SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 30
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अग्निप्वात्त प्राचीन चरित्रकोश अंगजा उनके धर्म से यह उत्पन्न हुआ । इनकी संख्या चौसठ | विष्णु ने इसको दी। इसने यमकन्या सुनीथा से गांधर्वहजार है। ये नित्य मनोविग्रह कर के वैराग्य से रहते विधि से विवाह किया। इसे सुनीथा से वेन नामक पुत्र हुआ हैं ( कालि. २)। ये काश्यपपुत्र हैं तथा देवों को पूज्य (पम. भू. ३०-३६)। वह अत्यंत दुष्ट होने के कारण, हैं (म. १४--१५, ह. वं.१)। इनकी पत्नी स्वधा | अंग राजा त्रस्त हो कर गृहत्याग कर के वन में गया। (भा. ४.१)। | इसको सुमनस् , ख्याति, ऋतु, अंगिरस् तथा गय नामक अग्निहोत्र- सविता तथा पृथ्वी का पुत्र (भा.- पांच भ्राता थे (भा. ४.१३.१७-१८)। ६.१८१)। २. (सो. अनु.) बलि का ज्येष्ठ पुत्र । यह बलि की अग्नीध्र- स्वायंभुव मनु का पुत्र (आग्नीध्र देखिये )। भायां सुदेष्णा को दीर्घतम से हुआ। इसे वंग, कलिंग, २. भोत्य मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक । पुण्ड्र तथा सुह्म नामक चार भ्राता थे (म. आ. ९८.३२. ३. भौत्य मनु का पुत्र । (आग्नीध्र देखिये)। १०.४२, विष्णु ४.१८.१; मत्स्य. ४८.२४-२५, ब्रह्म. अग्नीध्रक- रुद्रसावर्णि मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से १३.२९-३१) । इनके सिवा, इसे आंध्र नामक पांचव एक। भाई था। अंग आदि पांच पुत्रों को बली ने राज्याभिषेव अग्रयायिन्- (सो.) धृतराष्ट्र का पुत्र । | किया था। इनके देशों को भी इन्ही के नाम प्राप्त हुए अघ- कंस का अनुचर । यह बकासुर तथा पूतना (ह. वं. १.३१.३४)। इसका एक पुत्र था। उसका राक्षसी का भ्राता था। कंस ने इसे गोकुल में कृष्ण तथा नाम विभिन्न स्थलों में दधिवाहन (मत्स्य.४८.९१; ब्रह्म. बलराम के नाश के लिये भेजा। वहाँ इसने चार योजन | १३. ३७, ह. वं. १.३१.४३), खनपान (भा. ९.२३. लंबा सर्वदेह धारण किया । एवं कृष्ण तथा अन्य | ५) अथवा पार (विष्णु. ४. १८. ३) दिया गया है ! गोपों के गोचारण के मार्ग में, अपना शरीर फैला दिया। अंग राजा के बाद के राजा, अंगवंशीय राजाओं के नाम इसने अपना मुख इतना विस्तीर्ण बना दिया था कि, उसे से प्रसिद्ध हुए (अनुवंश देखिये)। इसने काफी यज्ञ गुफा समझ कर, गायें चराने के लिये योग्य स्थल समझ कर, किये । इसका चरित्र नारद ने संजय को बताया। म. द्रो. गोप समस्त गायों के साथ उसमें प्रविष्ट हो गये । कृष्ण को ५७)। इसका मांधाता ने पराभव किया था (म. शां. यह वर्तमान ज्ञात होते ही, वह वहाँ आया तथा इसके मुख में प्रविष्ट हो कर, बडा स्वरूप धारण करके इसका ३. (सो. अनु.) दधिवाहन का पौत्र तथा दिविरथ मह फाड दिया। इस कारण इसकी तत्काल मृत्यु हो काल मृत्यु हो | का पुत्र । जब परशुराम क्षत्रियों का संहार कर रहा गई (भा. १०१२)। था तब इस का गौतम ने गंगा नदी के तट पर संरक्षण अघमर्ण-(अघमर्षण देखिये)। किया (म. शां. ४९.७२)। अघमर्षण माधुच्छन्दस-सूक्तद्रष्टा (ऋ. १०. ४. भारतीय युद्ध का दुर्योधनपक्षीय म्लेच्छ राजा । १९०)। विश्वामित्र वंश के गोत्रकार मधुच्छंद का पुत्र। इस का वध भीम ने कियां (मद्रो. २५.१४-१७)। इसे अघमर्ण भी कहा गया है। ५. भारतीय युद्ध में नकुल द्वारा मारा गया हुआ __ अघोर-हिरण्याक्ष की सेना का एक असुर । इसका | म्लेच्छ राजा (म. क. १७.१५-१७)। , वध कार्तिकेय ने किया (पन. स. ७५)। ६. (सो. भविष्य.) मत्स्य के मत में जनमेजय का अंग-(स्वा. उत्ता.) उल्मुल्क को पुष्करणी से उत्पन्न पुत्र । यह अत्रि का वंशज है। इस अर्थ से इसे अत्रि का अंग औरव-सूक्तद्रष्टा (ऋ. १०.१३८)। पुत्र कहा है (पन स. ८)। ब्रह्माण्ड में इसके मातापिता के नाम ऊरु तथा षडानेयी दिये गये हैं (ब्रह्माण्ड अंग वैरोचन-अभिषिक्त राजाओं की सूचि में इस २.३६.१०८-११०)। यह कृतयुगान्त में प्रजापति था। उदार राजा का उल्लेख है । इसके पास उदमय आत्रेय एक बार स्वर्ग जानेपर, इन्द्र का वैभव देख कर, यह प्रसन्न नामक पुरोहीत था (ऐ. बा. ८.२२)। हो गया तथा इन्द्र के समान वैभवशाली पुत्र की प्राप्ति के ____अंगचूड-कुबेर सभा का एक यक्ष (म. स.१०.१६) हेतु से, इसने विष्णु की उपासना की। तब भाग्यवान् पुत्र हंसचूड पाठ है। प्राप्ति के लिये कुलीन कन्या से विवाह करने की सूचना | अंगजा-ब्रह्मदेव की कन्या (मत्स्य. ३.१२)। | पुत्र।
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy