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अंगद
प्राचीन चरित्रकोश
अंगिरस्
अंगद-वालि को तारा से उत्पन्न पुत्र । यह राम- ३. भारतीय युद्ध में पांडवों के विरुद्ध कौरवों को चन्द्र की सहायतार्थ, बृहस्पति के अंश से निर्माण हुआ था | इसने सहायता की थी (म. द्रो. २४.३६ )। अतएव भाषण कला में अत्यंत चतुर था । युद्ध में, राम । अंगराज-- इसे पालकाप्य ने हाथियों का वैद्यकके बाण से आहत हो कर धराशायी होने पर, अपने पुत्र शास्त्र सिखाया था (अग्नि. २९२)। अंगद की रक्षा करने की प्रार्थना वालि ने राम से की (वा. अंगार-(सो. द्रुह्यु.) मांधाता राजा के साथ इसका रा. कि. १८.४९-५३)। रामचन्द्र ने सुग्रीव को किष्किंधा बडा युद्ध हुआ था (म. शां. २९.८१)। यह युद्ध दस की राजगद्दी पर अभिषिक्त कर तत्काल अंगद को माह तक चलता रहा। इसका अंगारसेतु नाम भी प्राप्त है। यौवराज्याभिषेक किया (वा. रा. कि. २६)। (ब्रह्म. १३.१४९)। इसे आरब्ध, आरद्वत्, शरद्वत्
वानराधिपति सुग्रीव ने, दक्षिण दिशा की ओर जिन | तथा अरुद्ध नाम प्राप्त हैं (वंशावलि देखिये)। वानरों को सीता की खोज की हेतु से भेजा. उनका अंगद । अंगारक- मंगल नामक ग्रह । यह पूर्वजन्म का नायक था (वा. रा. कि. ४१.५-६)। सीता की खोज शिवपार्षद वीरभद्र है (मत्स्य. ७१; म. स. ११.२०; करते समय, पर्वत पर एक बडे असुर से इस की मुलाकात मंगल देखिये)। हुई, तथा उसने अंगद पर आक्रमण किया। उस समय २. सौवीर देश का एक राजपुत्र ( जयद्रथ ३. देखिये)। उसे ही रावण समझकर, अंगद ने एक मुक्का उसके मुँह पर ३. जयद्रथ का भ्राता (म. व. २४९. १०-१२)। मारते ही वह रक्त की उलटी करने लगा तथा भूमी पर ४. सुरभि तथा कश्यप का पुत्र निश्चेष्ट गिर गया (वा.रा. कि. ४८.१६-२१)। सीता की अंगारपर्ण-एक गंधर्व । पांडव लाक्षागृह से मुक्त हो खोज में असफल होने के कारण, सब वानरों ने प्रायोपवेशन कर जब गुप्तरूप से रात्रि के समय यात्रा कर रहे थे तब करने का निश्चय किया। इतने में संपाति ने सीता का पता| यह कुंभीनसी आदि स्त्रियों के साथ मार्ग की एक नदी बताया (वा. रा. किं. ५५-५८)। उसी समय समुद्रो- में क्रीडा कर रहा था। अर्जुन के साथ इसकी बोलचाल लंघन कर, कौन कितने समय में पार जा सकता है, इसकी हो कर, अर्जुन का तथा इसका युद्ध हुआ। युद्ध में अर्जुन पूछताछ अंगद ने की । अंगद ने कहा कि, एक उडान में ने उसको जीत लिया। यह देख कर इसने अर्जुन को • वह १०० योजन का अंतर पार कर सकता है (वा. रा. | सूक्ष्मपदार्थदर्शक चाक्षुषीविद्या प्रदान की, तथा अर्जुन के . कि.६५)। अन्त में यह काम हनुमान ने किया। रावण पास से अग्निशिरास्रविद्या स्वयं ली। तदनंतर अर्जुन को
के साथ युद्ध करने के पूर्व, साम की भाषा करने के लिये | इसने कहा कि, वे पुरोहित के विना न घूमें तथा
राम ने अंगद को वकील के नाते भेजा था परंतु उससे कुछ धौम्य ऋषि को पुरोहित बनायें । इतना कह कर यह चला .. लाभ नहीं हुआ (म. व. २६८; वा. रा. यु. ४१)। गया। आगे चल कर, इसने अपना पहला नाम छोड कर
| इसने इन्द्रजित के साथ यूद्ध कर के उसे जर्जर किया चित्ररथ नाम का स्वीकार किया (म. आ. १५८.४२, (वा. रा. यु. ४३)। कंपन के साथ युद्ध कर के उसका वध | १७४.२ )। किया (७६) । नरांतक का-(६९-७०), महापार्श्व का अंगिरस–एक ऋषि । यह वज्रकुलोत्पन्न था (ऋ. १. (९८) तथा वज्रदंष्ट का वध किया (५४)। कुंभकर्ण ५१.४. सायण.)। इसका मनु, ययाति (ऋ.१.३१.१७) के साथ युद्ध करते समय, सब वानर उसका शरीर देख तथा भृगु के साथ उल्लेख है (ऋ.८.४३.१३) । यहाँ यह, कर भयभीत हो गये। उस समय, वीररसयुक्त भाषण | इन लोगों के समान मैं भी अग्नि को बुला रहा हूँ ऐसा करके, सब वीरों को इसने युद्ध में प्रवृत्त किया (६६)। कहता है तथा इतरों के समान अंगिरसों को भी प्राचीन यह सारा कर्तृत्व ध्यान में रख कर, राज्याभिषेक के समय समझता है । दध्यच् , प्रियमेध, कण्व तथा अत्रि के साथ राम ने इसको बाहुभूषण अर्पण किये (१२८)। सुग्रीव भी इसका उल्लेख मिलता है (ऋ. १.१३९.९)। अंगिरस के बाद इसने किष्किंधा पर राज्य किया।
के सत्र में इन्द्र ने सरमा को भेजा (ऋ. १.६२.३) । उसी २. दशरथपुत्र लक्ष्मण को उर्मिला से दो पुत्र प्राप्त हुए। प्रकार अंगिरस के द्वारा सत्र करते समय, वहाँ नाभानेउनमें से यह ज्येष्ठ पुत्र है। इसके द्वारा स्थापित नगरी | दिष्ठ मानव, सत्र में लेने के लिये प्रार्थना कर रहे हैं
को अंगदीया कहते हैं। वहीं यह राज्य करता था (वा. (ऋ.१०.६२.१-६)। अन्य वैदिक ग्रन्थों में भी नाभा- रा. उ. १०२)।
नेदिष्ठ का अंगिरस के साथ संबंध है (ऐ. ब्रा. ५.१४; प्रा. च.२