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आंगिरस्
प्राचीन चरित्रकोश
अंगिरस्
तै. सं. ३.१.९.४) । अग्नि को अंगिरस नाम दिया गया | अंगिरस मंत्रकार था। परंतु अंगिरस के नामपर मंत्र न है (ऋ. १.१.६)।
हो कर, अंगिरस कुल के लोगों के मंत्र हैं । __ अग्नि को प्रथम अंगिरा ने उत्पन्न किया। अंगिरस | यह स्वायंभुव मन्वन्तर में, ब्रह्मा के सिर से उत्पन्न सुधन्वा का निर्देश है (ऋ. १.२०.१)। बृहस्पति अंगिरा हुआ। यह ब्रमिष्ठ, तपस्वी, योगी तथा धार्मिक था का पुत्र था (ऋ. १०.६७)। अंगिरसों ने देवताओं को (ब्रह्माण्ड. २.९.२३) । तथापि स्वायंभुव की संतति की प्रसन्न कर के एक गाय मांगी। देवताओं ने कामधेनु दी | वृद्धि न हुई । इस लिये ब्रह्मा ने स्त्रीसंतति उत्पन्न की । दक्ष परन्तु इन्हें दोहन नहीं आता था । अतएव इन्हों ने | की कन्या स्मृति इसकी पत्नी बनी। इसको स्मृति से सिनीअर्यमन् की प्रार्थना की तथा उसकी सहायता से दोहन | वाली, कुहू, राका तथा अनुमति नामक चार कन्यायें तथा किया (ऋ. १.१३९.७)। अंगिरस तथा आदित्यों में | भारताग्नि एवं कीर्तिमत् नामक दो पुत्र उत्पन्न हुए (ब्रह्माण्ड. स्वर्ग में सर्वप्रथम कौन पहुँचता है, इसके बारे में शर्यत | १.११.१७)। वैवस्वत मन्वन्तर में, शंकर के वर से यह हुई । वह शर्यत आदित्यों ने जीती तथा अंगिरस | पुनः उत्पन्न हुआ। यह ब्रह्मदेव का मानस पुत्र था । यह साठ वर्षों के बाद पहुँचा ऐसा उल्लेख अंगिरसामयन ब्रह्मदेव के मुख से निर्माण हुआ। इसे पैतामहर्षि कहते बताते समय आया है (ऐ, ब्रा. ४.१७)। बहुवचन में हैं। यह प्रजापति था। अग्नि ने पुत्र के समान इसका प्रयुक्त अंगिरा शब्द, हमारे पितरों का वाचक है तथा ये स्वीकार किया था, इसलिये इसे आग्नेय नाम भी प्राप्त है। हमारे पितर हैं ऐसा भी निर्देश है (ऋ. १.६२. २, अग्नि जब क्रुद्ध हो कर तप करने गया तब यह १०.१४.६)। यहाँ इसे नवग्व, भृगु तथा अथर्वन् भी स्वयं अग्नि बना । तप से अग्नि का तेज - कम हो कहा गया है। अंगिरसों ने इन्द्र की स्तुति कर के संसार गया। तब वह इसके पास आया । इसने उसे पूर्ववत का अंधकार दूर किया (ऋ. १.६२.५)। (अथर्वागिरस | अग्नि बन कर, अंधकार का नाश करने को कहा । इसने अग्नि देखिये)।
से पुत्र मांगा । वही बृहस्पति है (मत्स्य २१७-२१८)। ___ यह अग्नि से उत्पन्न हुआ अतएव इसे अंगिरस कहते इसके नाम की उपपत्ति अनेक प्रकारों से लगायी जाती है हैं (नि. ३.१७)।
(मत्स्य १९५.९; बृहद्दे. ५.९८; ब्रह्माण्ड. ३. १.४१)। __अंगिरस के पुत्र अग्नि से उत्पन्न हुए (ऋ.१०.६२.५)।
ब्रह्मदेव ने संतति के लिये, अग्नि में रेत का हवन किया; अंगिरस प्रथम मनुष्य थे । बाद में देवता बने तथा उन्हें ऐसी भी कथा है (वायु, ६५.४०)। ज्ञान प्राप्त हुआ (ऋ. ४.४.१३)। अंगिरस दिवस्पुत्र दक्षकन्या स्मृति इसकी पत्नी (विष्णु. १. ७)। बनने की इच्छा कर रहे थे (ऋ. ४.२.१५)। अंगिरसों चाक्षुष मन्वन्तर के दक्षप्रजापति ने, अपनी कन्या स्वधा को प्रथम वाणी का ज्ञान प्राप्त हुआ तदनंतर छंद का तथा सती इसे दी थी। प्रथम पत्नी स्वधा को पितर हुए ज्ञान हुआ (ऋ. ४.२.१६)। ऋग्वेद के नवम मंडल के | तथा द्वितीय पत्नी सती ने, अथवांगिरस का पुत्रभाव से सूक्त, अंगिरस कुल के द्रष्टाओं के हैं। ब्रह्मविद्या किसने स्वीकार किया (भा. ६.६ ).। इसे श्रद्धा नामक एक पत्नी किसे सिखाई, यह बताते समय, ब्रह्मन्-अथर्वन् - भी थी (भा. ३.१२.२४;३.२४.२२)। शिवा (सुभा) अंगिरस - सत्यवह - भारद्वाज - आंगिरस-शौनक ऐसा नामक एक पत्नी भी इसे थी (म. व. २१४.३) । सुरूपा क्रम दिया है (मुं. उ. १.१.२-३; ३.२.११)। अंगिरस मारीची, स्वराट् कादमी तथा पथ्या मानवी येह तीन स्त्रियाँ का पुराने तत्त्वज्ञानियों में उल्लेख है (शि. उ. १)। कुछ अथर्वन् की बताई गई है (ब्रह्माण्ड. ३.१.१०२-१०३; वायु. उपासनामंत्रों को अंगिरस नाम प्राप्त हुआ है (छां. उ.६५.९८)। तथापि मत्स्य में सुरूपा मारीची, अंगिरस १.२.१०; नृसिं. ५.९.)। यह शब्द पिप्पलाद को की ही पत्नी मानी जाती है (मत्स्य. १९६.१)। ये दोनों कुलनाम के समान लगाया गया है (ब्रह्मोप. १)। अथर्ववेद एक ही माने जाते होंगे । सुरूपा से इसे दस पुत्र हुए। इसने के पांच कल्पों में से एक कल्प का नाम अंगिरसकल्प है। गौतम को तीर्थमाहात्म्य बताया (म. अनु. २५.६९)। कौशिकसूत्र के मुख्य आचार्यों में इसका नाम है। इसने पृथ्वीपर्यटन तथा तीर्थयात्राएं की थीं (म. अनु. आत्मोपनिषद् में अंगिरस ने शरीर, आत्मा तथा ९४)। इसने सुदर्शन नामक विद्याधर को शाप दिया था पुर्वात्मा के संबंध में, जानकारी बताई है (१)। अंगिरस (भा. ४.१३)। इसका तथा कृष्ण का स्यमंतपंचक क्षेत्र कुल के लोग सिरपर पांच शिखायें रखते थे (कर्मप्रदीप)। | में मिलन हुआ था (भा, १०.८४ )। इसको शिवा से
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