवस् यामायन--एक सूक्तद्रष्टा (ऋ. १०. किया (वा. रा. यु. ६.७०)। .१७) अनुक्रमणी में इसे यम का पुत्र कहा गया है। । २. एक राक्षस । यह हिरण्याक्ष राक्षस का मित्र था देवश्रेष्ठ--रुद्रसावर्णि मनु का एक पुत्र । उसकी ओर से युद्ध करते समय, यह यम के हाथों मारा देवसावर्णि-रोच्य मनु का नामांतर । यह तेरहवाँ | गया (पम. सु. ७०)। मनु थी, एवं तेरहवे मन्वंतर का अधिपति था (भा. ८. ३. एक असुर । यह रौद्रकेतु का पुत्र था । इसने अपने ५३; ब्रह्मवै. २.५४)। पुराणों में इसका ऋतधामा कृत्यों द्वारा त्रैलोक्य को त्रस्त कर रखा था। तब विनायक ने नामांतरं दिया गया है (मस्य. ९; मनु देखिये)। कश्यप के गृह में अवतार ले कर, इसका वध किया । देवसेना--दक्ष प्रजापति की कन्या। केशी दैत्य इसे ४. कालनेमि का पुत्र। हरण कर ले जा रहा था। इस वक्त इद्र ने इसे छुड़ाया। देवापि आEिषेण--(सो. करु.) करुवंश का एक पश्चातं इसने कार्तिकेय को वरण किया (म. घ. २१३. राजा एवं सूक्तद्रष्टा (ऋ.१०.९८)। इसके सूक्त में शंतनु १,२१८.४७)। महाभारत में दी गयी देवसेना की | राजा का उल्लेख भी प्राप्त है। कथा रूपकात्मक प्रतीत होती है। ___ शंतनु तथा यह दोनों कुरुवंश का राजा प्रतीप एवं देवस्थान-एक ब्रापि (म. शा. २०.१,४७.६)। सुनंदा के पुत्र थे। उनमें से यह ज्येष्ठ तथा शंतनु कनिष्ठ देवहव्य-एक ऋषि (म. स. ७.१६)। बंधु था। फिर भी शंतनु गद्दी पर बैठा । इसी कारण राज्य देवहूति-स्वायंभुव मनु की कन्या, एवं कर्दम- में १२ वर्षों तक अवर्षण हुआ। ब्राह्मणों ने उससे कहा, प्रजापति की पत्नी (भा. ३.१२.५४)। इसे नौ कन्याएँ 'तुम छोटे भाई हो कर गद्दी पर बैठे हो, इस कारण एवं कपिल नामक एक पुत्र था (भा. ३.२४) । कपिल ने भगवान् वृष्टि नहीं करते है। इसे सांख्यशास्त्र का उपदेश दिया था। बाद में यह शंतनु ने देवापि को राजसिंहासन पर बैठने के लिये देहत्याग कर नदी बनी (भा. ९.३३)। बुलवाया। परंतु देवापि ने उसे कहा, 'तुम्हारा पुरोहित देवहोत्र--एक ऋषि । उपरिचर वसु के यज्ञ में यह बन कर मैं यज्ञ करता हूँ। तब वर्षा होगी।' तब इसने ऋग्वेद ऋत्विज था। में इसके नाम से प्रसिद्ध सूक्त का उद्घोष किया (नि. २. देवातिथि काण्व--एक सूक्तद्रष्टा (ऋ. ८.४)। ११)। त्वचारोग होने के कारण, इसने राज्य अस्वीकार इसके सूक्त में रुम, रुशम, श्यावक तथा कृप का उल्लेख | कर दिया तथा यह तपस्या करने अरण्य गया। सौ वर्ष है (ऋ. ८.४.२), तथा अन्त में कुरूंग की दानस्तुति की | का अवर्षण होने के कारण, शंतनु की प्रार्थना से इसने यज्ञ २९९
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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