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देववर्धन
देववर्धन--(सो. कुकुर.) भागवतमत में देवक का पुत्र ( देवरक्षित देखिये) ।
देववर्मन - (मौर्य भविष्य.) वायु तथा ब्रह्मांडमत मैं इंद्रपाति का पुत्र । इसने सात वर्षों तक राज्य किया। सोमशर्मा इसी का ही नामांतर है।
देववर्ष -- प्रियव्रत राजा का पुत्र ( भा. ५.२०.९ ) । देवचात भरत का पुत्र इसके भाई का नाम देव
प्राचीन चरित्रकोश
अवस् था ।
इन दोनों का एक संपूर्ण सूक्त है । दृषद्वती सरस्वती एवं आपया नदी के तट पर, इसने यज्ञ किये थे (ऋ. ३.२२.२ ) ।
देववत- मालिनी देखिये ।
२. भीष्म का नामांतर (म. आ. ९०.५० ९४० ६७)।
२. एक कर्मठ ब्राह्मण। एक बार एक कृष्णमक ने कृष्ण का पूजन किया। तीर्थ देने पर इसने उसे अश्रद्धा से ग्रहण किया।
देववीति - ( स्वा. प्रिय.) मेरु की नौ कन्याओं में किया पश्चात् यह पृथ्वी पर आया, एवं अन्य लोगों से एक तथा अभीपुत्र केतुमाल की स्त्री ।
की सहायता से महीसागरसंगम पर इसने श्राद्ध किया। उससे इसके पितरों का उद्धार हुआ (स्कन्द १. २. ३)।
अतः इसे चाँस का जन्म मिला। पश्चात् पुण्यसंचय के कारण, उस बाँस से कृष्ण ने अपनी मुरली बनायी, एवं इसका उद्धार हो गया (पद्म. पा. ७३ ) ।
देवशर्मन - एक ऋषि । इसकी स्त्री रुचि (म. अनु. ७५. १८; ४१ कुं.) ।
२. जनमेजय के सत्र का एक सदस्य ( म. आ. ४८.९) ।
२. वायुमत में व्यास की ऋशिष्यपरंपरा के शाकपूर्ण रथीतर का शिष्य ( व्यास देखिये) ।
४. एक सदाचारी ब्राह्मण । अपने पिता का वर्षश्राद्ध सुयोग्य ब्राह्मण के हाथों से, यह हर साल करता था। एकबार श्राद्ध के बाद यह आँगन में बैठा था । तब एक बैल तथा कुतिया का संभाषण इसने सुना। उस संभाषण से इसे पता चला कि वे दोनों इसके माता पिता हैं, तथा श्राद्ध की गड़बड़ी वो दोनों भूखे रह गये है ।
अपने मातापिता को, बैल एवं कुतिया का जन्म कैसे प्राप्त हुआ, इसका कारण पूछने के लिये, यह वसिष्ठ के
पास गया।
देवशर्मन
दुस्थिति प्राप्त हुई है ' । इस पर उपाय पूछने पर, वसिष्ठ भाद्रपद शुद्ध पंचमी को, ऋषिपंचमी व्रत करने के लिये इसे कहा उसे करने के बाद इसके मातापिता का उद्धार हुआ (पद्म. उ. ७७ ) ।
५. एक ब्राह्मण प्रत्येक पर्व में यह समुद्रसंगमा पर श्राद्ध करता था । उस श्राद्ध से इसके पितर प्रत्यक्ष आ कर इसे आशीर्वाद देते थे। एक बार अपने पितरों के साथ यह पितृलोक गया। यहाँ अपने पितरों से भी अधिक सुखी अन्य पितर इसने देखे। उसका रहस्य पूछने पर इसे ज्ञात हुआ कि, उनके श्राद्ध महीसागरसंगम पर होते हैं। वहीं श्राद्ध करने का इसने निय
६. पुरंदर नगर में रहनेवाला एक ब्राह्मण । इसने अनेक पुण्यकृत्य किये। किंतु उनसे इसके मन को शांति प्राप्त नहीं हुई । अन्त में भगवद्गीता के दुसरे अध्याय से इसे मनःशांति प्राप्त हुई । ( पद्म. उ. १७६ ) ।
७. मायापुरी में रहनेवाला अलि का एक ब्राह्मण । इसकी कन्या का नाम गुणवती तथा दामाद का नाम चन्द्रशर्मा था। चंद्रशर्मा इसका शिष्य भी था। एक बा ये दोनों अरण्य में दर्भसमिधा लाने के लिये गये। एक राक्षस ने इनका वध किया । अनेक प्रकार के धर्माचरणों के कारण वे बैकुंठ गये (पद्म उ ८८ सत्यभामा देखिये) ।
८. कावेरी नदी के उत्तर तट पर रहनेवाला एक ब्राह्मण कार्तिक माह में अपने पुत्र को इसने स्नानादि कर्म करने के लिये कहा । उसने दुर्लक्ष किया। तब क्रुद्ध हो कर, इसने पुत्र को शाप दिया, 'तुम चूहा बनींग' बाद में पुत्रद्वारा प्रार्थना की जाने पर, इसने उःशाप दिया, कार्तिकमाहात्म्य सुनने पर तुम मुक्त हो जायोग ' । उस शाप के अनुसार, इसका पुत्र चूहा बन कर अरण्य में गया। एक बार एक आँवले के वृक्ष के नीचे, विश्वामित्र ऋषि अपने शिष्यों को कार्तिकमाहात्म्य बता रहा था । उसे सुन कर वह ब्राह्मणपुत्र मुक्त हुआ ( स्कंद. २.४.१२ ) ।
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वसिष्ठ ने सारी घटनायें अन्तशान से जान कर इसे बताया, 'रजस्वला स्थिति में तुम्हारी माता ने भोजन पका कर ब्राह्मणों को खिलाया। इस कारण उन दोनों को यह
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९. विष्णु का एक अवतार जालंधर देत्य एवं देवताओं का युद्ध छ रहा था। उस समय, जालंधर दैत्य की पत्नी वृंदा को एवं उसकी सखी स्मरदूति को फँसाने के लिये, विष्णु ने देवशर्मा नामक तपस्वी का वेष धारण किया।